मुद्दों को भूल जाना हम भारतीयों का पुराना रोग है

वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए किसानों संबंधित कानूनों को लेकर देश के कुछ किसान आंदोलनरत हैं , उन पर आरोप है कि उनमें से अधिकांश यह नहीं जानते कि केंद्र सरकार जो कानून लाई है उसकी विषय वस्तु क्या है ? और वह किस का विरोध कर रहे हैं। वास्तव में मुद्दों के बारे में गहरी जानकारी ना होना या मुद्दों को भूल जाना हम भारतवासियों की पुरानी परंपरा है।


आप देखें कि आज भारत के जितने भी पड़ोसी देश हैं इन सब पर कभी विदेशी आक्रमणकारियों का आक्रमण होने का इतिहास नहीं मिलता। इसका कारण केवल एक ही है कि इन सभी देशों का अपना कोई दीर्घकालिक इतिहास नहीं है। इनका इतिहास भारत के साथ संयुक्त है अर्थात भारत का इतिहास ही इनका इतिहास है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि भारत के बारे में स्थापित किए गए उन मूर्खतापूर्ण तथ्यों पर भारत के पड़ोसी देश (जो कि कभी भारत के ही एक अंग रहे हैं) उपहास उड़ाते हैं ,जिनमें यह लिखा गया है कि भारत सदियों से विदेशियों के आक्रमणों को खेलता आया है । वे इस बात पर इस प्रकार हंसते हैं जैसे इस प्रकार के विदेशी आक्रमणों से होने वाली जनहानि को केवल आज के भारत ने ही झेला है और उन आक्रमणों के आक्रांताओं से भी केवल आज का ही भारत लड़ा है । जबकि सच यह है कि पाकिस्तान ,अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों के पूर्वज भी उस समय भारत के साथ मिलकर विदेशी आक्रमणकारियों को खदेड़ने में सम्मिलित रहे थे । आज अपने पूर्वजों के ही उस महान कार्य पर इन्हीं देशों के लोग उपहास करते हैं । ऐसा तब ही होता है जब व्यक्ति इतिहासबोध और राष्ट्रबोध से वंचित कर दिया जाता है । यह दुखद है कि हमें इतिहासबोध और राष्ट्रबोध से आज भी वंचित किए रखने का कुचक्र निरंतर जारी है। देश के हिंदू समाज पर तरस आता है कि वह इस कुचक्र का प्रतिरोध करने के लिए उठ खड़ा होना भी नहीं चाहता।


जब भारत पर आक्रमण करने वाले या उसे पराजित करने वाले वाले मुस्लिम होते हैं तो उन पर हिन्दू अतीत रखने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और अरब वालों की भी छाती चौड़ी होती है कि हम विदेशी थे और हमने कभी भारत को पराजित किया था। जबकि जिस समय कथित रूप से भारत को आक्रमणों के माध्यम से पराजित किया जा रहा था उस समय भारत अपने इन सभी क्षेत्रों या प्रांतों को बचाने के लिए कमर कसकर युद्ध कर रहा था। म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप, जावा, सुमात्रा ,बोर्नियो, कंबोडिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया आदि तक कभी भारत का ही विस्तार हुआ करता था। पिछले दो ढाई हजार वर्ष से जब से भारत का विखंडन होना आरम्भ हुआ , तबसे लेकर 1947 में जब पाकिस्तान अलग बना तो विद्वानों का मत है कि यह भारत का 24 वां विभाजन था ।इस प्रकार स्पष्ट है कि आज भारत के चारों ओर जितने भी उसके पड़ोसी देश हैं ये सब कभी न कभी भारत के इतिहास के एक अंग रहे हैं, आज उन्हीं के साथ हमें अपनी विदेश नीति निर्धारित करनी पड़ रही है। यदि मजहब नाम का राक्षस इतिहास की इस दीर्घकालिक परंपरा में कहीं से प्रवेश करने में सफल नहीं होता तो आज भी हम वास्तविक और अखंड भारत का दर्शन कर रहे होते। जो लोग यह कहते हैं कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ – उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि यदि मजहब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता है तो वह एक देश के 24 टुकड़े कैसे कर देता है?
राइट विंग इतिहासकारों के मुताबिक सन 1947 में भारत-पाक विभाजन के रूप में यह भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है। जबकि अंग्रेजों द्वारा 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 32 – 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।
जो लोग भारत में रहकर किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य होकर या किसी राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ता होकर अखंड भारत के संकल्प की बात दोहराते हैं उनमें से अधिकांश को यह पता नहीं है कि अखंड भारत के निर्माण के लिए कौन-कौन से देशों को भारत के साथ जोड़ना होगा ? वह केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत की बात करते जान पड़ते हैं ।अधिकांश लोगों को यह भी ज्ञात नहीं है कि वे 9 देश कौन कौन से हैं जिनके पास आज भी भारत का 5000000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल गुलाम पड़ा हुआ है ? बस भाषण देना और भाषण देकर ताली बजवा लेना इन राजनीतिक पार्टियों त संगठनों के नेताओं का काम रह गया है। यह कुल मिलाकर वैसे ही हैं जैसे सीएए और एनआरसी के विरुद्ध आंदोलन कर रहे लोगों को यह पता नहीं था कि सीएए और एनआरसी है क्या ?

हम ऐसे कितने लोग हैं जो नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वीतीय और सम्राट मिहिर भोज द्वारा अखंड भारत की साधना को याद कर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि राष्ट्रीय स्तर पर प्रदान करते हैं ? कुछ लोगों ने इन्हें जातीय आधार पर भुलाने का काम किया तो कुछ ने इन्हें केवल अपने लिए अपना लिया और इनकी पहचान जातिगत आधार पर बनाई। राष्ट्रीय आधार पर उन्हें राष्ट्रीय हीरो के रूप में स्थापित करने का काम करने से उन्होंने भी बचने का काम किया तो कुछ ऐसे हैं जो देश के इतिहास के इन महानायकों को अतीत की विस्मृतियों में ही दबाए रखना चाहते हैं। देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए काम करने वाले लोगों को इतिहास के उन अनेकों नायकों को राष्ट्रीय स्तर पर पूजनीय बनाना ही पड़ेगा जिन्होंने समय-समय पर इस देश की वास्तविक सीमाओं की रक्षा के लिए कार्य किया। ‘मुद्दों को उठाओ और उन्हें भूल जाओ’ की नीति से अब पल्ला झाड़ने का समय आ गया है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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