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प्रमुख समाचार/संपादकीय

आज का चिंतन-19/03/2014

परम सत्ता का दामन थामें

सब कुछ अपने आप मिलेगा

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

हम सभी लोग हमेशा कुछ न कुछ चाहते हैं और इस चाहत को पूर्ण करने के लिए दुनिया भर के सारे जतन करते रहते हैं। इच्छाओं का होना कोई बुरी बात नहीं है। हर कोई चाहता है कि उसकी जिंदगी में सुकून ही सुकून हमेशा बना रहे और किसी भी प्रकार की नकारात्मकता कभी पास फटके तक नहीं। लेकिन हर किसी का अनुभव है कि उसकी जिंदगी में कोई न कोई समस्या हमेशा बनी रहती है जिसके कारण से जिंदगी खुशनुमा नहीं रह पाती है।

जिनके पास जीने को बहुत कुछ है उन्हें भी चैन नहीं है और जो लोग अभावों से जूझ रहे हैं उन्हें भी खुशी नहीं है। दुःखों और समस्याओं के कई प्रकार हैं। इनमें से एक तो वास्तविक हैं जिनका अस्तित्व होता है तथा जिनकी वजह से हर किसी को विषाद, भय, शोक और उद्विग्नता का जीवन जीना पड़ता है।

दूसरी तरह में वे दुःख आते हैं जो हकीकत में नहीं होकर आभासी होते हैं और  जिन्हें महसूस करने वाला इस प्रकार अनुभव करने लगता है जैसे कि ये वास्तविक ही हों। कुछ लोग ही होते हैं जो दुःख या समस्याएं आभासी हों या वास्तविक, इनका दृढ़तापूर्वक मुकाबला करते हैं और इनसे मुक्त हो जाते हैं।

खूब सारे लोग  ऎसे हैं जो आभासी दुःखों के आने पर ही विचलित और पीड़ित हो जाते हैं। इस किस्म के लोग राई को पहाड़ मानकर चलने की मानसिकता अपना लेते हैं और इस कारण इन लोगों को थोड़ी सी परेशानी भी बहुत बड़ी लगती है।

हममें से अधिकांश लोग उसी प्रजाति में गिने जाते हैं जो थोड़ी सी प्रतिकूलता सामने आ जाने पर घबरा जाते हैं और दुःखों का इतना बड़ा घेरा बना डालते हैं जो कि हमारे आभामण्डल से भी कई गुना बड़ा हो जाता है।  हम मामूली से सुखों की चाहत, इच्छाओं की पूर्ति और ऎषणाओं के आकर्षण में हर क्षण इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि इनकी प्राप्ति के लिए कौन से रास्ते अपनाएं जाएं, कौन से ग्रह-नक्षत्रों और भगवान को रिझाया जाए, किस बाबा-पीर-फकीर-मौलवी या भौंपों-धुतारों और टोने-टोटके बाजों से लेकर तांत्रिकों, मांत्रिकों, ओझाओं और ओघड़ों के चक्कर काटें, कौनसी पूजा या अनुष्ठान कराएं या फिर ऎसी कौनसी विधियों, भूलभुलैया भरे रास्तों और लोगों का सहारा लें, जो हमारे कामों में मददगार हों या किसी तिलस्मी शक्तियों को हमारी मदद के लिए लगा दें।

आज तो हालत यह हो गई है कि हमें अपनी हर चाहत को पूरी करने के लिए अलग-अलग रास्तों की तलाश करनी पड़ रही है, बावजूद इसके मनचाहा नहीं हो पा रहा है। जो लोग जीवन में ऎषणाओं की पूर्ति और ऎश्वर्य की प्राप्ति के लिए खूब सारे जतन करते हुए अपनी आयु खपा रहे हैं वे यदि इस समय का थोड़ा सा हिस्सा सृष्टि के पालनहार की सेवा में लगा दें तो निहाल हो जाएं।

एक तरफ श्रीकृष्ण और दूसरी ओर अक्षौहिणी सेना… इनमें से श्रीकृष्ण को पाकर पाण्डव कुरुक्षेत्र जीत गए। इसी प्रकार जो लोग संसाधनों,भोग-विलासी उपकरणों और धन-दौलत का भण्डार पाकर आनंद पाने को उतावले बने रहते हैं वे थोड़ी गंभीरता और धैर्य के साथ विचार करते हुए इन हजारों कामों की बजाय परम सत्ता की ओर डग बढ़ा लें तो उन्हें सब कुछ इसी एकमात्र आश्रय से प्राप्त हो सकता है।

जो लोग ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं अर्थात जिन लोगों के लिए ईश्वर को प्राप्त करने की आतुरता ही अहम होती है उन लोगों के लिए दुनियावी संसाधन, उपकरण, भोग-विलास, इच्छाएं और कल्पनाएं सब कुछ अपने आप साकार हो जाती हैं क्योंकि ईश्वर का मार्ग ही ऎसा है जहाँ ईश्वर के करीब जाने की जो कोई कोशिश करता है उसे इस मार्ग पर वह सब कुछ बिना मेहनत किए हुए सब कुछ प्राप्त हो जाता है क्योंकि ईश्वर का मार्ग आनंद और परितृप्ति का मार्ग है।

इनकी प्राप्ति के लिए हमें कुछ नहीं करना पड़ता बल्कि ये विभूतियाँ ईश्वरीय मार्ग पर अपने आप बिखरी रहती हैं। फिर इन्हें पाने के लिए न हमें किसी भी प्रकार की मेहनत करनी पड़ती है न कर्म बंधन जुड़ता है। जो कुछ है वह अपने आप मिलता चला जाता है और परम आनंद देते हुए हमेें ईश्वर के मार्ग की ओर आगे से आगे बढ़ाता चला जाता है।

इसलिए सैकड़ों-हजारों जायज-नाजायज यत्नों के प्रपंच में पड़ने की बजाय ईश्वरीय मार्ग को अंगीकार कर लेना ज्यादा श्रेयस्कर है जहां हमें हर कामना के लिए अलग-अलग प्रयत्नों, गोरखधंधों, षड़यंत्रों, नालायकियों, दुराग्रह-पूर्वाग्रह आदि की कोई आवश्यकता नहीं रहती। हजारों गुलामों के आगे नाक रगड़ने, दण्डवत करने और, अपने आपको समर्पित कर देने से बेहतर है कि एक मालिक को पाने का यत्न करें, उसकी सारी दुनिया हमारी अपनी ही हो जाएगी।

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