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धर्म-अध्यात्म

सर्वशक्तिमान ईश्वर

(दार्शनिक विचार)

#डॉ_विवेक_आर्य

ईश्वर सर्वशक्तिमान है। इसमें कोई संदेह नहीं है। पर सर्वशक्तिमान का अर्थ क्या है? यह जानना आवश्यक है। ईश्वर के सर्वशक्तिमान से कुछ लोग यह तात्पर्य निकलते है कि ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है। पर क्या वाकई में ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है? नहीं। कुछ उदाहरण से समझते है-

पहला प्रश्न है कि क्या ईश्वर अपने जैसा दूसरा ईश्वर बना सकता है या नहीं? यदि कहें कि नहीं बना सकता तो वह सर्वशक्तिमान नहीं रहा। यदि कहें कि बना सकता है एक नहीं रहा, दो हो गए। और जो दूसरा ईश्वर बनेगा भी, वह हूबहू पहले जैसा नहीं होगा। क्योंकि वह नकल ही होगी। यदि नकल को असल से बिलकुल मिला भी दिया, तब भी दूसरा बना हुआ ईश्वर पहले ईश्वर से हज़ारों वर्ष आयु में छोटा होगा। क्योंकि पहला ईश्वर सृष्टि के आदि काल से चला आ रहा है और दूसरा ईश्वर उसके हज़ारों वर्ष बाद प्रश्न उत्तर काल के समय बनाया गया।

इसी तरह का दूसरा प्रश्न है। जैसे बच्चे खेल में मिट्टी-गारे से इतनी बड़ी ईंट बना लेते हैं कि उनसे भी नहीं उठती, क्या ऐसे ही ईश्वर भी इतनी बड़ी ईंट बना सकता है जो उससे भी न उठे। यदि कहें कि नहीं बना सकता तो वही न बना सकने की अशक्ति वाली बात आ गई। यदि कहें कि बना सकता है तो न उठा सकने की बात आ गई। सर्वशक्तिमान वह दोनों तरह नहीं रहा। न हाँ कहने से, न ना कहने से।

एक तीसरा प्रश्न है। मेरी इच्छा के विरुद्ध यदि मेरा नौकर काम करे तो मैं उसे घर से बाहर निकाल दूंगा, किन्तु यदि में ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध आचरण करूँ तो क्या परमात्मा मुझे अपने घर से बाहर निकाल सकता है? यदि ना कहे तो सर्वशक्तिमान नहीं रहा, यदि हाँ कहे तो सर्वव्यापक नहीं रहा। आखिर परमात्मा मुझे अपने घर से बाहर निकालेगा कहाँ- क्या कहीं ऐसा स्थान है जहाँ परमात्मा न हो। इसी को कहते है न हाँ कहने से छुटकारा मिले, न ना कहने से। दोनों ओर से गले में फन्दा।

यही तर्क उन अज्ञानियों पर भी लागु होता है जो ईश्वर द्वारा पाप क्षमा होना मानते हैं। क्योंकि जो नियम ईश्वर ने बनाये है वे पूर्ण, नित्य तथा सदा के लिए हैं। उनमें परिवर्तन करना ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव के विरुद्ध है। अंत: में सर्वशक्तिमान का अर्थ यह है कि परमात्मा के करने के जजों काम हैं। जैसे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय, कर्म फल व्यवस्था आदि। वह स्वयं इतना समर्थ है कि इनके करने में उसे किसी अन्य की सहायता की अपेक्षा नहीं है।

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