वैश्विक तापमान में ‘बढ़ोतरी’ चिंता का विषय

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

वैज्ञानिकों की मानें तो कनाडा आदि में तापमान में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण इस समय हीट डोम को माना जा रहा है। इसके कारण धरती प्रेशर कूकर की तरह हो जाती है और तापमान तेजी से बढ़ने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हीट डोम गर्म हवाओं का समूह होता है।
दुनिया के देश इस समय गर्मी के तपन से तप रहे हैं। कनाडा में पारा 50 के पार चल रहा है तो अमेरिका सहित दुनिया के अधिकांश देश गर्मी से बेहाल हो रहे हैं। गर्मी के कारण लोगों की मौतें हो रही हैं तो दूसरी और धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं। दुनिया के सामने नया संकट आ रहा है। आज हम करीब डेढ़ साल से कोरोना से जूझ रहे हैं तो चिंतनीय यह भी है कि धरती के तापमान बढ़ने और गिरने से कोरोना से भी अधिक मौतें दुनिया के देशों में हो रही हैं। दुनिया के जाने माने 27 वैज्ञानिकों के दल ने एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के देशों में तापमान बढ़ रहा है। तापमान में यह बढ़ोतरी मानव जनित है और इसके लिए प्रकृति को दोष नहीं दिया जा सकता। हालांकि दुनिया के देश लंबे समय से तापमान में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं और कार्बन उत्सर्जन को लेकर उपाय खोजने में जुटे हैं।

दरअसल औद्योगिक विकास के साथ ही जलवायु से अधिक ही खिलवाड़ होने लगा है। शुद्ध हवा-शुद्ध पानी आज कल्पना की बात हो गई है। तापमान में बढ़ोतरी का असर साफ दिख रहा है कि एक तो मौसम में अप्रत्याशित बदलाव होने लगा है और बेमौसम सर्दी, गर्मी और बरसात आम होती जा रही है तो पिछले एक दशक में ही समुद्री तूफानों की आवृति में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। नित नए तूफान की चेतावनी आम होती जा रही है। धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों की बर्फ तेजी से पिघल रही है और इसका परिणाम समुद्र किनारे के शहरों के अस्तित्व को लेकर ही देर सबेर संकट दिखाई देने लगा है। माना जा रहा है कि उत्तर पश्चिम गर्म हवाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण है। एक मोटे अनुमान के अनुसार तापमान के कम ज्यादा या यों कहें कि अधिक सर्दी-गरमी के कारण दुनियाभर में साल भर में 50 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा देते हैं। यह कोई छोटी मोटी संख्या नहीं है। अकेले भारत में ही छह लाख से अधिक लोग अधिक सर्दी या अधिक गर्मी के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। बड़ी गंभीर समस्या होने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग होने की आज अधिक आवश्यकता हो गई है।

वैज्ञानिकों की मानें तो कनाडा आदि में तापमान में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण इस समय हीट डोम को माना जा रहा है। इसके कारण धरती प्रेशर कूकर की तरह हो जाती है और तापमान तेजी से बढ़ने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हीट डोम गर्म हवाओं का समूह होता है जो हवा की लहरों की बहुत तेज उतार-चढ़ाव के कारण होता है। कनाडा का हीट डोम दरअसल उत्तर पश्चित पेसिफिक में रह गया है और वो मौसम को रोकने का काम कर रहा है जिससे गर्मी का अधिक प्रकोप सामने आ रहा है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि हीट डोम जैसे हालात सदी में एक बार होता है। पर देखने में यही आ रहा है कि पिछले कुछ सालों से दुनिया के देशों में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से देखा जा रहा है। राजस्थान व रेगिस्तानी इलाकों में गर्म हवाओं का चलाना जहां आम होता है वहीं अब इसका तेजी से विस्तार हो रहा है और कनाडा ही क्यों अमेरिका का इसके आसपास का इलाका गर्मी से प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन की गति इसी तरह से चलती रही तो एक हजार साल या एक सदी में होने वाली ऐसी स्थिति आम होने वाली है और मानव जीवन का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। जैव विविधता प्रभावित हो रही है। लॉन्सेंट प्लेनेटरी पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि अकेले भारत में प्रतिवर्ष सात लाख से अधिक लोगों की असामान्य तापमान के कारण मौत हो रही है। इसी तरह से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होती रही तो हालात खराब होने में कोई कमी नहीं रहेगी।

देखा जाए तो आज वायुमंडल प्रेशर कूकर की तरह तपता जा रहा है। केवल औद्योगिकरण को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि जिस तरह से जीवन आसान हुआ है उसका सीधा सीधा असर जलवायु पर पड़ रहा है। उदाहरण के लिए दिल्ली के लिए पराली को लाख दोष दिया जाए पर दिल्ली में ही एयर कण्डीशनरों के संजाल के चलते वायुमंडल में समाती गर्म हवाओं को आसानी से देखा जा सकता है। यह कोई दिल्ली की बात नहीं है अपितु दुनिया के अधिकांश शहरों के हालात यही हैं। हालांकि उद्योगों की चिमनियों से धुआं उगलती चिमनियां अब पुराने जमाने की बात होती जा रही हैं पर इलेक्ट्रोनिक क्रांति ने तापमान में बढ़ोतरी में अपनी अलग ही भूमिका तय कर दी है। यही कारण है कि अब कम कार्बन उत्सर्जन वाले उपकरणों की मांग अधिक बढ़ती जा रही है। एक समय था जब कोयला और डीजल से बिजली बनाने के कारण कार्बन उत्सर्जन में तेजी आई थी उसके स्थान पर अब रिन्यूबल एनर्जी की बात होने लगी है। आज इलेक्‍ट्रॉनिक कबाड़ भी बड़ा कारण बनता जा रहा है। उसके निष्पादन की समस्या से आज दुनिया जूझ रही है। दरअसल भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन साथ-साथ होता रहे तो समय रहते समाधान खोजा जा सकता है नहीं तो जब हालात हाथ से निकलने लगते हैं तब जाकर जागते हैं और उसका खामियाजा समूची दुनिया को भुगतना पड़ता है। अन्यथा कितने ही समिट आयोजित कर लिए जाएं या कितने ही प्रस्ताव पारित कर दिए जाएं केवल उनसे समाधान नहीं निकलने वाला है। यह समझना होगा।

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