पुस्तक समीक्षा : सुलगता मौन

 

‘ सुलगता मौन’

‘सुलगता मौन’ वर्तमान समाज की कई सच्चाइयों को उजागर करने वाली एक ऐसी पुस्तक है जो हमें बहुत कुछ सीखने ,समझने और सोचने को मजबूर करती है। पुस्तक के लेखक विजय जोशी हैं । जिन्होंने इस पुस्तक में कहानियों के माध्यम से अपने मन की वेदना और समाज की सच्चाई को प्रकट करने का सफल प्रयास किया है। पुस्तक में कुल 11 कहानियां हैं। जिनमें आस के पंछी, सबक, भीगा हुआ मन, अब ऐसा नहीं होगा, नर्म अहसास, कदमताल, नाटक, अपनों से पराए, सुलगता मौन, पटाखे, सीमे हुए अरमान सम्मिलित हैं।
प्रत्येक कहानी कुछ न कुछ ऐसा सबक देती है जो वाणी को तो मौन कर देती है, परंतु भीतर विचारों का एक तूफान खड़ा कर देती है। पाठक को सोचने के लिए मजबूर करती है कि वास्तव में आज के समाज को लेकर हम जा किधर रहे हैं ? गिरते हुए सामाजिक मूल्य, संतान कक माता-पिता से बनती जा रही दूरी, रिसते हुए रिश्ते और चारों ओर केवल अधिकारों की मारामारी के बीच कर्तव्यों को भूल जाने की मूर्खतापूर्ण सोच ने सारे समाज के ताने-बाने को अस्त-व्यस्त कर दिया है। समाज में सबको अपनी पड़ी है किसी खास रिश्ते के बारे में सोचने के लिए भी लोगों के पास समय नहीं है। जिसे देखकर लगता है कि हम घोंसला बना नहीं रहे हैं बल्कि बने बनाये घोंसलों को उजाड़ रहे हैं।
ऐसे में यह पुस्तक हमें फिर से एक वास्तविक सुसंस्कृत और सुसभ्य समाज बनाने की ओर प्रेरित करती हुई जान पड़ती है । लेखक ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को जागृत करने का सफल प्रयास किया है।
श्री विजय जोशी जी के विषय में यह कहना पूर्णतया सही है कि आलोचना के मर्म को गहनता से समझने वाले रचनाकार की सामाजिकता को सूक्ष्मता से परखने और आत्मसात करने की प्रवृत्ति इनकी रचनात्मकता को अद्भुतता देती है। संवेदनाओं के धरातल पर परिवेश को सुरम्य भाव भंगिमा में शब्दांकित करती कहानियों की एक श्रंखला है -‘सुलगता मौन’। जिसकी एक -एक कड़ी में वैयक्तिक अनुभूतियों का अथाह सागर भरा हुआ है।
कथा रत्नों से पूरित इस नवीन मंजूषा में अनेक रंगों का प्रकाश है जो संवेदनशील, सह्र्दयी पाठकों को न केवल अनुरक्त करेगा अपितु विचारणा के लिए प्रेरित भी करेगा ।
पुस्तक का प्रकाशन साहित्यागार जयपुर धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 30 2003 द्वारा किया गया है। प्रकाशक से पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क सूत्र 0 141- 2310785, चलभाष – 94689433 11 है । पुस्तक संग्रहणीय और पठनीय है । पुस्तक का मूल्य ₹200 है।

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