लॉक डाउन से भारतीय कृषि आईसीयू किसान कंगाली के कगार पर : सरकार द्वारा किसानों को सीधे तौर पर कोई बड़ा राहत पैकेज नहीं

★ देश की 57 करोड़ की आबादी का कृषि के साथ सीधा जुड़ाव,सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था प्रभावित
“”””””””””'”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” ★ राकेश छोकर / नई दिल्ली
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से जारी लॉकडाउन में दुनिया की अर्थव्यस्था का ग्राफ नीचे लुढ़क रहा है।भारत कृषि प्रधान देश हैं, देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही निर्भर है।भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था इस लॉकडाउन में बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।जिससे बहुत से ज्वलंत मुद्दे उभर कर सामने आये हैं। इन्हीं सभी मुद्दों पर अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी से हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश —
★ कोरोनावायरस जनित महामारी के इस दौर में कृषि अर्थव्यवस्था किस तरह प्रभावित होगी ?
◆ “भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था पर ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था आधारित है।इसके साथ ही देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 16% प्रतिशत है। लगभग 70% प्रतिशत छोटे उद्योग खेती पर निर्भर करते हैं। ऐसी स्थिति में कृषि अर्थव्यवस्था सकल अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पहले से ही भारतीय कृषि आईसीयू में थी और इसके बाद कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजी परिस्थिति ने इसे और रसातल में पहुंचा दिया है। कोरोना वायरस से बाज़ार में गहन नकारात्मकता फैल गई है। चने के दाम गिरकर 3,650 रुपए प्रति कुंतल पर आ गए हैं, जबकि चने की एमएसपी 4,875 रुपए प्रति कुंतल है । सरसों के दाम गिरकर 3,600 रुपए प्रति कुंतल पर आ गए हैं जबकि सरसों की एमएसपी 4,425 रुपए प्रति कुंतल है। कपास की कीमत भी मंडियों में एमएसपी से 1000 रुपए प्रति क्विंटल तक नीचे चल रही है।सभी देशों का आपसी आयात-निर्यात बहुत कम हो गया है।

इसका प्रभाव हमारे देश में सोयाबीन, सरसों व अन्य तिलहनी फ़सलों के दामों पर भी पड़ा है और इनके दाम गिर गए।हमारे चावल, कपास, रबर, मांस व अन्य कृषि जिंसों के निर्यात और कीमतों पर दबाव बढ़ गया है। हमारी चायपत्ती के बड़े आयातक ईरान और चीन ने हमारे देश से चायपत्ती का आयात भी रोक दिया है। इससे चायपत्ती के दाम 40 प्रतिशत तक गिर चुके हैं, वहीं कृषि में प्रयुक्त होने वाली चीजे मसलन, बीज, खाद, कीटनाशक व खरपतवार नाशक दवाओं की उपलब्धता भी इससे प्रभावित हुई है। लॉकडाउन में कृषि को छूट मिलने के बावजूद स्थानीय स्तर पर प्रशासन तथा पुलिस द्वारा किसानों के साथ की जा रही ज्यादती, इसमें और बाधा खड़ी कर रहा है।
एक और महत्वपूर्ण बिंदु है जिस पर सरकार तथा उसके नीतिकार अभी नहीं समझ पा रहे है , वह यह कि, महानगरों में काम करने वाले जो बहुसंख्य मजदूरों के जत्थे अपने पैरों तथा दिलों में छाले लेकर अपने गांवों को लौट रहे हैं।वह अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मुख्यत: कृषि व्यवस्था में ही समाहित होंगे ।अर्थव्यवस्था के कई स्तरों पर इसके भी व्यापक प्रभाव पड़ेंगे।
कुल मिला कर कृषि अर्थव्यवस्था पर इन सभी चीजों का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और स्थिति गंभीर संकट की ओर जाने का स्पष्ट संकेत दे रही है।”
★ कृषि अर्थव्यवस्था के नकारात्मक होने का मुख्य कारण क्या होंगे ?
