बच्चों की मनोदशा पर ‘कोरोना वायरस’ डाल सकता है बुरा प्रभाव

प्रभुनाथ शुक्ल

ग्लोबल स्तर पर कोरोना संक्रमण की वजह हाहाकार मचा है। अब तक कई लाख लोग मौत के गाल में समा चुके हैं। लाखों लोग संक्रमित हैं। भारत में लॉक डाउन है, आपातकाल की स्थिति है। दुनिया की अर्थव्यवस्था गर्त में चली गई है। खरबों रुपए डालर का नुकसान हुआ है। लेकिन दुनिया भर में कोरोना का खतरा बढ़ता जा रहा है। भारत में शहरों से मजदूरों का तेजी से पलायन हो रहा है। सरकार चाह कर भी पलायन नहीँ रोक पा रहीं है। लोग घरों में कैद हैं। लोग अपने भविष्य को लेकर भी डरे हैं। घरों में सबसे अधिक बच्चों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। माता- पिता को बच्चों के चिड़चिड़ा होने का खतरा सता रहा है। क्योंकि वह घरों से निकल नहीँ पा रहें हैं उनकी आजादी छीन गई है। इस लॉक डाउन में बच्चों के मनोविज्ञान को समझना अविभावकों के लिए दिमागी उलझन और चिंता बन गई है। हालांकि सरकार यह कह रहीं है कि लॉक डाउन बढ़ाने का कोई विचार नहीँ है, लेकिन यह महज दिलाशा है। संक्रमण की स्थिति इसी तरह बढ़ती रहीं तो सरकार को इसे बढ़ाने के साथ कठोर फैसले करने पड़ सकते हैं।
कोरोना महामारी के कारण लोग घरों में कैद हैं, इस समस्या से निपटना भी एक चुनौती है। सबसे बड़ी मुश्किल बच्चों को सम्भला है। बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं सामाजिक विकास को संतुलित एवं सही दिशा में बनाए रखना अभिभावकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह ऐसा वक्त है जब बच्चों के साथ हमें सुमधुर व्यवहार करना होगा। उनकी हर बात को गम्भीरता से लेना पड़ेगा। मानसिक अवसाद का वह शिकार न हों इसका भी भरपूर ख़याल रखना होगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एआरटी सेंटर में तैनात वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ मनोज कुमार तिवारी एक मनोचिकित्सक
हैं, वह भी इस स्थिति को बेहद घातक मानते हैं। वह कहते हैं कि अगर इसे हम गम्भीरता से नहीँ लते हैं तो मुश्किल बढ़ेगी।लम्बे समय तक एकांतवास से बच्चों और उम्रदराज लोगों की मनोदशा को भी कोरोना प्रभावित कर सकता है। उन्होंने परिवार वालों के लिए यह बड़ी चुनौती बताया है। डा. तिवारी के अनुसार सोशल मीडिया पर बच्चों के शरारत संबंधी अनेक वीडियो एवं मैसेज वायरल हो रहे हैं। अनेक अभिभावक ऐसी स्थिति में फोन करके एवं मैसेज के माध्यम से भी सलाह मशवरा कर रहे हैं। जिसको ध्यान में रखकर बच्चों की सही परवरिश एवं विकास को दिशा प्रदान किया जा सकता है। कुछ गतिविधियां एवं सावधानियां रख करके इस कठिन समय में बच्चों के विकास को संतुलित दिशा प्रदान की जा सकतीं है।
परिजनों को बच्चों में सृजनात्मक क्रियाकलापों के लिए प्रेरित करना होगा। उनके भीतर के कौशल को बाहर निकालना होगा। चित्रकला , खिलौने बनाना, संगीत सीखना व नृत्य सीखना जरूरी है। बच्चों को सुबह देर तक सोने दें। दिन में भी कम से कम बच्चों को 2 घंटे आराम करने के लिए कहें। बच्चों को आपस में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें इसके आलावा बच्चों के साथ कुछ समय खुद भी उनके खेल में शामिल हो तथा उन्हें नए खेल सिखाने का प्रयास करें। उन्हें प्रेरणादायक कहानियां एवं किस्से सुनाए। कुछ समय बच्चों को टेलीविजन देखने के लिए अवसर दें किंतु बच्चे कौन से कार्यक्रम देखेंगे इस पर अपना नियंत्रण बनाए रखें। सुबह शाम बच्चों को अपने साथ व्यायाम एवं योगा में शामिल करें।
अविभवकों चाहिए कि बच्चों को शैक्षिक गतिविधियों में संलग्न करने का प्रयास करें। सुलेख लिखने को दें। इसके अलवा उनके दिमाग को स्पर्धाओं की तरफ़ ले जाएं।
