क्या राहुल गांधी को अब अपने आप को प्रधानमंत्री की दौड़ से अलग कर लेना चाहिए ?

एक ही परिवार की परिक्रमा लगाए जाने के आरोपों से लगता है अब कांग्रेसियों का मन भर चुका है । वैसे भी कांग्रेस में परिवार के पास अब कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो पार्टी को ‘अच्छे दिन’ लौटा सके । वास्तव में यदि कांग्रेस की वर्तमान दुर्दशा पर विचार करें तो इसकी दुर्दशा का सबसे प्रमुख कारण सारी पार्टी को एक परिवार और परिवार में भी किसी व्यक्ति विशेष तक केंद्रित कर देने की ‘अनीति’ अधिक जिम्मेदार है। लोकतंत्र में सामंतवाद या राजतंत्र का कहीं कोई स्थान नहीं होता , परंतु कांग्रेस ने लोकतंत्र के नाम पर देश में लोकतांत्रिक राजतंत्र या राजतन्त्रीय लोकतंत्र स्थापित करने का अतार्किक प्रयास किया । जिससे पार्टी का भट्टा बैठ गया ।
पार्टी का सत्यानाश केवल किसी परिवार तक सीमित हो जाने से ही नहीं हुआ, पार्टी वैचारिक धरातल पर भी कमजोर हुई । कभी भी किसी भी नेता ने अतीत में की गई गलतियों से शिक्षा लेने की सार्वजनिक घोषणा नहीं की। इसका भी कारण केवल एक ही है कि ‘परिवार’ की परिक्रमा लगाते रहने के कारण ‘परिवार’ के ही लोग पार्टी के अध्यक्ष या प्रधानमंत्री बनते रहे , इसलिए अपने पूर्ववर्ती के द्वारा की गई किसी गलती का एहसास ना तो अपनी कार्यशैली से होने दिया और ना ही सार्वजनिक रूप से पार्टी के मंच पर ऐसा आभास दिया । जिससे पार्टी अपनी थोथी विचारधारा को ढोते रहने के लिए अभिशप्त हो गई।
वास्तव में राजीव गांधी के जमाने से ही कांग्रेस का पतन आरंभ हो गया था । यद्यपि दिखाने के लिए उस समय पार्टी के पास लोकसभा में प्रचंड बहुमत था। परंतु पार्टी में उस समय कई प्रकार की कमजोरियां देखी गई । उसके बाद सोनिया और राहुल की कांग्रेस तो कई बिंदुओं पर अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई। राहुल गांधी के पास न तो चेहरा है और ना ही कोई दर्शन है , ना ही कोई सोच है और ना ही कोई ऐसी विचारधारा है जिससे देश का उत्थान हो सके।
ऐसे में पार्टी के भीतर बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है। कांग्रेस का देश से सफाया होता जा रहा है और पार्टी नेतृत्व अपने आप को राज्य स्तरीय दल के रूप में परिवर्तित करने को आतुर सा दिखाई देता हैं । राहुल गांधी को केवल भाजपा को सत्ता से पीछे हटाने का उद्देश्य ही दिखाई देता है ,इसलिए वह किसी से भी जाकर हाथ मिला लेते हैं । दिल्ली में उन्हें अपनी पार्टी की हार का इतना दुख नहीं था जितनी भाजपा की पराजय की खुशी थी।

पार्टी नेतृत्व की इन छिछोरी हरकतों को देखकर अब पार्टी के भीतर विद्रोह पैदा होता जा रहा है । पार्टी के अंदर पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग ने कांग्रेस को लगभग दो हिस्सों में बांट दिया है। पार्टी के वरिष्ठ और युवा नेता आमने-सामने हैं। पार्टी के अंदर एक बड़ा तबका वरिष्ठ नेताओं की इस चिंता को कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव और अपने भविष्य की चिंता के तौर पर देख रहा है। ताकि, संगठन में उनका दबदबा बरकरार रहे।
पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकतर नेताओं के कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बहुत अच्छे रिश्ते नहीं है। क्योंकि, राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद युवा नेतृत्व पर ज्यादा भरोसा जताया है। राजस्थान संकट में राहुल गांधी ने गुलाम नबी आजाद और मुकुल वासनिक की जगह अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला पर भरोसा किया।
कांग्रेस के कई नेता इस पत्र को राहुल गांधी के खिलाफ अविश्वास के तौर पर भी देख रहे हैं। पार्टी ने पिछले एक माह में कई बार अधिकारिक तौर पर दोहराया है कि पूरी पार्टी राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर देखना चाहती है। यह पत्र राहुल गांधी के मुद्दे पर पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े करता है। इसके साथ पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं को अपने भविष्य की चिंता है।
गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता है। उनका राज्यसभा का कार्यकाल अगले साल फरवरी में पूरा हो रहा है। कश्मीर से उन्हें राज्यसभा मिलनी लगभग नामुमकिन है। ऐसे में पार्टी उनकी जगह किसी दूसने नेता को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बना सकती है। संगठन में उनके पास कोई पद नहीं है। ऐसे में वह संगठन के अंदर अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं।
लोकसभा सांसद मनीष तिवारी और शशि थरुर लोकसभा में संसदीय दल का नेता नहीं बनाए जाने से नाराज हैं। यूपीए-दो सरकार को लेकर पार्टी में उठे सवालों पर भी मनीष तिवारी ने काफी अक्रामक रुख अपनाया था। उन्होंने यह सवाल भी उठाए थे कि 2014 में हार के साथ 2019 के हार के कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए। 
पार्टी अध्यक्ष को भेजे पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं में सबसे चौकाने वाला नाम मुकुल वासनिक और मिलिंद देवड़ा है। मिलिंद के राहुल गांधी के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं, पर महाराष्ट्र से राज्यसभा नहीं मिलने से देवड़ा नाराज हैं। यही वजह है कि यूपीए-दो सरकार को लेकर पार्टी के अंदर उठी आवाजों को लेकर वह काफी मुखर रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व को भी घेरा था।कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री मानना है कि इस तरह के पत्र से पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि नुकसान होगा। हालांकि, वह इस बात से सहमत है कि कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि राहुल गांधी अब भी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी नहीं संभालते हैं, तो पार्टी के अंदर इस तरह के गुट और मजबूत होते जाएगें।
कुछ भी हो इस समय पार्टी को उभारने का एक ही रास्ता है कि पार्टी को परिवार की परिक्रमा से बाहर किया जाए । राहुल गांधी के लिए अच्छा यह होगा कि वह अपने आप को प्रधानमंत्री के दौड़ से भी बाहर कर दें और किसी युवा चेहरे को सामने लाकर खड़ा करें । इतना ही नहीं पार्टी के मुस्लिमपरस्त चेहरे को बदलने का प्रयास करें । पार्टी को चलाने के लिए नई सोच , नई दिशा , नई गति और नई इच्छाशक्ति लेकर आगे बढ़ना होगा । तभी कांग्रेस आगामी वर्षों में देश का नेतृत्व करने के योग्य बन पाएगी।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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