जातिवाद है बहुसंख्यक समाज के लिए अभिशाप : स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज
हिंदू समाज की एकता के लिए काम करना आज के समय की आवश्यकता : डॉ राकेश कुमार आर्य
मेरठ। यहां स्थित दादरी आर्य समाज के वार्षिक उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए अंतरराष्ट्रीय वैदिक विद्वानों और संत स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज ने कहा कि जातिवाद बहुसंख्यक समाज के लिए इस समय बहुत अभिशाप बन चुका है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब संतों की भी जातियां पूछी जाने लगी हैं। स्वामी जी महाराज ने कहा कि हमें इस समय जातियों में विभक्त होते हिंदू समाज को संगठित करने की आवश्यकता है। क्योंकि हिंदू समाज को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े षड़यंत्र रचे जा रहे हैं। जिन्हें देश में भी व्यापक समर्थन प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार के षडयंत्रों को कुचलकर समाप्त करने का समय आ गया है। इस समय राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल करने की आवश्यकता है। जातिवाद राष्ट्रवाद की भावना का विरोधी विचार है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। तीन दिन तक चले कार्यक्रमों की श्रृंखला में स्वामी जी महाराज निरंतर मुख्य वक्ता के रूप में लोगों का मार्गदर्शन करते रहे। उन्होंने विभिन्न समाज में फैल रही विभिन्न कुरीतियों पर अपने विचार पर निर्भीकता से प्रस्तुत किये। साथ ही इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आर्य समाज के मंचों से भी अब पाखंड परोसने की बातें की जाने लगी हैं। जिस पर इस समाज को गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है।
राष्ट्र निर्माण पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और जाने माने विद्वान एवं लेखक ठा.विक्रम सिंह ने इस अवसर पर कहा कि भारत अपना अस्तित्व तभी तक बचाए रखने में सफल हो सकता है जब हम अपने हिंदू समाज के लिए समर्पित होकर काम करेंगे। उन्होंने कहा कि हमें व्यापक दृष्टिकोण अपना कर कार्य करने की आवश्यकता है। जब हम संकीर्णताओं में बंध कर काम करेंगे तो हिंदू समाज की स्थिति को कोई बचा नहीं पाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में आ रही गिरावट को रोकना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। जिसे केवल वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से ही रोका जा सकता है। इसके लिए विद्यालयों के सिलेबस में परिवर्तन किया जाना बहुत आवश्यक हो गया है।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता तथा आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार आर्य ने अपने संबोधन में कहा कि आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन को अपनाकर सावरकर जी ने आर्य समाज के क्रांतिकारी नेता स्वामी श्रद्धानंद जी का सहयोग किया था । उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश को लेकर मुस्लिम समाज की आपत्तियों का विरोध करते हुए इस पर भी आर्य समाज का साथ दिया था। स्वामी श्रद्धांनन्द जी महाराज ने अपने मिशन को निर्भीकता के साथ आगे बढ़ाया । आज भी हमें इन दोनों नेताओं के जीवन से शिक्षा लेने की आवश्यकता है। क्योंकि आज हमारे युवाओं के चरित्र को बिगाड़ने के लिए न्यायपालिका सहित कम्युनिस्ट कांग्रेस सहित अनेक शक्तियों काम कर रही हैं । जिनके विरुद्ध हमें एकता का परिचय देते हुए काम करना होगा।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण मानवता की कल्याण के लिए वेदों का ज्ञान आज भी हमारा मार्गदर्शन कर सकता है। डॉ आर्य ने कहा कि हम वैश्विक नेतृत्व तभी कर सकते हैं जब हम अपने घर को अर्थात हिंदू समाज को मजबूत बनाने में सफलता प्राप्त कर लेंगे और यह तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति हिंदू समाज की एकता को राष्ट्रीय एकता के रूप में देखने का काम करना आरंभ करेगा।
इस कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार रहे अजय आर्य ने बताया कि आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुद्ध नगर के भाषा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष ब्रह्मचारी आर्य सागर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जातिवाद भारत के लिए इस समय कोढ़ बन चुका है। जिसके विरुद्ध जागरूक और देश के प्रति समर्पित शक्तियों की ओर से एकजुटता का परिचय देना समय की आवश्यकता बन गया है। क्योंकि जातिवाद में बांटकर हमारे हिंदू समाज को समाप्त करने की व्यापक योजना पर इस समय काम चल रहा है। जिसके विरुद्ध यदि समय रहते एकजुटता नहीं दिखाई गई तो यह विषधर भारत के हिंदू समाज के लिए घातक बन जाएगा।
इसके लिए हमें सारे देश में अभियान चला कर जनजागरण करना होगा। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री सत्येंद्र पाल आर्य प्रधान आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा किया गया। कार्यक्रम के यज्ञ के ब्रह्मा नितिन आर्य रहे। इस अवसर पर आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के पदाधिकारी महेंद्र सिंह आर्य, प्रताप सिंह आर्य सहित दादरी आर्य समाज के सदस्य अभयराम आर्य, महेश आर्य, सत्यदेव आर्य, कपिल आर्य, संदीप आर्य, नितेश आर्य, आजाद आर्य, अभय सिंह आर्य, चमन शास्त्री, महिपाल आर्य, अविका आर्य आदि के द्वारा अपना विशेष योगदान दिया गया। कार्यक्रम के यजमान विकास आर्य व पिंकी आर्या रहे । इस अवसर पर पंडित दिनेश पथिक, सुकीर्ति, महाशय जगमाल, कर्मवीर महाराज के द्वारा भजनों के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन किया गया।
आर्य समाज के लिए समर्पित होकर काम करने वाले चमन शास्त्री इस प्रकार के कार्यक्रमों में अपनी ओर से बढ़ चढ़कर योगदान देते रहे हैं। उनका कहना था कि स्वामी दयानंद जी महाराज की दी हुई ज्योति को जलाए रखना हमारे जीवन का उद्देश्य है। जिसके लिए आने वाली पीढ़ी को तैयार करना तभी संभव है जब इस प्रकार के कार्यक्रम निरंतर होते रहेंगे।
