सख्तियों के बगैर लॉकडाउन संभव नहीं

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

कोरोना-संकट के दौरान आरोग्यकर्मियों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है, वह बहुत ही सामयिक है। कोरोना के युद्ध में भारत ने सारी दुनिया में अपनी मिसाल कायम की है लेकिन कुछ शहरों और गांवों में डाक्टरों, नर्सों और पुलिसवालों के साथ जो लोग मार-पीट, पत्थरबाजी और गाली-गलौज कर रहे हैं, उन्हें रोकना बहुत जरुरी है। उनकी सर्वत्र निंदा हो रही है, टीवी चैनल और अखबार उनकी बदतमीजियों को काफी दिखा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद अप्रिय घटनाएं लगभग रोज हो रही हैं। अब तो लोग पुलिसवालों पर हमला करने पर भी उतारु हो गए हैं। कई शहरों से आज इसी तरह की खबरें आ रही हैं। लोग पाबंदियां तोड़ रहे हैं और पुलिस उन्हें रोकती है तो उन पर पथराव होता है। महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और एक ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई और पुलिसवाले देखते रह गए। उन्होंने हिम्मत करके अपराधियों को रोका क्यों नहीं ? शायद उन्हें अपनी जान जाने का डर लग रहा हो। इसीलिए मैं कहता हूं कि डाक्टरों और नर्सों के साथ-साथ पुलिसकर्मियों के लिए भी अध्यादेश में समुचित प्रावधान किए जाने चाहिए। उनके साथ-साथ पत्रकारों (रिपोर्टरों) को भी जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि वे भी दुर्गम से दुर्गम जगह पर पहुंच जाते हैं, अपनी जान हथेली पर रखकर! यदि आज हमारे पत्रकार भी नेताओं की तरह अपने घरों में छिपकर बैठ जाएं तो देश की जनता दिग्भ्रमित हो जाएगी। यदि अखबार और टीवी बंद हो जाएं तो सारा देश गलतफहमियों और अफवाहों का शिकार हो जाएगा। देश की सरकारें जनता के भले के लिए जो संदेश फैला रही है, वे उस तक कैसे पहुंचेंगे। यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि अब भी दर्जनों देशी और विदेशी लोग कोरोना को छिपाते हुए पकड़े गए हैं। यह ठीक है कि तबलीगी जमात ने जान-बूझकर किसी साजिश की तरह कोरोना को नहीं फैलाया है लेकिन बदनामी और डर के कारण वे लोग अभी भी सामने नहीं आ रहे हैं। मैं उनसे कहता हूं कि वे डरे नहीं। सामने आएं। अपना और अपने संपर्कियों का इलाज करवाएं। इंसानियत का परिचय दें। कोरोना को फैलने से रोकें। जो प्रवासी मजदूर, छात्रगण और यात्री लोग अधर में लटके हुए हैं, उन्हें यथास्थान भिजवाने के लिए सारी राज्य-सरकारें समुचित प्रावधान करें। यदि हम सब लोग मिलकर लड़ेंगे तो कोरोना के बाद का भारत एक शक्तिशाली और संपन्न भारत बनकर उभरेगा।

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