पादरियों के कुकर्म घंटों नंगी खड़ी रखी जाती हैं ननें पादरी बनाते हैं यौन संबंध

आरबीएल निगम ( वरिष्ठ पत्रकार ) केरल की नन सिस्टर लूसी कलाप्पुरा ने अपनी आत्मकथा लिखी है। उनकी पुस्तक लॉन्च होने के बाद केरल के चर्चों में हड़कंप मचनी तय है क्योंकि इसमें पादरियों के कुकर्मों को लेकर कई खुलासे होंगे। सिस्टर लूसी के बारे में बता दें कि इन्होंने ही बलात्कार आरोपित पादरी फ्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। मुलक्कल की पैठ न सिर्फ़ चर्चों में है बल्कि कई राजनेताओं से भी उसके ख़ासे अच्छे सम्बन्ध हैं। अपने इन्हीं सबंधों का फ़ायदा उठा कर उसने पीड़ित ननों की आवाज़ दबाने के लिए कई प्रयास किए। उन ननों को वेटिकन तक से भी राहत नहीं मिली।

सिस्टर लूसी की पुस्तक के कुछ अंश एक मलयालम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि साइरो-मालाबार चर्च में उनका कैसा अनुभव रहा? ईसाई संस्थाओं द्वारा संचालित प्राइवेट स्कूलों में पादरियों द्वारा क्या गुल खिलाए जाते हैं, सिस्टर लूसी की पुस्तक में इसके कई उदाहरण मिलेंगे। पादरी और बिशप अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए ननों के साथ जबरदस्ती कर यौन सम्बन्ध बनाते हैं। वो इसके लिए कई ननों की जबरन सहमति भी लेते हैं।

सिस्टर लूसी ने एक घटना का जिक्र किया है, जिसे जानना ज़रूरी है। जब वो मालाबार चर्च में थीं, तब वहाँ एक पादरी हुआ करता था। वो कॉलेज में पढ़ाता था और पास ही कॉन्वेंट में रहता था। कॉन्वेंट में उसने अपने लिए एक प्राइवेट कक्ष रखा था। उस पादरी को सुरक्षित सेक्स के लिए काउंसलिंग देने का कार्य सौंपा गया था। वह छात्रों को सेफ सेक्स के बारे में बताता था और सलाह देता था। लेकिन दिक्कत इससे नहीं थी। समस्या तब शुरू हुई, तब उक्त पादरी ने सेफ सेक्स के लिए ‘प्रैक्टिकल क्लास’ आयोजित करना शुरू किया।

उसने अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाना शुरू कर दिया। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। ऐसा नहीं था कि उसके ख़िलाफ़ शिकायत नहीं की गई। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी लिखती हैं कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं।

सिस्टर लूसी ने लिखा कि कॉन्वेंट्स में जवान ननों को पादरियों के पास उनके ‘यौन सुख’ के लिए भेजा जाता था। वहाँ वो सभी ननें घंटों नंगी खड़ी रखी जाती थीं। वो लगातार गिड़गिड़ाती रहती थीं लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जाता था। कई ऐसे भी मामले हैं, जहाँ सीनियर ननों ने जूनियर ननों के साथ समलैंगिक सम्बन्ध बनाए। कई ऐसे मामले हैं, जहाँ नए पादरियों ने काम छोड़ देना ही उचित समझा क्योंकि पुराने पादरी उन्हें समलैंगिक सम्बन्ध बनाने को मज़बूर करते हैं। सिस्टर लूसी की आत्मकथा जल्द ही प्रकाशित होगी।

जब हिन्दू साधुओं के आश्रमों में इस तरह की घटनाएं होती है, खोजी पत्रकारों की भीड़ निकल आती है, लेकिन जब चर्चों में इस तरह की घटनाएं होती हैं, कोई खोजी पत्रकार नहीं बोलता। सबको केवल हिन्दू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर अपनी TRP की चिंता होती है, परन्तु चर्चों पर चुप्पी साध लेते हैं, क्यों? नन गर्भ धारण कर लेती है, कारणों पर मीडिया के मुंह में दही जम जाती है, मीडिया भी पता नहीं कौन-सी धर्म-निरपेक्षता निभाती है?

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