राष्ट्र निर्माण की राष्ट्र नीति का उदय

स्मरण रहे कि एक बार महर्षि अरविंद ने सन् 1926 में कहा था कि “किसी भी प्रकार से मुसलमानों को तुष्ट करने का प्रयास मिथ्या कूटनीति है…. एक तरफा ध्यान करके सभी राष्ट्रीय कार्यों में लगकर राष्ट्र के विकास के मार्ग पर चलते रहते तो मुसलमान भी अपने आप धीरे धीरे राष्ट्रीय कार्यों में लगते।”
क्या कभी कोई सोच सकता था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में वोटों की राजनीति करते रहने की परंपरा से हट कर “राजनीति को राष्ट्रनीति का प्रमुख अंग” मानते हुए वर्तमान केंद्रीय शासन अपने वायदों (जिनको जुमलेबाजी भी कहा गया) को एक-एक करके बडी कर्त्तव्यनिष्ठा से पूरा करते हुए स्वस्थ व स्वाभिमानी राष्ट्र के निर्माण में यथासम्भव प्रयत्नशील व संघर्षशील हैं।
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जो स्वयं एक सशक्त व कुशल प्रशासक है को ग्रह मंत्री के रूप में मिले श्री अमित शाह जो हनुमान बन कर जुटे रहने वाले अदम्य साहसी व निर्भीकता के प्रतीक बन कर राष्ट्रोत्थान के प्रति समर्पित हैं, उनमें लाखों राष्ट्रवादियों द्वारा दशकों से किया जा रहा “राष्ट्र आराधन” आज “तेजस्वी ऊर्जा” बन कर प्रतिलक्षित हो रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय के पंच परमेश्वर बनें हमारे माननीय मुख्य न्यायाधीश श्रीमान रंजन गोगोई जी सहित उनके चारों सहयोगी न्यायाधीशों ने 9 नवंबर 2019 को सदियों से देश को अंधकारमय करने वाली “श्रीराम जन्म भूमि मंदिर” सबंद्धित राष्ट्रीय समस्या का जिस परिवक्ता के साथ सर्वोत्तम समाधान किया है वह वास्तव में अत्यंत प्रशंसनीय व सराहनीय है। अब देश की न्यायायिक व्यवस्था पर संदेह करने वाले समस्त तत्वों को “सत्यमेव जयते” के मंत्र की सार्थकता को समझना ही होगा।
ध्यान रहे कि सरदार पटेल की जयन्ती 31 अक्टूबर 2019 को 72 वर्ष पुरानी जम्मू,कश्मीर व लद्धाख की अत्यंत जटिल समस्या को सुलझाना और अब शतकों पुराना श्री राम जन्मभूमि मंदिर विवाद पर अविवादित एतिहासिक निर्णय राष्ट्र के निर्माण में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। निःसंदेह राजनीति को राष्ट्रोन्मुखी बना कर जिस राष्ट्रनीति का उदय हो रहा है वहीं “सबका साथ,सबका विकास व सबके विश्वास” का मूल आधार बनेगी।

विनोद कुमार सर्वोदय
राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक

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