आम चुनाव 2014 में उत्तर प्रदेश के बारे में एक चौंकाने वाला तथ्य ये आया है कि इस बार इस प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद लोकसभा में नही पहुंच पा रहा है। जबकि सपा, बसपा और कांग्रेस ने इस बार 44 मुस्लिमों को अपना-अपना प्रत्याशी बनाया था। इसके अलावा उलेमा कौंसिल, आम आदमी पार्टी, कॉमी एकता दल और पीस पार्टी ने भी इस चुनाव में अपने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे परंतु एक भी मुस्लिम प्रत्याशी विजयी होकर संसद नही पहुंच पा रहा है।
इसका सच ये है कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के कारण जितना अधिक मुस्लिम मतों का धु्रवीकरण सपा ने अपने पक्ष में कराना चाहा उतना ही हिंदू मतों का धु्रवीकरण भाजपा के पक्ष में हो गया। अधिकांश राजनीतिक दलों ने दंगों के वास्तविक कारणों की पड़ताल कर भविष्य में कोई भी ऐसा कार्य न करने की कोशिश नही की जिससे दो समुदायों में टकराव होने की संभावनाओं को टाला जा सके। सारे दल सच को राजनीतिक भाषा की तह में लपेटते रहे और इस प्रकार सच्चाई यूं ही दबकर रह गयी। परिणामस्वरूप मुस्लिम मतदाता ने भी समझ लिया कि उसका दुरूपयोग किस प्रकार किया जा रहा है। अत: मुस्लिम मतदाता का भी धु्रवीकरण सपा अपने पक्ष में करने में सफल नही हुई। मुस्लिमों ने अपने-अपने ढंग से मतदान किया और जो भी प्रत्याशी भाजपा को हराने में सक्षम हो उसको ही उसने वोट देना उचित समझा। इसकी देखा देखी हिंदू मतों का धु्रवीकरण तेजी से भाजपा के लिए हुआ। इस बात को युवा वर्ग ने तेजी से समझा और उसने मोदी के पक्ष में मतदाताओं को लामबंद करना आरंभ कर दिया। यद्यपि भाजपा के प्रदेश प्रभारी अमित शाह की मानें तो यूपी के हर पांचवें मुस्लिम ने भी भाजपा को अपना समर्थन दिया है। इस बात को एक शुभ संकेत ही माना जाना चाहिए, क्योंकि मतदान में विकास और प्रत्याशी की योग्यता को ही आधार बनाया जाना चाहिए।
मुलायम सिंह यादव जितना अधिक मुस्लिम तुष्टिïकरण कर रहे थे और उनका प्रशासन इसमें जितना अधिक सहयोग कर रहा था वह उनके लिए उल्टा पड़ा। अखिलेश सरकार के काल में एक सौ से अधिक दंगे हुए फिर भी दोनों बाप-बेटा नरेन्द्र मोदी को ही दंगा कराने वाला कहते रहे। जनता ने इस बात को सुना और निर्णय ले लिया कि नेताजी को धोना है, बेटा जी को सोना है, और मोदी को वोट देना है।
पूरे प्रदेश की जनता ने कानों कान निर्णय ले लिया और ‘बंपर वोटिंग’ कर अपने उत्साह के माध्यम से मोदी को संकेत दे दिया कि-हमने अपना काम कर दिया है। मोदी भी इस बात को समझ गये और विपक्षी नेता भी समझ गये, परंतु समझकर भी सब अनसमझ बने रहे। इस चुनाव में लिये गये निर्णय की भनक अमितशाह सहित किसी भी भाजपा नेता को नही थी कि हमें इस निर्णय से कितना भारी लाभ होने जा रहा है। तभी तो अमितशाह ने भी एक टीवी चैनल पर 55-56 सीट भाजपा द्वारा लेने की बात कही है। इससे यह साफ होता है कि यदि अमित शाह को यूपी में 45-46 सीटें भी मिलतीं तो भी वह अपने चुनाव प्रबंधन को ही ठीक मानते। अपेक्षा से अधिक सीटें भाजपा के चुनाव प्रबंधकों को मिल जाने का अर्थ है कि जनता के प्रबंधन के सामने उनका चुनाव प्रबंधन फीका पड़ गया है। अपनी पीठ थपथपाने की बजाए विजयी पक्ष अब काम करने पर ध्यान दे जनता की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं, जिन्हें सुलझाना है और जनहित में कुछ विशेष करना है, अन्यथा जनता मुलायम सिंह की सपा जैसा ही हाल कर सकती है। भारत के जागरूक लोकतंत्र की जागरूक जनता के लिए सचमुच नमन है।