‘रोशनी’ से हो सकता है जम्मू कश्मीर के कई ‘राजघरानों’ में अंधेरा

घोटालेबाज़ गुपकार गैंग 
1947 में जब से भारत स्वतंत्र हुआ है, तब से लेकर आज तक देश में घोटाले थमने का नाम ही नहीं ले रहे। जबकि देश में इतनी अधिक भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ बन चुके हैं, उसके बावजूद घोटाले होना सिद्ध करता है कि जिस तरह जनसेवा के नाम पर नेता और पार्टियां घोटालों में लिप्त हैं, इस स्थिति में इन भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ का क्या है औचित्य, यह ज्वलंत प्रश्न है। 

भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्टाचार दूर करने के नाम पर जनता से वोट मांगते हैं और जनता किसी भी मौसम–सर्दी, गर्मी अथवा बारिश– में वोट देने लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े होकर अपना वोट देने जाती हैं। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। विश्व में भारत ही ऐसा अनूठा देश है, जहाँ सबसे अधिक पार्टियां है। कोई धर्म के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर अपनी-अपनी दुकानें खोलकर बैठ अपनी ही तिजोरियां भर रहे हैं, समस्याएं जस की तस बनी हुई है।

जम्मू-कश्मीर इतना बड़ा राज्य नहीं, लेकिन वह भी इस भ्रष्टाचार से अछूता नहीं। कभी जनता को अनुच्छेद 370 के नाम पर, कभी अलगाववाद के नाम पर, कभी हिन्दू राष्ट्र ने नाम से तो कभी धर्म एवं जाति के नाम पर उकसाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 की आड़ में किस तरह देश में अराजकता फ़ैला भ्रष्टाचार किया जा रहा था, सुनकर एवं देखकर आंखें फटी रह जाती हैं।

इस घोटाले की जाँच CBI ने अपने हाथों में ली हुई है। अभी तक के जाँच में कई खुलासे हुए हैं और इन सब के तार जम्मू कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों से जुड़ रहे हैं, जिनमें से एक फारूक अब्दुल्लाह का नाम पहले ही सामने आ चुका है। ‘न्यूज़ 18’ की खबर के अनुसार, अब पता चला है कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP ने जम्मू के संजवान क्षेत्र में तीन कनाल सरकारी भूमि पर अवैध रूप से कब्ज़ा जमा लिया।

इसके बाद इस जमीन पर पार्टी के दफ्तर का निर्माण कराया गया। इसी ऑफिस के पहले फ्लोर पर विवादास्पद नेता राशिद खान ने डेरा जमा लिया। जिस समय ये सब हुआ, उस वक़्त राज्य में मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार थी। 2 बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे सईद काफी विवादित नेता थे और उनके केंद्रीय गृह मंत्री रहते ही घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था। उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा सीएम बनी थीं।
‘न्यूज़ 18’ की खबर में एक CBI अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि गुजरे जमाने की फ़िल्मी हस्तियाँ फिरोज खान और संजय खान की बहन दिलशाद शेख ने भी राजधानी श्रीनगर में 7 कनाल सरकारी जमीन पर कब्ज़ा जमा लिया। दिलशाद ने जमीन को नियमित करने के लिए राशि भी नहीं जमा कराई लेकिन रोशनी एक्ट का इस्तेमाल किया। इसी तरह एक अन्य PDP नेता असलम मट्टू ने भी राजधानी में भूमि कब्जाई।
उन्होंने भी इसके तहत जमा कराई जाने वाली रकम नहीं दी। जम्मू-कश्मीर के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद के परिवार के एक सदस्य ने भी इस एक्ट का गलत तरीके से फायदा उठा कर सरकारी भूमि पर कब्ज़ा किया। फारूक अब्दुल्लाह ने दावा किया था कि अवैध रूप से कब्ज़ा की गई सरकारी जमीन के बदले चुकाई गई रकम से राज्य में बिजली आएगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
 

