घातक कोरोना : सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण

डॉ अवधेश कुमार अवध

चीन की वूहान-भूमि से उपजा नोबेल कोरोना वायरस आज दुनिया के लिए मृत्यु का पर्याय बन गया है। वूहान शहर मृतप्राय पड़ा है। स्पेन, इटली और अमेरिका तड़पकर गिरते शवों की अन्त्येष्टि नहीं कर पा रहे हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा जैसे लडखड़ाते देश गौर तलब नहीं रहे। भारत इक्कीस दिनों की घोषित लॉकडाउन एवं स्वैच्छिक कर्फ्यू में छटपटा रहा है। लेकिन मन प्रखर उम्मीद की किरण से जगमग है कि “हम होंगे कामयाब एक दिन….।”

इक्कीसवीं सदी का बीसवाँ वर्ष वैश्विक स्तरीय मंदी के लिए ही जाना जाता अगर कोरोना नामक महामारी न आई होती। कोरोना ने मंदी का एकाधिकार छीनकर हमें न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी कमजोर किया है। उन्नति के शिखर को छूने के सपनों को अकाल ही तोड़ने का दुस्साहस किया है। धर्म और विज्ञान के बीच अविश्वास एवं संदेह ने कई भ्रांतियों को उपजाया है।

कोरोनो वायरस से लड़ने के लिए हमें सामाजिक स्तर पर बेहद सतर्क एवं सचेत रहकर बहुमुखी सहयोग की आवश्यकता है। यह ऐसा शत्रु है जिसे हम बिना पैसा खर्च किए ही घर में पृथक-पृथक रहकर हरा सकते हैं। प्यार, अपनापन और विश्वास जैसे सामाजिक उपकरणों के सहारे एक – दो गज की दूरियाँ बनाकर हम कोरोना को मात दे सकते हैं। हम जिस संसाधन में सक्षम हैं, उसके द्वारा पड़ोसियों की मदद करके बहुत आसानी से आत्म संतोष प्राप्त कर सकते हैं। सनद रहे कि आज के दौर में हम स्वयं में एक शांत ज्वालामुखी हैं जो अनियंत्रित होने पर लाखों लोगों को काल के गाल में पहुँचा सकते हैं। ठीक ऐसे ही हर व्यक्ति अपने आप में मौत का सौदागर है जिससे दूरी बनाकर आसानी से बचा जा सकता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चीन मानवता के संहारक के रूप में उभरा है। इसके पीछे कोई अनियंत्रित कारण है या सुनियोजित दानवी कुटिलता, अभी कहना जल्दबाजी होगी। दुनिया के हर देशों में कमोवेश पहुँचा हुआ कोरोना की पहुँच चीन के ही अन्य शहरों और राजधानी तक नहीं है, सोचने को विवश करती है। विश्व की उखड़ती अर्थव्यवस्था के बीच चीन का आर्थिक उछाल किसी जादुई करामात की आहट का संकेत करता है जो यू एन ओ की तीक्ष्ण नज़रों से भी छुपा नहीं है।

हमारा इतिहास उत्थान और पतन के झूले पर झूलता ही आया है। बारह सौ साल की घटती-बढ़ती गुलामी में कई उजड़े पतझड़ और कई लहलहाते बसंत देखे हैं हमने। फिर भी हमारी हस्ती पहले से ज्यादा मजबूत हुई। विविधता में एकता को जीया है हमने। रक्तबीज की तरह भयावह यह चीनी वायरस नि:संदेह चिंता जनक है। कदाचित चीनी विश्वविजय की मंशा का भी परिचायक हो किन्तु हमारा आत्मविश्वास ऊँचा है, हमने विश्वविजय पर निकले सिकंदर को भी भगाया है, सात समंदर पार के लाल-लाल लट्टुओं से भी खेला है। प्लेग, चेचक, डेंगू, मलेरिया, पोलियो और एड्स को भी धराशायी करने का कीर्तिमान है हमारे पास। सामाजिक विषमता में भी समरसता फैलाया है हमने। एक रोटी में भी चार टुकड़े करके दान करने तथा घास की रोटी खाकर हदीघाटी विजय करने वाले हैं हम।

अन्तत: हम कहना चाहेंगे कि चीनी वायरस नोबेल कोरोना निश्चित रूप से मौत का सौदागर बनकर आया है। इसे हम जागरुकता फैलाकर, अकेले में साफ-सफाई से रहकर मिटा सकते हैं। धैर्य के साथ हमें हमारी मानवता को जिंदा रखना है। यही मानवता सामाजिक व आर्थिक क्षति की पूर्ति करके पुन: हमें आगे बढ़ने में सहायक बनेगी। दुनिया नई बनाएँगे, कोरोना को हराएँगे।

Dr. Awadhesh Kumar Awadh

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