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*अंधविश्वास*

ईश्वर को मानने वाला भी अंधविश्वासी हो सकता है, ईश्वर को न मानने वाला भी उतना ही अंधविश्वासी, उतना ही सुपरस्टीशस हो सकता है। अंधविश्वास की परिभाषा समझ लेनी चाहिए।

अंधविश्वास का मतलब है, बिना जाने अंधे की तरह जिसने मान लिया हो। रूस के लोग अंधविश्वासी नास्तिक हैं, हिंदुस्तान के लोग अंधविश्वासी आस्तिक हैं। दोनों अंधविश्वासी हैं।

न तो रूस के लोगों ने पता लगा लिया है कि ईश्वर नहीं है और तब माना हो, और न हमने पता लगा लिया है कि ईश्वर है और तब माना हो। तो अंधविश्वास सिर्फ आस्तिक का होता है, इस भूल में मत पड़ना। नास्तिक के भी अंधविश्वास होते हैं।

बड़ा मजा तो यह है कि साइंटिफिक सुपरस्टीशन जैसी चीज भी होती है, वैज्ञानिक अंधविश्वास जैसी चीज भी होती है। जो कि बड़ा उलटा मालूम पड़ता है कि वैज्ञानिक अंधविश्वास कैसे होगा! वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होता है।

अगर आपने युक्लिड की ज्यामेट्री के बाबत कुछ पढ़ा है, तो आप पढ़ेंगे, बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं ज्यामेट्री तो युक्लिड कहता है रेखा उस चीज का नाम है जिसमें लंबाई हो, चौड़ाई नहीं। इससे ज्यादा अंधविश्वास की क्या बात हो सकती है? ऐसी कोई रेखा ही नहीं होती, जिसमें चौड़ाई न हो। बच्चे पढ़ते हैं कि बिंदु उसको कहते हैं जिसमें लंबाई चौड़ाई दोनों न हों। और बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इसको मानकर चलता है कि बिंदु उसे कहते हैं जिसमें लंबाई चौड़ाई न हो। जिसमें लंबाई चौड़ाई न हो, वह बिंदु हो सकता है?

हम सब जानते हैं कि एक से नौ तक की गिनती होती है, नौ डिजिट होते हैं, नौ अंक होते’ हैं गणित के। कोई पूछे कि यह अंधविश्वास से ज्यादा है? नौ ही क्यों? कोई वैज्ञानिक दुनिया में नहीं बता सकता कि नौ ही क्यों? सात क्यों नहीं? सात से क्या काम में अड़चन आती है? तीन क्यों नहीं? ऐसे गणितज्ञ हुए हैं। लिबनीत्स एक गणितज्ञ हुआ है जिसने तीन से ही काम चला लिया है। उसका ऐसा है कि एक, दो, तीन, फिर आता है दस, ग्‍यारह, बारह, तेरह, फिर आता है बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस। बस, ऐसी उसकी संख्या चलती है। काम चल जाता है, कौन सी अड़चन होती है! वह भी गिनती कर लेगा यहां बैठे लोगों की। और वह कहता है कि मेरी गिनती गलत, तुम्हारी सही, कैसे तुम कहते हो २: हम तीन से ही काम चला लेते हैं। वह कहता है, नौ की जरूरत क्या है? नौ कौन कहता है? आइंस्टीन ने बाद में कहा कि तीन भी फिजूल है, दो ही से काम चल जाता है। सिर्फ एक से नहीं चल सकता, बहुत मुश्किल होगी। दो से भी चल सकता है। नाइन डिजिट, नौ आकड़े होने चाहिए गणित में, यह एक वैज्ञानिक अंधविश्वास है। लेकिन गणितज्ञ भी पकडे हुए बैठा है कि इतने ही हो सकते हैं आकड़े। उससे कहो कि सात से काम चलेगा, तो वह भी मुश्किल में पड़ जाएगा। यह भी मान्यता है, इसमें कुछ और ज्यादा मतलब नहीं है।

हजारों चीजें वैज्ञानिक रूप से हम मानते हैं कि ठीक हैं, वे अंधविश्वास ही होती हैं। तो वैज्ञानिक अंधविश्वास भी होते हैं। इस युग में तो धार्मिक अंधविश्वास क्षीण होते जा रहे हैं, वैज्ञानिक अंधविश्वास मजबूत होते चले जा रहे हैं। फर्क इतना होता है कि अगर धार्मिक आदमी से पूछो कि भगवान का तुम्हें कैसे पता चला? तो वह कहेगा कि गीता में लिखा है। और अगर उससे यह पूछो कि तुम यह कह रहे हो कि गणित में नौ आकड़े होते हैं, यह तुम्हें कैसे पता चला है? तो वह कहेगा कि फलां गणितज्ञ की किताब में लिखा हुआ है। फर्क क्या हुआ इन दोनों में? एक गीता बता देता है, एक कुरान बता देता है, एक गणित की किताब बता देता है। फर्क क्या है?

मैं अंधविश्वास के एकदम विरोध में हूं। सब तरह के अंधविश्वास टूटने चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तोड्ने के लिए अंधविश्वासी हूं कि किसी भी चीज को तोडना चाहिए तो फिर बिना फिकिर उसको तोड्ने में लग जाने की जरूरत है। वह ठीक है या गलत, इसकी फिक्र छोड़ो, तोड़ो पहले, तोडना जरूरी है। फिर यह तोडना भी एक अंधविश्वास हो जाएगा।

इसका मतलब यह हुआ कि हमें समझ लेना चाहिए कि अंधविश्वास, सुपरस्टीशन का मतलब क्या है।

सुपरस्टीशन का मतलब है कि जिसे हम बिना जाने मान लेते हैं। और हम बहुत सी चीजें मान लेते हैं। और बहुत सी चीजें बिना जाने इनकार कर देते हैं, यह भी अंधविश्वास है।

– ओशो,
मैं मृत्यु सिखाता हूँ

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