‘रोशनी एक्ट’ या ‘रोशनी स्कीम’ जैसा नाम सुनकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बिजली से जुड़ी कोई योजना होगी। जी नहीं, यह जम्मू कश्मीर में ‘अंधेरगर्दी’ से जुड़े एक घोटाले का नाम है। बेशक, रियल एस्टेट सेक्टर में सरकारी स्तर पर अरबों रुपए के घपले को अंजाम देने के लिए यह एक्ट लाया गया था। इस भूमि घोटाले के तहत हुए तमाम आवंटन और प्रक्रियाएँ निरस्त कर दी गई और हाई कोर्ट ने इसे पूरी तरह ‘गैर कानूनी और असंवैधानिक’ करार दे दिया।

जम्मू-कश्मीर के ‘रोशनी एक्ट’ भूमि घोटाले की लिस्ट सार्वजनिक होने पर हड़कंप मच गया है। क्योंकि फेरिस्त में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला समेत कई दिग्गज नेताओं के नाम सामने आए हैं। अब्दुल्ला पर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने का गंभीर आरोप है। हालाँकि, उन्होंने इसे एक बड़ी साजिश करार देते हुए सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है। फारुक अब्दुल्ला का कहना है कि इस इलाके में सिर्फ उनका ही घर नहीं है। उन्होंने कहा कि इन आरोपों से साफ पता चलता है कि सरकार की मंशा सिर्फ उन्हें फँसाने की है और कुछ नहीं।

अगर फ़ारूक़ की बात को सच भी माना जाए, तो एक भारतीय सांसद होते हुए क्यों जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस लाने के लिए चीन से सहायता लेने की बात बोल रहे हैं? क्या ऐसे लोग नेता कहलवाने योग्य हैं? क्या ऐसे नेता वोट के अधिकारी हैं?

फ़ारूक़ पर जमीन हड़पने का आरोप 

फारुक अब्दुल्ला पर सरकारी जमीन कब्जा कर घर बनाने का आरोप है। मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि जम्मू के सजवान में उनका जो घर है, वो जंगल की जमीन पर है। ये घर 10 कनाल में बना हुआ है। इनमें से 7 कनाल जंगल की जमीन है जबकि 3 कनाल जमीन उनकी अपनी है। आरोप ये है कि जमीन रोशनी एक्ट के तहत गलत तरीके से ली गई। हालाँकि पूर्व मुख्यमंत्री ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उन पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद हैं।

PDP और NC  नेताओं के नाम 

वहीं इससे पहले पीडीपी, एनसी समेत कांग्रेस के कई नेताओं के नाम इस घोटाले में सामने आए थे। इनमें से एक नाम जम्मू कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू का भी था। दरअसल 25,000 करोड़ रुपए के कथित रोशनी भूमि घोटाले के मामले की जाँच हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इस गड़बड़ी को ‘बेशर्म’ और ‘राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने वाला’ बताते हुए सीबीआई जाँच के आदेश दिए। आरोप है कि कश्मीर में प्रदेश के दो बड़े राजनीतिक दलों को करोड़ों की जमीन तय मूल्य से 85 प्रतिशत तक के कम मूल्य पर दी गई।

जम्मू कश्मीर के इतिहास में 25,000 करोड़ रुपए के सबसे बड़े घोटाले के तौर पर देखे जा रहे इस एक्ट को सिरे से खारिज कर दिया गया और हाई कोर्ट ने इसकी सीबीआई जाँच के आदेश दे दिए थे। सियासी कद्दावरों और ब्यूरोक्रेटों को सीधे तौर पर फायदा पहुँचाने के लिए बनाई गई इस खुराफाती स्कीम के बारे में सब कुछ जानिए।

क्या है ऐतिहासिक भूमि घोटाला?

इस स्कीम का आधिकारिक नाम जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट 2001 था, जिसे ‘रोशनी स्कीम’ के नाम से भी जाना गया। इसके तहत राज्य सरकार ने मामूली कीमतें तय कर उन लोगों को उन ज़मीनों पर स्थाई कब्जा देने की बात कही, जिन्होंने सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण कर रखा था। यानी सरकारी जमीनों पर गैर कानूनी कब्जों को कानूनी तौर पर मालिकाना हक देने की कवायद की गई।

तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला सरकार द्वारा 2001 में लाई गई इस स्कीम के तहत 1990 से हुए अतिक्रमणों को इस एक्ट के दायरे में कट ऑफ सेट किया गया था। सरकार का कहना था कि इसका सीधा फायदा उन किसानों को मिलेगा, जो सरकारी जमीन पर कई सालों से खेती कर रहे है। लेकिन नेताओं ने जमीनों पर कब्जे जमाने का काम शुरू कर दिया। वर्ष 2005 में तब की मुफ्ती सरकार ने 2004 के कट ऑफ में छूट दी। उसके बाद गुलाम नबी आजाद ने भी कट ऑफ ईयर को वर्ष 2007 तक के लिए सीमित कर दिया।

इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लग जाता है कि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने सीबीआई डायरेक्टर को इसकी जाँच के लिए एसपी रैंक के पुलिस अफसरों से कम की टीम नहीं बनाने को कहा था और गहराई से जाँच के बाद मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया। रोशनी ऐक्ट के तहत तत्कालीन राज्य सरकार का लक्ष्य 20 लाख कनाल सरकारी जमीन अवैध कब्जेदारों के हाथों में सौंपना था, जिसकी एवज में सरकार बाजार भाव से पैसे लेकर 25,000 करोड़ रुपए की कमाई करती।

रोशनी ऐक्ट सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए बनाया गया था। इसके बदले उनसे एक रकम ली जाती थी, जो सरकार तय करती थी। 2001 में फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जब ये कानून लागू किया था, तब सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए 1990 को कट ऑफ वर्ष निर्धारित किया गया था। लेकिन, उसके बाद की हर सरकारों ने इस कट ऑफ साल को बढ़ाना शुरू कर दिया, जिसकी आड़ में सरकारी जमीन की बंदरबाँट की आशंका जताई जा रही है। कोर्ट ने कहा था कि मुफ्ती मोहम्मद सईद (2004) और गुलाम नबी आजाद (2007) की सरकारों ने इस कानून में और संशोधन किए ताकि गैर-कानूनी रूप से जमीन हथियाने वालों को फायदा पहुँचाई जा सके।

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने लगाई थी फटकार

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों और सतर्कता अधिकारियों को ‘लूट की’ इस नीति के प्रति आँखें मूँदकर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कोताही बरतने के लिए जमकर लताड़ लगाई। अदालत ने सरकारी जमीन पर गैर-कानूनी कब्जा करने वालों को लेकर कहा कि इन लुटेरों की सत्ता में इतनी गहरी पैठ रही है कि यह अपने फायदे के लिए कानून भी बनवा सकते थे।

अदालत ने यह भी आशंका जताई कि जिस तरह से जमीन के ये लुटेरे प्रभावी रहे हैं, उससे लगता है कि उन्होंने नीति निर्धारण से लेकर उसके लागू करवाने तक में हर स्तर पर भूमिका निभाई है। अदालत की ऐसी टिप्पणी उन राजनेताओं के लिए भी सख्त संकेत हैं, जिनके कार्यकाल में ऐसे कानून बनाए गए हैं। अदालत ने यहाँ तक टिप्पणी की कि उन्होंने अब तक ऐसी आपराधिक गतिविधि नहीं देखी है, जिसमें सरकार ने राष्ट्रीय और जनता के हित को ताक पर रखकर कोई कानून बनाया हो और जनता के खजाने और पर्यावरण को होने वाले नुकसान का कोई आँकलन भी नहीं किया गया हो।

कितनी जमीन पर अवैध कब्जे?

जम्मू-कश्मीर में लाखों एकड़ सरकारी जमीन पर नेताओं, पुलिस, प्रशासन और रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अफसरों का कब्जा था। इस एक्ट के जरिए ही करीब ढाई लाख एकड़ जमीन पर कब्जे को कानूनी रूप दे दिया गया। करोड़ों रुपए की ये जमीनें नाम मात्र की कीमतों पर दी गई थीं। शुरुआती जाँच में पता चला है कि राज्य के कई पूर्व मंत्रियों ने खुद के साथ रिश्तेदारों के नाम पर भी कई एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा किया था।

क्यों मिला ‘रोशनी’ नाम और कैसे हुआ ‘अंधेर’?