गणित के कुछ प्रश्न हल करने आलावा दूसरे काम भी दिया जाय। इससेे उनका समय भी व्यतीत होगा तथा उनका मानसिक विकास भी होता रहेगा। बच्चों से उनके योग्य घरेलू कामों में सहयोग लें इससे न केवल उनका समय व्यतीत होगा बल्कि उनमें जिम्मेदारियों के निर्वहन की प्रवृत्ति विकसित होगा। उनके मनपसंद का काम करने के लिए भी कुछ समय आरक्षित करें। जैसे संगीत सुनना, फोन पर मित्रों से बातचीत करना इत्यादि। कामिक्स पढ़ने के लिए कुछ समय प्रदान करें।
परिवार में प्रायः ऐसा देखा गया है कि बच्चों की तरफ़ से पूछे गए सवालों को हम टाल जाते हैं। उन्हें बहला देते हैं या फ़िर डाट कर मुँहबंद करा देते हैं जबकि ऐसा करना बच्चों के दिमाग पर बुरा प्रभाव डालता है। उनमें कुंठा पैदा होतीं है। इसलिए मासूम बच्चों के प्रश्नों का उत्तर जरूर देना चाहिए। लॉक डाउन की वजह से बच्चे यह सवाल पूछ सकते हैं कि हम घर में कैद क्यों हैं तो उन्हें शांति व सौहार्द से इसकी आवश्यकता एवं महत्व को समझाएं। स्वयं अनुशासित एवं नियमित दिनचर्या अपनाकर बच्चों को भी वैसा ही करने के लिए प्रेरित करें। यदि आप स्वयं लापरवाही भरा व्यवहार करेंगें और बच्चों को अनुशासित रहने को कहेंगे तो वे ऐसा कदापि नहीं करेंगे। अनेक शैक्षिक संस्थाएं ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रही हैं यदि संभव हो तो बच्चे को उसमें जोड़ें। भोजन का मैनू यथासंभव बदलते रहें, कोशिश करें बच्चों के रूचि का भोजन बने किंतु पौष्टिकता एवं बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान अवश्य रखें।
बचपन बड़ा समझदार और लचीला होता है। बच्चे हर काम बेहद जल्द सीख जाते हैं। उनमें नक़ल की प्रवित्ति बड़ी तेज होतीं है। ऐसे माता- पिता को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बच्चों को भूलकर भी इस तरह के काम नहीँ करने देना चाहिए। कई बार माता-पिता एवं अभिभावक ऐसा व्यवहार बच्चों के साथ करते हैं जिससे बच्चों के मन पर न केवल बुरा असर पड़ता है बल्कि उनका समुचित विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। इस पर सावधानी बरतें। बच्चों को अधिक समय तक मोबाइल पर गेम खेलने ना दें। किसी अतार्किक मांग को कदापि पूरा न करें। अपने व्यवहार को संयमित रखें अन्यथा जब आप उन्हें रोकेंगे किसी व्यवहार के लिए तो आपकी बात को गंभीरता से नहीं लेंगे। हर बात पर व हर समय उन्हें टोकना नहीं चाहिए। इससे बच्चों के चिड़चिड़ा होने की संभावना बहुत अधिक होती है। बच्चों को बात-बात पर डांटे एवं मारे पीटें न । बच्चों की बातों को अनसुना न करें, उनकी उपेक्षा न करें तथा उन्हें तिरस्कृत ना करें। बच्चों के प्रश्नों का उत्तर उनके उम्र के अनुसार प्रदान करें उनके प्रश्नों को बार-बार टाले ना और ना ही उन्हें प्रश्न पूछने के लिए हतोत्साहित करें। ऐसा करने से बच्चों के सृजनात्मक क्षमता का दमन होता है। बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। उस हालत में बच्चों पर अधिक समय देने की ज़रूरत है। हमारे लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है। इससे हमें बचना होगा। सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करें अपने परिवार के साथ रहना चाहिए। बिना ज़रूरत के हमें बाहर निकलने से बचना होगा। जान है तो जहान है। अमरीका, इतनी, ब्रिटेन, स्पेन की हालत किसी से छुपी नहीँ है। हम इस तरह का कोई कदम न उठाएं जिससे उन पर बुरा असर पड़े। घर में बच्चों को अकेला न छोड़े। एक साथ सभी परिवार के लोग उनके साथ घुलमिल जाएं। इस स्थिति में हमें यह समझना होगा कि कोरोना बच्चों की सोच और उनका मनोविज्ञान भी बदल सकता है।बच्चों की मनोदशा पर ‘कोरोना वायरस’ डाल सकता है बुरा प्रभाव

