भारतीय ऋषियों ने समझ लिया था हमारी जैविक घड़ी का रहस्य

 

पूनम नेगी

कभी सोचा है कि क्यों रात को एक तय समय पर पलकें झपकने लगती हैं और सुबह एक तय समय पर खुद व खुद हमारी आंखें खुल जाती हैं। हम ही नहीं पशु-पक्षियों और वृक्ष-वनस्पतियों का जीवनक्रम भी एक सुनिश्चित प्राकृतिक लय के अनुरूप ही चलता है। यह चमत्कार होता है एक ‘जैविक घड़ी’ की वजह से; जो संपूर्ण धरती के पेड़-पौधों, प्राणी जगत और मनुष्यों पर लागू होती है। भले ही यह हमें अपने चर्मचक्षुओं से दिखायी नहीं देती किंतु सृष्टि का समूचा जीव-जगत इसी घड़ी अनुसार ही कार्य करता है।


इस ‘जैविक घड़ी’ का समय चक्र सूर्य के उदयकाल से सूर्यास्त तक और फिर सूर्यास्त के बाद से सूर्योदय तक निरन्तर बिना रुके चलता रहता है। वाह्य प्रकृति में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों की समय-सारिणी के अनुरूप ही यह आंतरिक ‘जैविक घड़ी’ शरीर के विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन करती है। रात को एक तय समय पर नींद आना और सुबह खुद व खुद आंखें खुल जाना इसी ‘जैविक घड़ी’ की निर्धारित कार्यप्रणाली के कारण होता है। हम मनुष्य ही नहीं; पशु-पक्षियों और वृक्ष-वनस्पतियों का जीवनक्रम भी इसी सुनिश्चित प्राकृतिक लय के अनुरूप चलता है। पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल एवं फल लगना, बसंत के समय पतझड़ में पुरानी पत्तियों का गिरना, पौधों का नई कोंपलें धारण करना, समय पर ही बीज का अंकुरण होना- ये सब जैविक घड़ी की सक्रियता का ही परिणाम हैं।
विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि इंसानों की तरह अन्य जीव-जंतु तथा पेड़-पौधे भी रात और दिन पहचानते हैं। इस जैविक घड़ी के मुताबिक अलग अलग मौसम और दिन-रात के अनुसार शरीर को समयानुसार निद्रा, जागरण और पोषण की जरूरत होती है।
भारतीयों को गौरवान्वित होना चाहिए कि ‘जैविक घड़ी’ के बाइलोजिकल रिदम के लिए निर्धारित जीन व इसकी कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण शोध के लिए वर्ष 2017 का नोबल पुरस्कार भौतिकी के तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों- जेफ्री सी. हॉल, माइकल रोसबॉश और माइकल वी. यंग को दिया गया है। क्योंकि जैविक घड़ी के मुताबिक दिनचर्या का निर्धारण हमारे वैदिक ऋषि सदियों पहले ही कर चुके थे। उन्होंने तो घड़ी के आविष्कार के बहुत पहले ही सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों एवं नक्षत्रों की गतिविधियों द्वारा समय का हिसाब-किताब रखने का एक अनूठा विज्ञान भी विकसित कर लिया था। भारतीय ऋषियों ने मानव सभ्यता के विकास के आरम्भिक काल में ही प्रकृति की इस लय के महत्व को समझ प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करने वाली दिनचर्या और जीवनशैली विकसित कर ली थी। उन्होंने समय को भूत, भविष्य एवं वर्तमान, दिन-रात, प्रात:काल, मध्यकाल, संध्याकाल, क्षण, प्रहर आदि विभिन्न भागों में बांटकर 24 घंटे की समूची दिनचर्या को धार्मिक परंपराओं से जोड़कर सोने-जागने, खाने-पीने, काम-आराम, मनोरंजन आदि सभी क्रियाकलापों को निर्धारित समय पर करने की बात पर बल दिया था।
इस घड़ी को दुरुस्त रखने के लिए उन्होंने रात्रि के अंतिम प्रहर यानी ‘ब्रह्म मुहूर्त’ पर जागरण का विशेष महत्व बताया था। उनके अनुसार इस काल में शैया त्याग देने से उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस निर्धारण के पीछे उनकी जो वैज्ञानिक सोच निहित थी, उसकी पुष्टि आज के वैज्ञानिक नतीजों से भी हो चुकी है कि ब्रह्म मुहुर्त में वायुमंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे अधिक 41 प्रतिशत होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है तथा शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। भारतीय आयुर्वेद आचार्यों का कहना है कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
गौरतलब हो कि हमारे पुरातन ऋषियों और आयुर्वेदाचार्यों ने युगों पूर्व निर्धारित समय पर सोने-जागने एवं आहार-विहार के जो नियम-उपनियम बनाये थे; उपरोक्त नोबेल विजेता विज्ञानियों ने अपनी लम्बी शोधों के दौरान शरीर के बॉडी क्लॉक (जैविक घड़ी) के काम करने के तरीके को समझने का प्रयास कर हमारे पुरातन ऋषि मत का समर्थन किया है।

