भारत में नागरिकों के मौलिक अधिकार

भारतीय नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार प्रदान किये गये थे, परंतु 44वें संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकारों से नही रहा है। इस प्रकार भारतीय नागरिकों को केवल 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, जो इस प्रकार है-
1. समानता का अधिकार-कानून की दृष्टि में प्रत्येक नागरिक समान है। धर्म, जाति, वंश, लिंग, रंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नही किया जा सकता है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार- भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने, शांतिपूर्वक सम्मेलन करने, भारत कि किसी भी भाग में बसने, कोई भी काम करने की स्वतंत्रता है।
3. शोषण के विरूद्घ अधिकार-इसका तात्पर्य बेगार प्रथा पर रोक, मनुष्यों के क्रय विक्रय पर रोक तथा खतरनाक कार्यों पर बच्चों को लगाये जाने पर रोक से है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार-भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने, इच्छानुसार किसी की भी उपासना करने आदि की स्वतंत्रता है।
5. संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार-इसका तात्पर्य हर संप्रदाय को अपने संस्थान चलाने तथा अपनी भाषा व संस्कृति का विकास करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार-यदि कोई नागरिक अनुभव करता है कि उसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, तो उसे सर्वोच्च न्यायालय में अपने मौलिक अधिकार के प्रयोग हेतु जाने का अधिकार है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व-संविधान का आशय देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। इसके लिए नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार केन्द्र तथा राज्यों की सरकारों के लिए अपनी शासन की नीतियां निर्धारित करते समय इन सिद्घांतों का पालन वांछनीय है।

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