प्रभुनाथ शुक्ल

ग्लोबल स्तर पर कोरोना संक्रमण की वजह हाहाकार मचा है। अब तक कई लाख लोग मौत के गाल में समा चुके हैं। लाखों लोग संक्रमित हैं। भारत में लॉक डाउन है, आपातकाल की स्थिति है। दुनिया की अर्थव्यवस्था गर्त में चली गई है। खरबों रुपए डालर का नुकसान हुआ है। लेकिन दुनिया भर में कोरोना का खतरा बढ़ता जा रहा है। भारत में शहरों से मजदूरों का तेजी से पलायन हो रहा है। सरकार चाह कर भी पलायन नहीँ रोक पा रहीं है। लोग घरों में कैद हैं। लोग अपने भविष्य को लेकर भी डरे हैं। घरों में सबसे अधिक बच्चों के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। माता- पिता को बच्चों के चिड़चिड़ा होने का खतरा सता रहा है। क्योंकि वह घरों से निकल नहीँ पा रहें हैं उनकी आजादी छीन गई है। इस लॉक डाउन में बच्चों के मनोविज्ञान को समझना अविभावकों के लिए दिमागी उलझन और चिंता बन गई है। हालांकि सरकार यह कह रहीं है कि लॉक डाउन बढ़ाने का कोई विचार नहीँ है, लेकिन यह महज दिलाशा है। संक्रमण की स्थिति इसी तरह बढ़ती रहीं तो सरकार को इसे बढ़ाने के साथ कठोर फैसले करने पड़ सकते हैं।
कोरोना महामारी के कारण लोग घरों में कैद हैं, इस समस्या से निपटना भी एक चुनौती है। सबसे बड़ी मुश्किल बच्चों को सम्भला है। बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं सामाजिक विकास को संतुलित एवं सही दिशा में बनाए रखना अभिभावकों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह ऐसा वक्त है जब बच्चों के साथ हमें सुमधुर व्यवहार करना होगा। उनकी हर बात को गम्भीरता से लेना पड़ेगा। मानसिक अवसाद का वह शिकार न हों इसका भी भरपूर ख़याल रखना होगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एआरटी सेंटर में तैनात वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ मनोज कुमार तिवारी एक मनोचिकित्सक
हैं, वह भी इस स्थिति को बेहद घातक मानते हैं। वह कहते हैं कि अगर इसे हम गम्भीरता से नहीँ लते हैं तो मुश्किल बढ़ेगी।लम्बे समय तक एकांतवास से बच्चों और उम्रदराज लोगों की मनोदशा को भी कोरोना प्रभावित कर सकता है। उन्होंने परिवार वालों के लिए यह बड़ी चुनौती बताया है। डा. तिवारी के अनुसार सोशल मीडिया पर बच्चों के शरारत संबंधी अनेक वीडियो एवं मैसेज वायरल हो रहे हैं। अनेक अभिभावक ऐसी स्थिति में फोन करके एवं मैसेज के माध्यम से भी सलाह मशवरा कर रहे हैं। जिसको ध्यान में रखकर बच्चों की सही परवरिश एवं विकास को दिशा प्रदान किया जा सकता है। कुछ गतिविधियां एवं सावधानियां रख करके इस कठिन समय में बच्चों के विकास को संतुलित दिशा प्रदान की जा सकतीं है।
परिजनों को बच्चों में सृजनात्मक क्रियाकलापों के लिए प्रेरित करना होगा। उनके भीतर के कौशल को बाहर निकालना होगा। चित्रकला , खिलौने बनाना, संगीत सीखना व नृत्य सीखना जरूरी है। बच्चों को सुबह देर तक सोने दें। दिन में भी कम से कम बच्चों को 2 घंटे आराम करने के लिए कहें। बच्चों को आपस में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें इसके आलावा बच्चों के साथ कुछ समय खुद भी उनके खेल में शामिल हो तथा उन्हें नए खेल सिखाने का प्रयास करें। उन्हें प्रेरणादायक कहानियां एवं किस्से सुनाए। कुछ समय बच्चों को टेलीविजन देखने के लिए अवसर दें किंतु बच्चे कौन से कार्यक्रम देखेंगे इस पर अपना नियंत्रण बनाए रखें। सुबह शाम बच्चों को अपने साथ व्यायाम एवं योगा में शामिल करें।
अविभवकों चाहिए कि बच्चों को शैक्षिक गतिविधियों में संलग्न करने का प्रयास करें। सुलेख लिखने को दें। इसके अलवा उनके दिमाग को स्पर्धाओं की तरफ़ ले जाएं।
