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गुमनामी बाबा, भगवनजी या फिर सुभाष चंद्र बोस?

गुमनामी बाबा अयोध्या के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता में कुछ वर्ष रहे।
इस कहानी की शुरुआत हुई थी साल 1985 में जब मैने घर में दादाजी को किसी बाबा की मृत्यु के बारे में बात करते सुना था। समय बीतता गया और यदा कदा इस बाबा के बारे में बात होती रही जिसे फैज़ाबाद शहर में गुमनामी बाबा के नाम से इसलिए बुलाया जाता था क्योंकि वह किसी से मिलते-जुलते नहीं थे। हमेशा एक फुसफुसाहट सुनते रहे कि यह बाबा जिन्हें लोग भगवनजी के नाम से संबोधित करते थे वह शायद क्लिक करेंनेताजी की हत्या का आदेश दिया था।
इस सनसनीखेज़ फुसफुसाहट पर गौर करने के लिए 16 सितंबर, 1985 में चलते है।
फैज़ाबाद शहर के सिविल लाईन्स में स्थित राम भवन में इस गुमनामी बाबा की मृत्यु होती है और उसके दो दिन बाद बड़ी गोपनीयता से इनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता हैgumnami-baba-was-living-netaji
लेकिन लोगों की आँखें तब फटी की फटी रह गईं थीं जब इनके कमरे से बरामद सामान को करीने से देखा गया।
उसी के ठीक बाद इस तरह की बात ने दम भरा कि यह कोई साधारण बाबा नहीं थे और सुभाष चंद्र बोस भी हो सकते हैं।
हालांकि भारतीय सरकार और इतिहास के अनुसार सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। फैज़ाबाद में स्थानीय लोगो के मुताबिक़ गुमनामी बाबा या भगवनजी 1970 के दशक में जिले में पहुंचे थे।
शुरुआत में यह अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे और कुछ ही दिन बाद बस्ती में जाकर रहने लगे थे।
लेकिन बस्ती उन्हें बहुत रास नहीं आया और भगवनजी वापस अयोध्या लौटकर पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे।
कुछ वर्ष बाद इनका अगला पड़ाव था अयोध्या सब्जी मंडी के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता जहाँ ये बेहद गुप्त तरीके से रहे। इनके साथ इनकी एक सेविका सरस्वती देवी रहीं जिन्हें यह जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे।
बताया जाता है कि इस महिला का ताल्लुक़ नेपाल के राजघराने से था लेकिन ये पढ़ी-लिखी नहीं थीं।
अपने अंतिम समय में, गुमनामी बाबा के नाम से थोड़े मशहूर हो चुके ये बाबा, फैजाबाद के राम भवन में पिछवाड़े में बने दो कमरे के मकान में रहे।
यहीं पर इनकी मृत्यु हुई और उसी के बाद कयास तेज़ हुए की ये सुभाष चंद्र बोस हो सकते हैं।
नेताजी से सम्बंधित दुनियाभर में छपी खबर गुमनामी बाबा के पास मिली।
जब से इस गुमनामी बाबा या भगवनजी का निजी सामान बरामद हुआ और जांचा परखा गया है तब से इस बात का कौतूहल बढ़ा है कि यह शख्स कौन था।
एक बात जो तय है वह ये कि यह कोई साधारण बाबा नहीं थे।
जिस तरह का सामान इस व्यक्ति के पास से बरामद हुआ वह कुछ बातें ख़ास तौर पर दर्शाता है।
पहली यह कि इस व्यक्ति ने अपने इर्द-गिर्द गोपनीयता बनाकर रखी।
दूसरी यह कि शायद यह बात कोई नहीं जान सका कि यह व्यक्ति 1970 के दशक में फैजाबाद-बस्ती के इलाके में कहाँ से पधारा।
तीसरी, स्थानीय और बाबा के करीब रहे लोगों की मानें तो वह कौन लोग थे जो इस बाबा से मिलने दुर्गा पूजा और 23 जनवरी के दिनों में गुप्त रूप से फैज़ाबाद आते थे और उस वक़्त बाबा के परम श्रद्धालु और निकट कहे जाने वाले परिवारजनों को भी उनसे मिलने की मनाही थी।
चौथी, अगर यह व्यक्ति जंगलों में ध्यानरत एक संत था तब इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन कैसे बोलता था।
पांचवी, इस व्यक्ति के पास दुनिया भर के नामचीन अखबार, पत्रिकाएँ, साहित्य, सिगरेट और शराबें कौन पहुंचाता था।
आखिरी बात यही कि इस व्यक्ति के जीते जी तो कई लोगों ने सुभाष चंद्र बोस होने का दावा किया और उन्हें प्रकट कराने का दम भरा (जय गुरुदेव एक उदाहरण), लेकिन इस व्यक्ति की मौत के बाद से नेताजी के जीवित होने सम्बन्धी सभी कयास बंद से क्यों हो गए।

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