भारतीय इतिहास के साथ खिलवाड़

नितिन सिंह 

middle war

भारतीय इतिहास के साथ इस खिलवाड़ के मुख्य दोषी वे ”वामपंथी इतिहासकार” हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सहमति से प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागिर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया और इस गौरव को कम करने वाले इतिहास-खंडों को प्रमुखता से प्रचारित किया, जो उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के खाँचे में फिट बैठते थे !यहा वामपंथी इहिसकार केवेल दलित पिछडे नही अपितु काशी पीठ के आचार्य, ”शंकराचार्य” , ”धर्म गुरु” तक शामिल थे ! नेहरू इनको बड़ा हिस्सा देता था
कुछ अन्य तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत किया ! भारतीय इतिहास कांग्रेस पर लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, जिसके कारण इनके द्वारा लिखा या गढ़ा गया अधूरा और भ्रामक इतिहास ही आधिकारिक तौर पर भारत की नयी पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा, वे देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का सबसे अच्छा समय केवल तब था जब देश पर मुगल बादशाहों का शासन था !
तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं नये ‘तथ्यों’ को गढ़कर भी वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत में जो भी गौरवशाली है वह ”मुगल बादशाहों” द्वारा दिया गया है और उनके विरुद्ध संघर्ष करने वाले ”महाराणा प्रताप”, ”शिवाजी” आदि पथभ्रष्ट थे ! इनकी एकांगी इतिहास दृष्टि इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण थी कि वे आज तक ”महावीर”, ”बुद्ध”, ”अशोक”, ”चन्द्रगुप्त”, आदि शंकराचार्य आदि के काल का सही-सही निर्धारण नहीं कर सके हैं।
इसी कारण लगभग 1500 वर्षों का लम्बा कालखंड ”अंधकारपूर्ण काल” कहा जाता है, क्योंकि इस अवधि में वास्तव में क्या हुआ और देश का इतिहास क्या था, उसका कोई पुष्ट प्रमाण कम से कम सरकारी इतिहासकारों के पास उपलब्ध नहीं है !
इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि ”अलाउद्दीन खिलजी” और ”बख्तियार खिलजी” ने अपनी धर्मांधता के कारण दोनों प्रमुख पुस्तकालय जला डाले थे !
लेकिन बिडम्बना तो यह है कि भारत के इतिहास के बारे में जो अन्य देशीय संदर्भ एकत्र हो सकते थे, उनको भी एकत्र करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया गया ! इसकारण मध्यकालीन भारत का पूरा इतिहास अभी भी उपलब्ध नहीं है !
नेहरू की ”भारत एक खोज” को देश आज भी सरकारी रूप से अपना इतिहास मानता है !देश के बुढ़िजीवीवर्ग ने कभी इस तरफ सज्ञान नही लिया ! लगभग हर जाती का इतिहास उल्टा लिखा गया है , इस तरफ भारी मेहनत की जरूरत है !

वॉया फेसबुक

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