गणित के कुछ प्रश्न हल करने आलावा दूसरे काम भी दिया जाय। इससेे उनका समय भी व्यतीत होगा तथा उनका मानसिक विकास भी होता रहेगा। बच्चों से उनके योग्य घरेलू कामों में सहयोग लें इससे न केवल उनका समय व्यतीत होगा बल्कि उनमें जिम्मेदारियों के निर्वहन की प्रवृत्ति विकसित होगा। उनके मनपसंद का काम करने के लिए भी कुछ समय आरक्षित करें। जैसे संगीत सुनना, फोन पर मित्रों से बातचीत करना इत्यादि। कामिक्स पढ़ने के लिए कुछ समय प्रदान करें।
परिवार में प्रायः ऐसा देखा गया है कि बच्चों की तरफ़ से पूछे गए सवालों को हम टाल जाते हैं। उन्हें बहला देते हैं या फ़िर डाट कर मुँहबंद करा देते हैं जबकि ऐसा करना बच्चों के दिमाग पर बुरा प्रभाव डालता है। उनमें कुंठा पैदा होतीं है। इसलिए मासूम बच्चों के प्रश्नों का उत्तर जरूर देना चाहिए। लॉक डाउन की वजह से बच्चे यह सवाल पूछ सकते हैं कि हम घर में कैद क्यों हैं तो उन्हें शांति व सौहार्द से इसकी आवश्यकता एवं महत्व को समझाएं। स्वयं अनुशासित एवं नियमित दिनचर्या अपनाकर बच्चों को भी वैसा ही करने के लिए प्रेरित करें। यदि आप स्वयं लापरवाही भरा व्यवहार करेंगें और बच्चों को अनुशासित रहने को कहेंगे तो वे ऐसा कदापि नहीं करेंगे। अनेक शैक्षिक संस्थाएं ऑनलाइन कक्षाएं संचालित कर रही हैं यदि संभव हो तो बच्चे को उसमें जोड़ें। भोजन का मैनू यथासंभव बदलते रहें, कोशिश करें बच्चों के रूचि का भोजन बने किंतु पौष्टिकता एवं बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान अवश्य रखें।
बचपन बड़ा समझदार और लचीला होता है। बच्चे हर काम बेहद जल्द सीख जाते हैं। उनमें नक़ल की प्रवित्ति बड़ी तेज होतीं है। ऐसे माता- पिता को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बच्चों को भूलकर भी इस तरह के काम नहीँ करने देना चाहिए। कई बार माता-पिता एवं अभिभावक ऐसा व्यवहार बच्चों के साथ करते हैं जिससे बच्चों के मन पर न केवल बुरा असर पड़ता है बल्कि उनका समुचित विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। इस पर सावधानी बरतें। बच्चों को अधिक समय तक मोबाइल पर गेम खेलने ना दें। किसी अतार्किक मांग को कदापि पूरा न करें। अपने व्यवहार को संयमित रखें अन्यथा जब आप उन्हें रोकेंगे किसी व्यवहार के लिए तो आपकी बात को गंभीरता से नहीं लेंगे। हर बात पर व हर समय उन्हें टोकना नहीं चाहिए। इससे बच्चों के चिड़चिड़ा होने की संभावना बहुत अधिक होती है। बच्चों को बात-बात पर डांटे एवं मारे पीटें न । बच्चों की बातों को अनसुना न करें, उनकी उपेक्षा न करें तथा उन्हें तिरस्कृत ना करें। बच्चों के प्रश्नों का उत्तर उनके उम्र के अनुसार प्रदान करें उनके प्रश्नों को बार-बार टाले ना और ना ही उन्हें प्रश्न पूछने के लिए हतोत्साहित करें। ऐसा करने से बच्चों के सृजनात्मक क्षमता का दमन होता है। बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। उस हालत में बच्चों पर अधिक समय देने की ज़रूरत है। हमारे लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है। इससे हमें बचना होगा। सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करें अपने परिवार के साथ रहना चाहिए। बिना ज़रूरत के हमें बाहर निकलने से बचना होगा। जान है तो जहान है। अमरीका, इतनी, ब्रिटेन, स्पेन की हालत किसी से छुपी नहीँ है। हम इस तरह का कोई कदम न उठाएं जिससे उन पर बुरा असर पड़े। घर में बच्चों को अकेला न छोड़े। एक साथ सभी परिवार के लोग उनके साथ घुलमिल जाएं। इस स्थिति में हमें यह समझना होगा कि कोरोना बच्चों की सोच और उनका मनोविज्ञान भी बदल सकता है।

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