गरीबों के लिए सरकार उदार क्यों नहीं बनती ?

सहीराम

देखो यह बात तो सब मानते हैं कि महामारी ने पूरी दुनिया को कंगाल कर दिया। हां, सेठों की बात और है। सच्चाई यही है कि इस महामारी के दौरान दुनिया का हर बड़ा सेठ और ज्यादा संपन्न तथा और ज्यादा समृद्ध हुआ है और हर गरीब और ज्यादा गरीब तथा दरिद्र हो गया है। जी नहीं, यह कोई सुनी-सुनायी बात नहीं है, अफवाह नहीं है, यह बात किसी ईर्ष्या या दुर्भावना से नहीं कही जा रही है, मीडिया की खबरें और आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। दुनिया के इन गरीबों की ही तरह अर्थव्यवस्थाएं भी गरीब हो गयी, दरिद्र हो गयी, पता नहीं वे सेठों की तरह संपन्न क्यों नहीं हो पायी, जबकि अर्थव्यवस्थाओं का भी और सेठों का भी सरकारों से गहरा नाता होता है।
सरकार से तो बस गरीबों का ही कोई नाता नहीं होता-एक वोट देने के अलावा। इन गरीबों तथा अर्थव्यवस्थाओं की तरह ही खुद सरकारें तक कंगाल होने को लेकर डरी बैठी हैं और जलकुकड़े हैं कि यह मांगकर उनकी कंगाली के इस आटे को और गीला करने पर आमादा हैं कि कोरोना से मरने वालों को मुआवजा दिया जाए। सरकार ने साफ कह दिया है कि अगर ऐसा हो गया तो भैया हम तो कंगाल हो जाएंगे।
सरकार जब उदार होती है तो सचमुच बहुत उदार होती है। वैसे भी यह उदारीकरण का दौर है तो सरकारों को उदार होना भी चाहिए। लेकिन पता नहीं क्यों वह हमेशा सेठों के लिए ही उदार होती है, गरीबों के लिए उदार होने से वह डरने लगती है। सरकार उदार होकर सेठों को सरकारी कंपनियां तो सस्ती में बेच देती है पर उतनी ही उदार होकर वह गरीबों को रोटी सस्ते में नहीं देती। लेकिन जब आपका नेता किसी परियोजना का, एक्सप्रेस वे का, मेट्रो का या हवाई अड्डे आदि का उद्घाटन करने आता है तो वह यही घोषणा करता है कि इसके लिए पैसे की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।
पैसे की कोई कमी न होने देने की घोषणा इतनी की जाती है कि लोगों को भ्रम हो जाता है कि सरकार के खजाने तो भरे हुए हैं। लेकिन वे इतने भी भरे नहीं होते और गरीबों की एक मांग पर सरकार के कंगाल होने का खतरा पैदा हो जाता है। अगर कोई यह कह दे कि सरकारी गोदामों में सड़ रहा अनाज गरीबों में फ्री बांट दो तो सरकार के कंगाल होने का खतरा पैदा हो जाता है। किसानों को फ्री बिजली देने की मांग हो जाए तो सरकार के कंगाल होने का खतरा पैदा हो जाता है। किसानों को सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की मांग हो जाए तो सरकार के कंगाल होने का खतरा पैदा हो जाता है।
इसी तरह जब कोरोना से मरने वालों के लिए मुआवजा देने की बात आयी तो सरकार के कंगाल होने का खतरा पैदा हो गया। जबकि सेठों का कर्जा माफ कर वह कभी कंगाल नहीं होती। कमाल है! नहीं?

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