‘ ड्रैगन ‘ ने फिर चली 1962 वाली चाल

संतोष पाठक

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भी सोमवार रात को चीन ने एक बार फिर से भारत को धोखा देने का प्रयास किया। बातचीत के लिए गए भारतीय सेना के अधिकारी पर धोखे से वार किया। हमला किया वो भी पीछे से और रॉड से।

चीन ने एक बार फिर से भारत को धोखा दिया है। चीन ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि यह देश भरोसे के लायक कतई नहीं है। 50 के दशक में हिंदी चीनी भाई भाई का नारा देकर 1962 में हमारे पीठ में खंजर घोंपने वाले चीन ने एक बार फिर से अपने नापाक इरादों को दिखा दिया है। हालांकि 1962 से लेकर 2020 तक सब कुछ बदल गया है। आज का भारत न तो 1962 का भारत है और न ही आज की दुनिया 1962 की दुनिया है। हालांकि यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि इस बीच सिर्फ एक चीज नहीं बदली है और वो है चीन की नापाक हरकत। चीन आज भी 50-60 के दशक के मुगालते में जी रहा है और इसलिए वो लगातार भारत की पीठ में खंजर भोंकने का प्रयास कर रहा है।

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भी सोमवार रात को चीन ने एक बार फिर से भारत को धोखा देने का प्रयास किया। बातचीत के लिए गए भारतीय सेना के अधिकारी पर धोखे से वार किया। हमला किया वो भी पीछे से और रॉड से। धोखे से हुए हमले के बावजूद बहादुर भारतीय सैनिकों ने करारा जवाब दिया। हमारे 20 जवान शहीद हो गए लेकिन चीन के 43 सैन्य अधिकारी और जवान या तो मारे गए या फिर बुरी तरह से घायल हो गए। चीन सही आंकड़ा दुनिया से छुपा रहा है लेकिन यह बताया जा रहा है कि भारतीय सेना ने चीन को बहुत बड़ी क्षति पहुंचाई है इसलिए बिलबिलाया हुआ चीन बार-बार भारत पर आरोप लगा रहा है और शांति का राग अलाप रहा है।

चीन के धोखे का जवाब तो भारतीय सेना ने बार्डर पर ही तुरंत दे दिया लेकिन इस बार सरकार भी चुप नहीं बैठने वाली है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार CCS की बैठक ले रहे हैं। रक्षा मंत्री CDS और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बातचीत कर रहे हैं। लगातार बैठकें हो रही हैं और इसके बाद सेना के तीनों अंगो को हाई-अलर्ट पर डाल दिया गया है। भारत ने यह साफ कर दिया है कि वो अपनी तरफ से लड़ाई की पहल नहीं करेगा लेकिन चीन के इस धोखे को बर्दास्त भी नहीं करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चीनी सेना के साथ हुई झड़प में शहीद हुए सैनिकों को नमन करते हुए कहा है कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की शुरूआत करते हुए देश को भरोसा दिया कि हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उन्होंने साफ किया कि भारत की अखंडता और संप्रभुता सर्वोच्च है और इसकी रक्षा हर कीमत पर की जाएगी। शांति को लेकर भारत की प्रतिबद्धिता को एक बार फिर से जाहिर करते हुए मोदी ने कहा कि भारत शांति चाहता है लेकिन उकसाने पर हर हाल में यथोचित जवाब देने में हम सक्षम है।

चीन के साथ विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाना हमेशा से ही भारत का मूल मंत्र रहा है। 1962 में धोखा खाने के बावजूद हमने कभी भी युद्ध को भड़काने की कोशिश नहीं की। 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पिछले 6 सालों में 18 बार मुलाकात हो चुकी है। कई बार दोनों नेताओं के बीच वन टू वन की मुलाकात हुई है तो कई बार महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई। बातचीत में हर बार चीन शांति का राग ही अलापता नजर आया लेकिन कोई यह नहीं जानता था कि इस बार भी चीन के मन में वही नापाक इरादें पनप रहे हैं जो वह 1962 में दिखा चुका है।

चीन की नापाक मंशा पर भारत ने साफ कर दिया है कि इस बार करारा जवाब दिया जाएगा और यह जरूरी भी है। इस बार चीन को सबक सिखाना ही चाहिए। कोरोना वायरस को दुनियाभर में फैलाने के लिए जिम्मेदार चीन वैश्विक स्तर पर विलेन बन चुका है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया सहित तमाम यूरोपीय देश चीन की भूमिका को लेकर क्षुब्ध है और कार्रवाई चाहते हैं। चीन अपनी विश्वसनियता, अंतर्राष्ट्रीयता मान्यता और व्यापारिक दृष्टि से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। यह सही वक्त है जब चीन को सबक सिखाया जा सकता है। चीन को यह बताने का वक्त तो आ ही गया है कि यह 1962 का भारत नहीं है। इस बार सीमा पर भारतीय सेना चीनी सेना के दांत तो खट्टे करेगी ही और साथ ही समुद्र से लेकर आकाश तक चीन को करारा जवाब दिया जाएगा। भारत को यह संकेत साफ-साफ चीन को देना होगा कि उसकी हरकतें जारी रहने पर भारत अपनी एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए चीनी कंपनियों को बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है। वर्तमान माहौल में अमेरिका समेत दुनिया का हर देश भारत का साथ देगा। तिब्बत की स्वतंत्रता की लड़ाई को भी अब खुलकर समर्थन देने का वक्त आ गया है और इसके लिए दलाई लामा को भी सक्रिय होना चाहिए। इसके साथ ही भारत को संयुक्त राष्ट्र के अन्य स्थायी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस के साथ मिलकर चीन को सुरक्षा परिषद से बाहर करने की कवायद भी शुरू करनी चाहिए। जाहिर-सी बात है िक अब अंतर्राष्ट्रीय माहौल तेजी से बदल रहा है और इसका लाभ उठाते हुए चीन को हर मोर्चे पर अलग-थलग करने का प्रयास करना चाहिए।

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