अब्दुल्ला सरकार ने इस एक्ट को बनाते समय कहा कि जमीनों के कब्ज़ों को कानूनी किए जाने से जो फंड जुटेगा, उससे राज्य में पावर प्रोजेक्टों का काम किया जाएगा, इसलिए इस एक्ट का नाम ‘रोशनी’ रखा गया, जो मार्च 2002 से लागू हुआ। 1 एकड़ में 8 कनाल होते हैं और इस लिहाज़ से ढाई लाख एकड़ से ज्यादा अवैध कब्जे वाली जमीन को हस्तांतरित करने की योजना बनाई गई।

‘अंधेर’ ये था कि ज़मीन को मार्केट वैल्यू के सिर्फ 20 फीसदी दर पर सरकार ने कब्जेदारों को सौंपा। यानी कुल मिलाकर इससे 25 हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला होने की बात सामने आई। अंधेर ये भी रहा कि अब्दुल्ला सरकार के बाद की सरकारों ने भी इसका फायदा उठाया। 2005 में सत्तारूढ़ मुफ्ती सरकार ने कट ऑफ को 2004 तक बढ़ा दिया था और फिर गुलाम नबी आजाद सरकार ने 2007 तक।

किसे मिलता रहा नाजायज़ फायदा?

इस विवादास्पद रोशनी एक्ट से किस किसको फायदा हुआ? इस बारे में आई रिपोर्ट्स में कहा गया कि ‘स्थानीय स्तरों पर जो भी प्रभावशाली था या प्रभावशालियों के संपर्क में था’, हर उस व्यक्ति को फायदा पहुँचा। मंत्रियों, कारोबारियों, नौकरशाहों और इन सबके रिश्तेदारों या करीबियों को ज़मीनें कौड़ियों के भाव मिलीं। हसीब द्रबू, मेहबूब बेग, मुश्ताक अहमद चाया, कृशन अमला, खुर्शीद अहमद गनी और तनवीर जहान जैसे प्रभावशाली नाम इस लिस्ट में सामने आ चुके हैं।

इस घोटाले की गहराई की अंदाजा इस बात से लगाइए कि श्रीनगर शहर के बीचों बीच ‘खिदमत ट्रस्ट’ के नाम से कॉन्ग्रेस के पास कीमती जमीन का मालिकाना हक पहुँचा, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस का भव्य मुख्यालय तक ऐसी ही ज़मीन पर बना हुआ है, जो इस भूमि घोटाले से तकरीबन मुफ्त के दाम ​हथियाई गई।

एक लाख हेक्टेयर जमीन बाँट दी

बता दें कि जम्मू-कश्मीर के विवादित रोशनी एक्ट के तहत 20.55 लाख कनाल (1,02,750 हेक्टेयर) सरकारी जमीन लोगों को औने-पौने दाम में बाँट दी गई थी। इसमें से मात्र 15.58 प्रतिशत जमीन को ही मालिकाना हक के लिए मंजूरी दी गई। योजना का उद्देश्य था कि जमीन के आवंटन से प्राप्त होने वाली राशि का इस्तेमाल राज्य में बिजली ढाँचे को सुधारने में किया जाएगा। इस एक्ट के तहत रसूखदारों ने अपने तथा अपने रिश्तेदारों के नाम जमीन आवंटित करा ली।

एक्ट निरस्त होने का मतलब क्या है?

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अगुवाई वाली राज्य प्रशासनिक परिषद यानी SAC ने 2018 में रोशनी एक्ट को निरस्त किया, तो इसका शुरुआती मतलब यही था कि इस स्कीम में जो आवेदन या प्रक्रियाएँ पेंडिंग थीं, उन्हीं को निरस्त माना जाए। लेकिन, बाद में इसे लेकर हलचल बढ़ी और हाई कोर्ट ने इसे गैरकानूनी, अन्यायपूर्ण, असंवैधानिक और असंगत करार दे दिया।

हाई कोर्ट ने जब इसे सिरे से खारिज किया तो इस एक्ट की शुरुआत से हुई तमाम प्रक्रियाएँ और आवंटन गैर कानूनी हो गए। हाल में, जस्टिस गीता मित्तल व राजेश बिंदल की हाई कोर्ट बेंच ने सीबीआई जाँच के आदेश देकर यह भी कहा कि हर आठ हफ्ते में केस की जाँच के स्टेटस की रिपोर्ट दी जाती रहे।

‘रोशनी’ करा सकती है जम्मू-कश्मीर के ‘राजघरानों’ में ‘अंधेरा’, गुपकार से नहीं होगा बचाव

