स्व-पर-हित का आचरण, इस सृष्टि का मूल

‘निशिदिन पीवै भंग’ से अभिप्राय, सभी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करने से है।पाखण्डी से अभिप्राय, दिखावटी भक्ति करने वाले से है।

गुरू बालक विद्वान हो,images (5)
बन जावै खूंखार।
इनका वध करना भला,
मत नही करो विचार ।। 364।।

खूंखार से अभिप्राय, आततायी से है।
अर्थ बांधता मित्र को,
अर्थ को बांधे मित्र।
पूरक हैं संसार में,
रिश्ता बड़ा विचित्र । 365।।

स्व-पर-हित का आचरण,
इस सृष्टि का मूल।
सब अर्थों की सिद्घि हो,
करना नियम कबूल । 366।।

भावार्थ-जो कर्म सब प्राणियों के लिए हितकारी है और जो अपने लिए भी सुख  को प्राप्त कराने वाला है, उस स्व-पर-हित साधक कर्म का आचरण करना चाहिए। कालांतर में फल देने वाले परमात्मा के फल देने में भी यही स्व-पर-हिताचरण मूल है और इसी से सब अर्थों अर्थात-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी चारों पुरूषार्थों की सिद्घि होती है।

बुद्घिबल भुजबल जहां,
पीछे चले कुबेर।
श्रेष्ठता और गुण तेज का,
बिरला पावै ढेर । 367।।

उत्तम गुणों की लालसा,
दुष्ट हृदय नही होय।
दुर्गुण मन माफिक लगें,
क्यों ऊर्जा को खोय । 368।।

सुंदर तन को छोड़कै,
मक्खी ढूंढ़ें घाव।
दुर्जन की पहचान है,
निन्दा चुगली का चाव । 369।।

पाप से पृथक रहे,
और शुभ कर्मों में लीन।
प्रभु-कृपा से भक्तजन,
रहते नहीं विहीन । 370।।

आयु, राजा, सर्प पर,
जो करे अति विश्वास।
आत्मप्रवंचना में रहे,
ये नही किसी के खास । 371।।

बुद्घि के पैने बाण से,
होवे जो चकनाचूर।
उसकी कोई औषधि नही,
कष्ट न होवे दूर । 372।।

करना नही कुलीन का,
भूलकै भी अपमान।
बदले की आग में जल उठे,
पूरा राष्ट्र महान। 373।।

कुलीन व्यक्ति अति तेजस्वी होते हैं। इनका अपमान किसी एक व्यक्ति अथवा परिवार को ही नही अपितु समूल राष्ट्र को नष्ट कर सकता है। यद्यपि कुलीन व्यक्ति क्षमाशील होते हैं। यदि ये बदला लेने पर उतारू हो जायें, तो जनाक्रोश का विस्फोट ज्वालामुखी बन कर फूटता है और सब कुछ स्वाहा कर देता है। जैसे महाभारत में द्रोपदी का अपमान तथा मगध के राजा महानंद द्वारा आचार्य चाणक्य का अपमान विश्वविख्यात है। आचार्य चाणक्य ने जब अपने अपमान का प्रतिशोध लिया तो नंद साम्राज्य को समूल नष्ट कर दिया था।                क्रमश:

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