वेदिक साधन आश्रम तपोवन गमन का वृतांत

ओ३म्

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हम आज दिनांक21-12-2020 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन भ्रमण पर गये। आश्रम के अधिकारी एवं अन्य बन्धु आश्रम संबंधी कार्यों से यत्र-तत्र गये हुए थे। वहां हमें एक सज्जन मिले जो दिल्ली से आये हुए हैं। उन्होंने बताया कि वह दस बारह दिन से यहां आयें हैं और यहीं रहेंगे तथा आश्रम की सेवा करेंगे।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन से‘‘पवमान” नाम से एक मासिक पत्रिका का विगत33 वर्षो से प्रकाशन हो रहा है। डा. कृष्ण कान्त वैदिक इसके मुख्य सम्पादक हैं। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा इसके प्रकाशन का कार्य देखते हैं। पत्रिका का जो भव्य स्वरूप बनकर प्रकाशित होता है उसमें श्री शर्मा जी के ज्ञान व अनुभव का विशेष योगदान होता है। श्री शर्मा जी उत्तराखण्ड सरकार में वरिष्ठ पदस्थ अधिकारी रहे हैं। सम्प्रति वह सेवानिवृत हैं और पूरा समय वैदिक साधन आश्रम तथा आर्यसमाज की गतिविधियों को देते हैं। देहरादून की आर्य समाजों के वह प्राण हैं। जिले की आर्य उपप्रतिनिधि सभा के भी वह स्तम्भ हैं। हम भी शर्मा जी को विगत तीन दशकों से देख रहे हैं। वह ऋषिभक्त एवं सत्यनिष्ठ वैदिक धर्मानुयायी हैं। वह एक साधक हैं। साधना शिविरों में सक साधक के रूप में सम्मिलित होते हैं। आश्रम में चतुर्वेद पारायण यज्ञ आयोजित करने के साथ वह अनेक शिविरों में यजमान साधक भी बनते हैं। अपने निवास पर भी वर्ष में एक बार किसी एक वेद का पारायण यज्ञ कराते हैं जिसमें वह एक आर्यविद्वान को प्रवचनों के लिये तथा एक भजनोपदेशक सहित मंत्रपाठ करने वाले गुरुकुल के ब्रह्मचारियों व ब्रह्चारणियों को भी आमंत्रित करते हैं। देहरादून के स्थानीय प्रायः सभी विद्वान एवं आचार्यायें भी उनके निवास पर आयोजित वेद पारायण यज्ञों में प्रातः व सायं व्याख्यान देते हैं। आश्रम की गतिविधियों में भी शर्मा जी की ही मुख्य भूमिका रहती है। शर्मा जी आर्यसमाज, राजपुर-देहरादून के प्रधान हैं। उसकी समस्त गतिविधियों के संचालन का मुख्य दायित्व भी उनके अनुभवी हाथों में है।

हमने आश्रम से पवमान मासिक पत्रिका के आगामी जनवरी-फरवरी, 2021 की प्रति ली। यह पत्रिका एक दो दिनों में नियमित पाठकों व ग्राहकों को प्रेषित की जायेगी। हमारे पास इस पत्रिका की पीडीएफ है। यदि किसी बंधु को देखनी हो तो हमें अपना व्हटशप नं. प्रेषित कर दें। ऐसा करने पर पत्रिका उस नम्बर पर प्रेषित की जा सकेगी। पत्रिका के इस नवीन अंक का परिचय भी हम प्रस्तुत कर देते है। मुख पृष्ठ पर आश्रम की यज्ञशाला एवं उसके चारों ओर बने भवनों सहित यज्ञशाला के प्रवेश द्वार का भव्य चित्र है। इस वर्ष इस प्रवेश द्वार पर ऋषि दयानन्द की आदम कद प्रतिमा लगाई गई है। प्रतिमा भव्य है जिससे इस स्थान की शोभा में वृद्धि हुई है। इसका चित्र हम इस फेस बुक पोस्ट के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। पत्रिका के भीतर मुख पृष्ठ के पीछे के भाग में माता सन्तोष रहेजा जी को श्रद्धांजलि प्रकाशित की गई है। माता जी आश्रम सोसायटी की सदस्या थी। वह आश्रम की उपाध्यक्ष भी रहीं है। दिनाक 8 नवम्बर, 2020 को उनका निधन हुआ है। माता जी प्रसिद्ध ऋषिभक्त और हीरो आटो कम्पनी के अध्यक्ष श्री सत्यानन्द मुंजाल जी की सहोदर बहिन थी। हमने भी अनेक बार उनके दर्शन किये। उनका एक साक्षात्कार लेकर पं. सत्यानन्द मुंजाल जी पर एक विस्तृत लेख भी फेस बुक के मित्रों से साझा किया था। इसके बाद के पृष्ठ पर प्रकाशित लेखों की विषय सूची एवं पत्रिका विषयक अन्य विवरण हैं। इस बार सम्पादकीय का विषय ‘महानता’ है। वेदामृत में सामवेद के संस्कृत-हिन्दी भाष्यकर्ता डा. रामनाथ वेदालंकार जी की ‘वेदमंजरी’ पुस्तक से ऋग्वेद के 1.40.5 मन्त्र की व्याख्या ‘ब्रह्मणस्पति प्रभु का परामर्श’ नाम से दी गई है। इसके बाद इन पंक्तियों के लेखक का लिखा एक लेख ‘वैदिक धर्म के कुछ मुख्य सिद्धान्त’ है। जनवरी 2021 में मकर संक्रान्ति का पर्व है। इस पर एक लेख ‘मकर संक्रान्ति पर्व का महत्व’ प्रकाशित किया गया है। फरवरी, 2020 में वसन्त पंचमी है अतः इस पर एक लेख ‘धर्म की वेदी पर शहीद अमर हुतात्मा धर्मवीर हकीकत राय’ दिया गया है। ‘वसन्त पंचमी पर्व का स्वरूप एवं इसकी महत्ता’ शीर्षक एक लेख भी इस पत्रिका में सम्मिलित है। ऋषिभक्त दानवीर महाशय धर्मपाल जी को श्रद्धाजलि एवं लेख भी पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। इसके बाद 8 अन्य छोटे बड़े लेख पत्रिका में हैं।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आगामी 7 मार्च से 28 मार्च 2021 तक एक योग साधना, चतुर्वेद पारायण एवं गायत्री यज्ञ का विशेष आयोजन किया जा रहा है। इस वृहद यज्ञ में साधकों को स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी तथा साध्वी प्रज्ञा जी का सान्निध्य प्राप्त होगा। साध्वी प्रज्ञा जी ने9 वर्ष एकान्तवास सहित अदर्शन मौनव्रत रखा है। साध्वी प्रज्ञा जी 28 मार्च को पूर्णाहूति के अवसर पर अपना यह व्रत पूर्ण करेंगी व खोलेंगी। इसकी सूचना व जानकारी भी पत्रिका में समाहित है। पत्रिका में कुछ अन्य सूचनायें भी प्रकाशित की गई हैं।

