फिल्मी हीरो हमारे वास्तविक नायक क्यों नहीं हो सकते

भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति में साहित्य तथा कला का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गायन वादन नृत्य तथा नाट्य शास्त्र इतना महत्वपूर्ण तथा सशक्त कलlए हैं की उनको पूरा एक वेद सामवेद ही समर्पित है।उसी कड़ी में हमारे यहां नाट्यकला का भी अति महत्वपूर्ण स्थान है यह नाट्यशास्त्र ऐसी विद्या है जिसमें व्यक्ति और समाज की प्रगति के लिए उसकी जागरूकता के लिए प्रयोग होता है। जिन आदर्शों तथा सद विचारों को जनमानस में पहुंचाना होता था, उसके लिए नाटकों का मंचन किया जाता था। नाटकों के कथानक का  पूर्ण उद्देश्य जैसे सामाजिक बुराइयां,शौर्य और बलिदान की गाथा व  देशभक्ति का संदेश आदि अभिज्ञान शाकुंतलम् जैसे नाटकों द्वारा मानवीय संवेदनाओं का चित्रण था।नाटकों में कथानक उद्देश्य पूर्ण होते थे। परंतु कलाकार एक्टर नाटक में हीरो हीरोइन के चरित्रों को अपनी कला से जीवंत कर देते थे। जिससे कथानक का जन  मानस पर अपेक्षित प्रभाव पड़ता था। उस काल में एक्टर को नट तथा एक्ट्रेस को नटी कहते थे।यह नट  कथानक के जिन पात्रों का अभिनय करते थे उनकी गरिमा अक्षुण्ण रखते थे। इसलिए आज भी सत्यवादी हरिश्चंद्र व  शकुंतला  जैसे चरित्र जीवित है।

आज का चलचित्र जगत उसी का बिगड़ा हुआ रूप है जोकि कला जगत ना रहकर पैसा प्रधान व्यवसायिक जगत है। जिसमें सशक्त तथा उद्देश्य पूर्ण कथानक का स्थान केवल काल्पनिक तड़क-भड़क से भर भरपूर हिंसा अश्लीलता मार काट ने ले लिया है और यह व्यवसाय अब केवल मांसल मसाला कथानक मंचन का रह गया है। परंतु  सबसे घातक बात यह है की कुछ चतुर लोगों ने अपने स्वार्थ तथा धन की लालसा के लिए एक्टर तथा एक्ट्रेसेस को ही वास्तविक जीवन के नायक हीरो-हीरोइन बना दिया है ।जबकि वह तो वास्तविकता से उतना ही दूर हैं जितना की धरती से आसमान। हमारे वास्तविक हीरो नायक तथा नायिकाएं हीरोइन तो वह है जो देश और समाज के लिए अपना संपूर्ण बलिदान कर देते हैं। जैसे कि हमारे क्रांतिकारी भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र आदि के साथ-साथ हमारी फौज का प्रत्येक वीर सिपाही जो अपनी जान की परवाह ना कर अपने देश की सुरक्षा पर कुर्बान होने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। दुर्भाग्य से युवा पीढ़ी के दिल दिमाग में इन एक्टर-एक्ट्रेस को वास्तविक बलिदानी हीरो नायक नायिकाओं  के ऊपर बैठा दिया है।यह बहुत ही आत्मघाती है।

अत: हमें अपनी नई पीढ़ी को वास्तविकता से रूबरू कराना होगा और उनके मन में वास्तविक नायक व नायिकाये जो बलिदानी, त्यागी व तपस्वी थे,उनके लिए स्थान बनाना होगा और बताना होगा के यह नकली हीरो तथा हीरोइन तो नाटक के केवल नट तथा नटी हैं। हमारे स्वर्णिम इतिहास के महापुरुषों की तुलना में आज के फिल्मी कलाकारों को नायक मानना हमें आत्मग्लानि से भर देता है। हमें अपने महान पुरुषों के प्रेरणाप्रद इतिहास को पढना होगा और अपना स्वाभिमान जगाना होगा अन्यथा नटो और नटियों के मोह में हमारा भविष्य घोर अन्धकार में डूबने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

धन्यवाद

सर्वेश मित्तल
(राष्ट्रीय सलाहकार)
राष्ट्रीय सैनिक संस्थान (रजि.)
गाज़ियाबाद 201002
मोब.न. 98180 74320

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