सुरक्षा एवं राजनीतिक विश्लेषक ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) के मुताबिक महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और कॉन्ग्रेस पार्टी को आखिर ‘गुपकार’ समझौता करने के लिए साथ आना पड़ा। दरअसल, ये लोग खुद को रोशनी एक्ट के घोटाले से बचाने के लिए ‘गुपकार’ बैठकें कर रहे हैं। इनका मकसद है कि देश-दुनिया का ध्यान ‘रोशनी’ जैसे बड़े घोटाले से हट कर गुपकार पर आ जाए।

ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता बताते हैं कि कई जगह की जमीन तो अब दूसरे व तीसरे व्यक्ति को बेची जा चुकी है। पावर अटॉर्नी का जबरदस्त खेल चला है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जम्मू और सांबा जिलों में जमीन हड़पने के मामलों की जाँच शुरू कर दी है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही इन नेताओं के चेहरे उतरे हुए थे। अब रही सही कसर ‘रोशनी’ एक्ट की जाँच ने पूरी कर दी।

जिन लोगों ने रोशनी एक्ट की आड़ लेकर करोड़ों रुपए की जमीनों पर कब्जे कराए हैं, वही लोग अब ‘गुपकार’ समझौते के जरिए देश दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाह रहे हैं। हालाँकि वे इसमें कामयाब नहीं होंगे, क्योंकि सीबीआई जब अपनी चार्जशीट दाखिल करेगी तो उस वक्त इन नेताओं के पास कोई जवाब नहीं होगा।

जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव पहले ही कह चुके हैं कि एक जनवरी 2001 के आधार पर सरकारी जमीन का ब्योरा एकत्र कर उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित करेंगे। कौन सी जमीन पर किसका कब्जा है, इस बाबत सभी अवैध कब्जा धारकों के नाम सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

अब नेताओं और उनके रिश्तेदारों के अलावा उन नौकरशाहों को भी पसीना आ रहा है, जिन्होंने जमीन पर कब्जा कराने में मदद की थी। सांबा जिले में राजस्व अधिकारियों ने रोशनी एक्ट के प्रावधानों का जान-बूझकर उल्लंघन कर सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कराया है।

बता दें कि यही वो गुपकार गैंग है, जिन्होंने अपने शासनकाल के दौरान जम्मू की डोगरा संस्कृति को खत्म करने का भरसक प्रयास किया है। साठ साल के शासन में इन लोगों ने सिलसिलेवार तरीके से गौरवशाली संस्कृति पर प्रहार किए हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी भी इसके लिए बराबर की जिम्मेदार है। यही वजह है कि अब जम्मू-कश्मीर में उसका अपना कोई वजूद नहीं रहा।

पिछले दिनों श्रीनगर में गुपकार समझौता हुआ है। यह समझौता केवल इसी बात को लेकर हुआ है कि अब रोशनी एक्ट घोटाले से खुद को कैसे बचाएँ। इन तीनों दलों के नेताओं ने थोक के भाव में रोशनी एक्ट का फायदा उठाया था। अनिल गुप्ता का कहना है कि अब उन्हें यह डर सताने लगा है कि जब अखबारों में उनके नाम सार्वजनिक होंगे तो जनता के बीच उनका नकाब उतर जाएगा।

इसी के चलते उन्होंने आपस में गुपकार समझौता कर लिया। इसमें उन्होंने अनुच्छेद 370 को दोबारा से लाने की माँग दोहराई है, जबकि हकीकत यह है कि वे रोशनी एक्ट से खुद को कैसे बचाएँ, लोगों तक किसी तरह इसकी सच्चाई न पहुँचे, इस बाबत रणनीति बना रहे हैं।

महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता यह बात अच्छे से जानते हैं कि बिना साथ आए वे रोशनी एक्ट पर लोगों को गुमराह नहीं कर सकेंगे। इसके लिए मिलकर रणनीति बनानी जरूरी है। हालाँकि अब इन तीनों दलों के नेताओं की पोल खुलनी तय है। जनता समझ चुकी है कि रोशनी एक्ट में क्या कुछ हुआ है। जल्द ही इनके चेहरे का नकाब उतरेगा और इनका असली चेहरा लोगों के सामने आएगा।                                                            (साभार )

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