आश्रम के द्वारा एक जूनियर हाईस्कूल भी संचालित होता है जिसका नाम ‘तपोवन विद्या निकेतन’ है। लगभग400 छात्र छात्रायें इस विद्यालय में पढ़ते हैं। वैदिक धर्म की शिक्षाओं व सिद्धान्तों से भी बच्चों को परिचित कराया जाता है। स्कूल के बच्चे प्रतिभा सम्पन्न हैं जो आश्रम के ग्रीष्मोत्सव में अपने विद्यालय का वार्षिकोत्सव प्रस्तुत करते हैं। इस अवसर पर बच्चों की प्रतिभाओं का अवलोकन करने को मिलता है। वर्तमान में कोरोना रोग के कारण यह स्कूल अस्त व्यस्त दीखता है। यह विद्यालय आश्रम के साथ ही है तथा आश्रम जाने के मुख्य मार्ग पर है। इसका भी हमने एक चित्र लिया है जिसे हम प्रस्तुत कर रहे हैं। हमने अनुभव किया है कि इस विद्यालय की सभी शिक्षिकायें अत्यन्त परिश्रमी हैं जो बच्चों के जीवन निर्माण पर विशेष ध्यान देती है। आश्रम विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती उषानेगी बच्चों की शिक्षा एवं उनके जीवन निर्माण को समर्पित हैं तथा आर्यसमाज के विचारों एवं भावनाओं में आबद्ध हैं। इसी कारण यहां आने वाले अतिथिगण विद्यालय के बच्चों तथा अध्यापिकाओं व स्टाफ की प्रशंसा करते हैं।

हम एक बात यह अनुभव करते हैं कि आर्य समाज की सभी प्रमुख संस्थाओं में एक ऐसा योग्य व समर्पित व्यक्ति उपलब्ध होना चाहिये जो संस्था में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति व समूह का मौखिक सम्मान व स्वागत करे। वह कहां से आयें हैं, आर्यसमाज से जुड़े हैं या नहीं, आने का उद्देश्य व संस्था से अपेक्षायें आदि अवश्य पता करे। उनके पूछने पर उनको संस्था का परिचय दिया जाये और संस्था के मुख्य मुख्य स्थान यज्ञशाला, सत्संग भवन, पुस्तकालय, भोजन शाला आदि उनकी रुचि के अनुसार दिखाई जायें। वह व्यक्ति लौटे तो आश्रम के उस व्यक्ति के व्यवहार से सन्तुष्ट होना चाहिये। हमें लगता है कि यह काम वेतनभोगी कर्मचारी नहीं कर सकते। कई बार लोग आते हैं और जब उनसे कोई मिलता नहीं या बात नहीं करता, उनका सम्मान नहीं होता और उपेक्षा सहित उनको उत्तर दिये जाते हैं तो वह निराश होकर लौट जाते हैं, इसे देख कर बहुत दुःख होता है। हमारे अपने जीवन में अनेक संस्थाओं में ऐसे अनुभव रहे हैं और यदा कदा ऐसे दृश्य देखने को मिलते रहते हैं। इस पर सभी आर्यसमाजी संस्थाओं के अधिकारियों को ध्यान देना चाहिये।

इसी के साथ हम इस लेखन क्रम को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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