अंगों की सक्रियता और जैविक घड़ी कुछ रोचक तथ्य
दिलचस्प होगा कि वैदिक आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत की संहिता में हमारी ‘जैविक घड़ी’ की सक्रियता से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी जो दुर्लभ जानकारियां मिलती हैं; उन्हीं की पुष्टि यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्र्जि के भारतीय मूल के युवा वैज्ञानिक अभिषेक रेड्डी ने बीते दिनों अपनी शोधों में की है। अभिषेक रेड्डी ने अपनी शोधों में पाया कि कि मनुष्य में ‘जैविक घड़ी’ का मूल स्थान उसका मस्तिष्क है। मस्तिष्क ही हमें जगाता और सुलाता है। आइए जानते हैं कि ‘जैविक घड़ी’ की कार्यप्रणाली से तमाम ज्ञानवर्धक जानकारियां-
1. सुबह 3 से 5 बजे के बीच फेफड़े सर्वाधिक क्रियाशील रहते हैं। जो इस काल में उठकर गुनगुना पानी पीकर थोड़ा खुली हवा में घूमते या प्राणायाम करते हैं तो उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, क्योंकि इस दौरान उन्हें शुद्ध और ताजी वायु मिलती है। हिन्दू धर्म में इस इस अमृत बेला को ध्यान और प्रार्थना को सबसे उत्तम माना गया है।
2. सुबह 5 से 7 बजे के बीच बड़ी आंत क्रियाशील रहती है। अत: इस बीच मल त्यागने का समय होता है। जो व्यक्ति इस वक्त सोते रहते हैं और मल त्याग नहीं करते उनकी आंतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती है। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।
3. सुबह 7 से 9 बजे आमाशय की क्रियाशीलता और 9 से 11 तक अग्नाशय एवं प्लीहा क्रियाशील रहते हैं। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। अत: करीब 9 से 11 बजे का समय सुबह के जलपान और नाश्ते के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। इस समय अल्पकालिक स्मृति सर्वोच्च स्थिति में होती है तथा एकाग्रता व विचारशक्ति भी उत्तम होती है। इसीलिए इस समय शरीर की क्रियाशीलता सबसे अधिक होती है।
4. दोपहर 11 से 1 बजे के बीच के समय में ऊर्जा का प्रवाह ह्दय में प्रवाहित होता है इसीलिए दोपहर 12 बजे के आसपास सभी प्राथमिक, उचित और मांगलिक कार्य निपटा लेने चाहिए। भारतीय संस्कृति में इस समय दया, प्रेम आदि जैसी भावनाएं एवं संवेदनाओं को विकसित करने के लिए मध्याह्न-संध्या करने का विधान बनाया गया है।
5. दोपहर 1 से 3 के बजे के बीच छोटी आंत सक्रिय होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आंत की ओर ढकेलना होता है। इस समय पर्याप्त मात्रा में पानी पीने का सुझाव दिया गया है। ऐसा करने से त्याज्य पदार्थ को आगे बड़ी आंत में जाने में सहायता मिलती है। यदि इस समय आप भोजन करते या सोते हैं तो पोषक आहार रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होगा और इससे शरीर रोगी और दुर्बल बन जाएगा।
6. दोपहर 3 से 5 बजे के बीच मूत्राशय की सक्रियता का काल रहता है। मूत्र का संग्रहण करना मूत्राशय का कार्य है। 2-4 घंटे पहले पीया गया जल मूत्र में बदल जाता है इसलिए इस समय मूत्रत्याग की इच्छा होती है।
7. शाम 5 से 7 बजे के बीच सुबह लिए गए भोजन की पाचन क्रिया पूर्ण हो जाती है अत: इस काल में हल्का भोजन करना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें। जैन मतावलंबी इस नियम का अभी भी पालन करते हैं और जो हिन्दू जानकार हैं वे भी इसी नियम से चलते हैं।
8. सुबह भोजन के 2 घंटे पहले तथा शाम को भोजन के 3 घंटे बाद दूध पी सकते हैं।
9. रात्रि 7 से 9 बजे के बीच गुर्दे सक्रिय रहते हैं। इसके अलावा इस समय मस्तिष्क विशेष सक्रिय रहता है। अत: प्रात:काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रहता है।
10. रात्रि 9 से 11 बजे के बीच रक्तवाहिकायों और धमनियों की सक्रियता रहती है और इस समय ऊर्जा का प्रवाह रीढ़ की हड्डी में रहता है। इस समय पीठ के बल या बाईं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक शांति देने वाली होती है। रात्रि 9 बजे पश्चात पाचन संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते हैं अत: यदि इस समय भोजन किया जाए तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहकर सड़ जाता है। उसके सडऩे से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं, जो अम्ल (एसिड) के साथ आंतों में जाम रोग उत्पन्न करते हैं इसलिए इस समय भोजन करना हानिकारक होता है
11. रात्रि 11 से 1 बजे के बीच पित्ताशय, यकृत सक्रिय होता है। पित्त का संग्रहण पित्ताशय का मुख्य कार्य है। इस समय यदि आप जाग्रत रहते हैं तो पित्त का प्रकोप बढ़ जाता है जिससे अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त-विकार तथा नेत्ररोग उत्पन्न होते हैं। रात्रि को 12 बजने के बाद दिन में किए गए भोजन द्वारा शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के बदले में नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। इस समय जागते रहने से बुढ़ापा जल्दी आता है।
12. रात्रि 1 से 3 बजे के बीच यकृत अर्थात लिवर ज्यादा क्रियाशील होता है। अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यकृत का कार्य है। इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति न होने पर पाचन तंत्र बिगड़ जाता है। जिस समय शरीर नींद के वश में होकर निष्क्रिय रहता है उस समय जागते रहते से दृष्टि मंद होकर भ्रमित रहती है इसीलिए ऐसे समय में ही अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।

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