◆ देखिए, मैंने पहले ही कहा कि “कृषि पहले से बदहाल स्थिति में है, ऐसे में कृषि क्षेत्र को और कृषि अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना सबसे बड़ी आवश्यकता है। एक तो सरकारी नीतियां जो हैं, वह स्पष्ट नहीं है।सरकार के पास जो आंकड़े हैं, वह सही नहीं है ।भारत सरकार मानती है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में केवल 10 करोड़ किसान है। जबकि कृषि तथा कृषि संबद्ध कार्यों में संलग्न कुल आबादी लगभग 57 करोड़ है। सरकार योजना 10 करोड़ लोगों को ध्यान में रख कर बनाती है और स्थिति 57 करोड़ लोगों के सामने है। कृषि उत्पादों के लिए बाजार की समुचित अनुपलब्धता इसकी आर्थिकी को बर्बाद करता है। दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां ठप है। ऐसे में कृषि उत्पादों का निर्यात भी ठप्प है, यह कृषि अर्थव्यवस्था को गंभीर चोट पहुंचा रहा है। उदाहरण के लिए चीनी की केवल 25 प्रतिशत खपत घरेलू उपयोग में होती है।बाकि 75 प्रतिशत खपत संस्थानों में या व्यावसायिक उत्पादों- मिठाइयों, चॉकलेट, आइसक्रीम, पेय पदार्थों आदि में होती है। तमाम संस्थाओं और दुकानों के बंद होने के कारण यह खपत तेजी से गिर गई है। इससे गन्ना किसानों के गन्ना भुगतान की समस्या विकराल रूप ले सकती है। ब्राज़ील गन्ने और चीनी का बहुत बड़ा उत्पादक देश है।कच्चा तेल महंगे होने पर ब्राज़ील चीनी उत्पादन घटाकर एथनॉल उत्पादन बढ़ा देता है, परन्तु कच्चे तेल के दाम गिरने के कारण ब्राज़ील भी अब गन्ने से अधिक मात्रा में चीनी बनाने के लिए मजबूर है।इससे देश-दुनिया में चीनी के दाम और गिरेंगे। खपत कम और उत्पादन ज्यादा होने से कृषि उत्पादों के लिए बाजार सिकुड़ जाएगा औऱ इसका सीधा प्रभाव कृषि अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।”

★ भारतीय कृषि व्यवस्था पर क्या-क्या प्रभाव स्पष्ट दिखाई देंगे ?
◆ “लॉकडाउन की मार से कृषि अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है। मंडियों के बंद होने या कम क्षमता पर काम करने के कारण किसानों को फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे हैं और निकट भविष्य में यह संकट बना रहेगा। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जो सरकार ने वादा किया था, वह अब असंभव है। क्योंकि इसके लिए 15 फीसदी कृषि विकास दर की जरूरत है जो वर्तमान हालात में संभव नहीं है। किसानों की आय पहले से ही कम थी अब वे और कर्ज के जाल फंसेंगे ।भारतीय कृषि व्यवस्था में वास्तविक आय और मजदूरी में न के बराबर वृद्धि हुई है। कृषि के फायदेमंद न रहने के चलते किसानों की संख्या घट रही है, यह संख्या और घटेगी। पिछले कुछ समय से कृषि विकास दर तीन फीसदी से कम रही है। आशंका है कि 2020-21 में कृषि विकास दर 1.5 फीसदी ही रह जाएं ।”
★ भारतीय किसान की क्या स्थिति रहेगी ?◆”स्वाभाविक है कि भविष्य गंभीर संकट के अंदेशे से भरे हैं। किसानों की स्थिति पहले से ही बदहाल है ।कर्ज में डूबा किसान आत्महत्या का विकल्प चुनता है और लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियां बड़ी भयावह तस्वीर का खांका खींच रही है, न केवल किसानों की बल्कि जो खेतीहर मजदूर हैं उनकी तथा उनके साथ लीज पर या फिर बटाई पर खेती करने वाले किसानों की दशा बदतर होने जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा किसानों की दी जाने वाली सम्मान निधि प्रति वर्ष 6 हजार रुपये अपर्याप्त है। इस राशि को सालाना कम से कम 24 हजार किया जाना आवश्यक है। तभी किसान जरुरत भर सांस और भूख भर रोटी का इंतजाम कर सकते हैं। भारतीय किसान प्राइवेट कंपनियों के चक्रव्यूह में फंसा है और आऩे वाले समय में यह संकट कम होने के बजाय बढ़ेगा। इसके अलावा मजदूरी की लागत में वृद्धि, खेत की जोत का छोटा होते जाना, कभी ना ख़त्म होने वाला कर्ज का जाल, मौसम की मार से बचाने में निष्प्रभावी राहत व फसल बीमा, फसल के दाम में भारी अनिश्चितता किसानों की कमर तोड़ देगा।”
★ कृषि उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
◆ ” इस साल तो कृषि उत्पादन उम्मीद से बेहतर हुई है लेकिन जैसे हालात पैदा हो रहे हैं, ऐसे में किसानों के पास अगले सीजन की खेती करने के लिए बतौर पूंजी उनके पैसे ही नहीं होंगे। क्योंकि जो इस वर्ष फसल हुई है, उसकी पर्याप्त कीमत उन्हें नहीं मिल पा रही है। बाजार सिकुड़ा है, पैसे के अभाव में वे खेती उस ढंग से नहीं कर सकेंगे जैसे करते आये हैं। किसान पहले से ही कर्ज में फंसे हैं, साहूकारों को कर्ज की राशि या ब्याज इस वर्ष नहीं दे पाएंगे। तो स्वाभाविक है कि उन्हें आगे के लिए कर्ज मिलना मुश्किल होगा।वहीं साहूकारों के लिए भी कर्ज देना संभव नहीं होगा। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार में ठंडापन रहेगा, जिसका सीधा दुष्प्रभाव किसानों पर पड़ेगा औऱ कृषि उत्पादन प्रभावित होगा।”
★ कृषि उत्पादों के आयात निर्यात की क्या संभावनाएं रहेंगी ?
