स्वतंत्रता सेनानियों को लेकर अखिलेश की ओछी राजनीति

अजय कुमार

अच्छा होता कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह बताने के साथ-साथ कि बीजेपी का स्वतंत्रता आंदोलन से कोई संबंध नहीं है, यह भी बता देते कि यदि बीजेपी ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया तो समाजवादी पार्टी ने देश की आजादी में कितना योगदान दिया था।

आजादी की लड़ाई में किसने कितना योगदान दिया या नहीं दिया, यह आज की पीढ़ी नहीं तय कर सकती है। अपनी सियासत चमकाने के लिए किसी नेता या दल को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी पर भी उंगली उठा कर यह कह दे कि उसका या उसके पूर्वजों का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था। देश में आजादी से लेकर आज तक कोई ऐसा सर्वे नहीं हुआ है जिसके आधार पर यह तह किया जाए कि देश को आजाद कराने में किसने कितना योगदान दिया था। अगर कोई यह कहे कि देश को आजाद कराने में सिर्फ कांग्रेस वालों का ही योगदान था तो यह कहना उतनी ही बेईमानी होगी जितना यह कहना कि भारतीय जनता पार्टी का आजादी की लड़ाई से कोई सरोकार नहीं है।

यह सच है कि आजादी के काफी वर्षों के बाद भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था, इसलिए पार्टी के तौर पर बीजेपी ने भले ही आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया हो, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि व्यक्तिगत तौर पर (जब भाजपा का गठन नहीं हुआ था) भी भाजपा के नेताओं या उनके पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया होगा। आजादी की लड़ाई में व्यक्तिगत तौर पर भी कई लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। अंग्रेजों की यातनाएं झेली थीं। जेल की हवा खाई थी, लेकिन अब राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक तमाम नेता अक्सर अपनी सियासती सहूलियत के हिसाब से बताते रहते हैं कि किसने आजादी की लड़ाई में कितना योगदान दिया था और कौन अंग्रेजों से मिल गया था। इसी ओछी राजनीति के चलते वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों को अपमानित होना पड़ता है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसी तमाम शख्सियतों पर अनर्गल आरोप लगाए जाते हैं।

इसी कड़ी में नया विवाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खड़ा कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी का स्वतंत्रता आंदोलन से कोई संबंध नहीं रहा है। बीजेपी केवल दिखावटी चर्चा करती है। स्वतंत्रता आंदोलन की चर्चा करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों के मूल्यों को अपना कर उन पर चलने का संकल्प भी लेना चाहिए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यह बात गत दिवस चौरी चैरा में जनक्रांति के 100वें वर्ष में प्रवेश करने पर देश की आजादी के लिए अपने प्राण देने वाले शहीदों को नमन करते हुए श्रद्धांजलि देते हुए कही। उन्होंने कहा कि देश सदैव शहीदों के बलिदान को याद रखेगा। सपा अध्यक्ष ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के स्तुतिगान से उनका सम्मान नहीं होता है। बल्कि पूरी श्रद्धा से उनके विचारों को आत्मसात करना होता है।

खैर, अच्छा होता कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह बताने के साथ-साथ कि बीजेपी का स्वतंत्रता आंदोलन से कोई संबंध नहीं है, यह भी बता देते कि यदि बीजेपी ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया तो समाजवादी पार्टी ने देश की आजादी में कितना योगदान दिया था। क्योंकि सपा तो बीजेपी से भी नई पार्टी है। अगर बीजेपी वालों का स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं था तो फिर सपा का योगदान कैसे हो सकता है, उसका गठन तो बीजेपी के बाद ही हुआ था।

लब्बोलुआब यह है कि हमारे राजनेता यदि आजादी की लड़ाई में योगदान देने वाले क्रांतिकारियों का सम्मान नहीं कर सकते हैं तो कम से कम अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान तो न करें। अनर्गल प्रलाप करने वालों को देश की जनता हाशिये पर पहुंचाने में देर नहीं लगाती है। जो लोग या दल अपने देश और अपने शहीदों का सम्मान नहीं करते हैं उनका क्या हश्र होता है, इसकी सबसे बड़ी और जिंदा मिसाल कांग्रेस है। कांग्रेस के नेता अपने आप को देश से ऊपर समझने लगे थे, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार पर उंगलिया उठाते थे, प्रधानमंत्री का विदेश में जाकर मजाक उड़ाते थे। उनका क्या हश्र हुआ इससे सपा नेताओं को सबक लेना होगा। वर्ना राहुल गांधी की तरह अखिलेश भी हंसी का पात्र बन जाएंगे।

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