यों ही भौंकते रहेंगे

भौंकने और बहस करने वाले

– डॉ. दीपक आचार्य

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दुनिया तीन तरह के लोगों से भरी पड़ी है। एक वे हैं जो चुपचाप अपने काम करते रहते हैं, दूसरे उदासीन बने रहते हैं जबकि तीसरी प्रकार के लोग और कुछ करें या न करें, ये लोग भौंकने और बहस करने में माहिर होते हैं।

जो लोग अपने कामों में मस्त हैं उनके लिए उन लोगों का कोई मूल्य या वजूद नहीं होता जो कि वजह-बेवजह भौंकते रहते हैं और बेबात हर कहीं बहस करने लग जाते हैंं। आजकल बिना बात के भौंकने वालों और फिजूल की बहस करने वालों की तादाद  कुछ ज्यादा ही दिखने लग गई है।  ये लोग हमेशा इस फिराक में रहते हैं कि उनके भौंकने के अंदाज को देखकर लोग उनकी तरफ आकर्षित हों तथा उनकी बहस इतनी प्रभावी हो कि सामने वालों के समय पर डकैती पड़े और अपनी वजह से औरों के जीवन और काम-काज पर कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता रहे ताकि उनकी अहमियत को सभी जगह स्वीकारा जाने लगे।

भौंकने वालों को मंच की तलाश हमेशा बनी रहती है। और कहीं कोई उन्हें सुनने वाला न भी मिले तो ये अपनी ही गलियों में भौंक-भौंक कर अपने अस्तित्व का भान कराते रहते हैं।यों तो सभी लोगों को पता होता ही है कि किन-किन गलियों में कौन-कौन से लोग भौंकने के अभ्यस्त हैं और ये कहाँ-कहाँ भौंक सकते हैं।

कुछ लोग अपने-अपने गलियारों और अपनी गलियों में भौंकते रहते हैं जबकि खूब सारे ऎसे हैं जो दूसरों की गलियों में जाकर भी भौंकने का माद्दा पैदा कर लिया करते हैं।  कई गलियाँ कॉमन हैं जिनमें कहीं से भी कोई भी आकर भौंक सकता है।

भौंकने वालों के साहस का भी जवाब नहीं।  कई पूर्वाग्रही हैं, कई दुराग्रही हैं और कई सारे ऎसे हैं जो भौंकने की सारी सीमाओं को पार कर जाते हैं और भौंकने के साथ गुर्राने का स्वभाव भी पाल लिया करते हैं।

आजकल भौंकने का अपना अलग ही आकर्षण हो गया है। जो जितना ज्यादा और जोर से भौंकता है उसी का दबदबा माना जाता है। जबसे भौंकने वालों ने इस थ्योरी पर चलना शुरू कर दिया है तभी से भौंकने वालों का संप्रदाय बहुगुणित होता जा रहा है।  सारे के सारे एक-दूसरे पर भौंक रहे हैं।

यों तो गाहे-बगाहे या खास अवसरों पर भौंकना इनका स्वभाव ही हो चला है लेकिन अब तो साल भर भौंकने का सिलसिला बना ही रहता है। कई बार हम भी इनकी देखादेखी भौंकने पर उतर आते हैं और ऎसे भौंकने लग जाया करते हैं जैसे कि भौंकने की कोई प्रतिस्पर्धा ही हो रही हो।

साल भर में इतने सारे अवसर हमारे सामने आते हैं जब भौंकने वाले लोगों को अपनी प्रतिभा का भान होता है और भौंकने से भलाई ही होने का शाश्वत सत्य अनुभवित होता है।

हमारे महान भारतवर्ष में भौंकने वालों के एक नवीन संप्रदाय का उदय हो चुका है जो भौंकने और बहस करने के लिए ही पैदा हुए लगते हैं।  अलग-अलग स्थलों और मंचों से भौंकते रहकर अपने आपको भौंकने वालों में सर्वश्रेष्ठ साबित करने का शगल इतना परवान पर चढ़ा हुआ है कि अब हर तरफ भौंकने वालों को काम मिल गया है।

इन लोगों के लिए भौंकना अब पाँचवें पुरुषार्थ के रूप में शामिल हो गया है। इस प्रजाति के लोग हमेशा भौंकते रहने के इतने आदी हो चले हैं कि इन्हें धर्म-अधर्म, सत्यासत्य और शुभाशुभ किसी का कोई भान नहीं रहता, हर मामले में कुछ न कुछ कमी निकालकर भौंकना शुरू कर देते हैं।  त्रिकालज्ञ ऎसे कि उन विषयों पर भी भौंकने और बहस करने में दिमाग खपा लेते हैं जो भविष्य के गर्भ में हैं।

इन लोगों को कोई सा विषय दे दो, अपनी बहसिया प्रतिभा का कमाल दिखा ही देते हैं। भौंकने वालों में भी कई प्रायोजित होते हैं, कुछ पालतू और बहुत सारे फालतू। चारों तरफ भौंकने और बहस करने के शौक ने अब इण्डस्ट्री का रूप ही धारण कर लिया है।

भौंकने और अहस करने वालों का न सिद्धान्तों से कोई सरोकार है, न अच्छे चाल-चलन से। कुछ खुद की खुराफातों से भौंकते रहते हैं, कुछ दूसरों के कान फूंकने और चाबी भरने के बाद। भौंकने और बहस करने वालों के भरोसे न तो समाज को आगे ले जाया जा सकता है न देश को।

भौंकने वाले भौंकते रहेंगे, बहस करने और करवाने के आदी लोग बहसों में रमे रहेंगे लेकिन हमें चाहिए कि हम इन दोनों ही किस्मों की असलियत को जानें और अपने-अपने कामों में लगे रहें। यह तय मानकर चलें कि जो भौंकते हैं वे लोगों को भ्रमित करते हैं, खुद तो भ्रमित हैं ही।

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