◆ “दुनिया के देशों की भी अर्थव्यवस्था धाराशायी हुई है। इससे भारत से आयात करने वाले देश भी पहले की अपेक्षा कम मात्रा में कृषि उत्पादों का आयात करेंगे। इसके अलावा रबी की फसल अच्छी हुई है साथ ही जड़ी-बुटियों के निर्यात में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है लेकिन निर्यात की मात्रा भी कम होगी।दोनों ही परिस्थितियां चिंता पैदा करने वाली है।इसके लिए सरकार को निर्यात नियमों को थोड़ा लचर बनाना होगा, जिससे कि वैश्विक बाजार तक भारतीय कृषि उत्पादों की पहुंच सरल व सुगम हो सके।”
★ वैश्विक महामारी के साथ कृषि को लेकर उपजी समस्याओं के बाद सरकार ने क्या समाधान खोजें हैं, वह किस स्तर तक उम्मीदों पर खरे उतरे ?
◆ “अभी तक सरकार ने कृषि क्षेत्र को लेकर कोई बड़े राहत पैकेज की कोई घोषणा नहीं की है।जो पहले की योजनाएं थी उन्हीं को फौरी तौर पर गति दी है। इससे कोई विशेष लाभ नहीं हो सकता। इसके लिए सरकार को बड़े स्तर पर राहत पैकेज देना होगा। इस वैश्विक महामारी के बाद कृषि क्षेत्र को उबारने के लिए अभी सरकार क्या योजना लेकर आएगी, इस पर केवल कयास लगाये जा सकते हैं, देखना होगा कि सरकार क्या कदम उठाती है। निश्चित तौर हमें उम्मीद करनी चाहिए कोई अच्छी पहल हो।”
★ आपकी नजर में क्या उचित सुझाव और समाधान हो सकता है? किसानों की समस्या के समाधान और कृषि व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आईफा का क्या योगदान रहेगा ?
◆ “खेती किसानी के मामले में सरकार पूरी तरह से दिग्भ्रमित प्रतीत होती है ।देश की खेती किसानी के जीर्णोद्धार की दूरगामी ठोस योजना तथा उसे क्रियान्वयन करने हेतु आवश्यक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दोनों का ही सरकार में अभाव है।कृषि क्षेत्र औऱ किसानों को इस महामारी से उपजी परिस्थितियों से उबारने के लिए सरकार को एक व्यापक रणनीति औऱ समग्र कृषि नीति बनानी होगी।आईफा ने प्रधानमंत्री को देश के 52 किसान संगठनों के सलाह मशविरा कर एक 25 सूत्री मार्गदर्शी सुझाव पत्र सौंपा है, कि वर्तमान हालात से उबरने के लिए फौरी तौर पर सरकार को क्या करना चाहिए, जिससे कृषि और किसानों की गतिविधियों को गति दी जा सके। किसानों की एक न्यूनतम आय सुनिश्चित करने, किसानों के लिए न्यायोचित व् लाभप्रद समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाना, क्षेत्रीय स्तर पर किसान को सीधे उपभोक्ता से जोड़ने का प्रयास, जैविक, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर समेकित टिकाऊ खेती को मजबूत बनाना, खेती के लिए उपयुक्त बीज, खाद, पेस्टिसाइड आदि तथा अन्य नवीन तकनीकियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, किसान खेत स्कूल विकसित किये जाने तथा प्रभावी कृषि विस्तार सेवाओं के किसान तक पहुंचाने, लघु, सीमान्त व् किराए पर जमीन लेकर खेती करने वाले किसानों के लिए भी बैंकों से आसान शर्त पर कर्ज की उपलब्धता, जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर मौसम आधारित पूर्वानुमान जानकारियां, उपयोग करने लायक कृषि सलाह, जलवायु अनुकूलन बीज आदि किसानों तक पहुंचाने के बारे में सोचना होगा औऱ इसके लिए आधारभूत संरचना को दुरुस्त करना होगा।. फसल की क्षति होने पर समुचित राहत व बीमा लाभ किसानों तक पहुंचाने में सरकार को पहले की परिस्थितियों से अब और आगे बढ़ कर किसानों, किसान संगठनों के साथ मिलकर नीतियां बनानी होगी तथा उसके कार्यान्वयन में भी सभी भागीदारों को शामिल करना होगा। क्रियान्वयन के हर स्तर सतत निगरानी व समीक्षा हेतु सक्षम तंत्र विकसित करना होगा।

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