पण्डित राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ एक सशक्त कवि छंदकार

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आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के महान शिक्षाविद राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित स्मृतिशेष माननीय डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘ सरस’ कृत : “बस्ती के छन्दकार” शोध ग्रन्थ के आधार पर महुली महसों बस्ती का ब्रह्मभट्ट घराने की तरह मलौली संतकबीर नगर का चतुर्वेदी परिवार का वर्णन मिलता है।

मलौली गाँव उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के घनघटा तालुका में स्थित है । यह धनघटा से 2 किमी तथा संत कबीर नगर जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर स्थित है। इस गांव ने सर्वाधिक 6 कवियों को जन्म दिया है।

पंडित राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ श्रावण कृष्ण 11 संवत् 1822 विक्रमी को पैदा हुए थे। ये इस वंश के उत्तरवर्ती ज्ञात पाँच कवियों के मूल पुरुष रहे। इनके पिता ईश्वर प्रसाद धनघटा के पास मनौली के मूल निवासी थे,जो महसों राज के अन्दर आता था। ये ज्योतिष, संस्कृत और आयुर्वेद के विद्वान थे। सशक्त छंदकार होने के साथ साथ वे कवियों का बहुत आदर और सम्मान करते थे।

पंडित राम गरीब जी ‘गंगाजन’ उप नाम अपने लिए प्रयुक्त करते थे। उनके छंदों पर रीति कालीन साहित्य का पूरा प्रभाव परिलक्षित होता है। सवैया और मनहरन उनके प्रिय छंद थे। इनके कुछ छंद इनके वंश परम्परा के कवि ‘ ब्रजेश’ जी के संकलन से ज्ञात हुआ है –

सुन्दर सुचाली ताली रसना रसीली वाली,द्विजन प्रणाली लाली हेमवान वाली है।

लोचन विशाली मतवाली विरुद वाली,

चेत पर नाली वरदान वाली काली है।

दास अघ घाली खरसाली मुंडमाली,

संघ सोहत वैताली दुखभे की कह ब्याली है।

गंगाजन पाली करूं कृपा मातु हाली,

कार्य साधिए उताली तोहि शपथ कपाली हैं ।।

गंगाजन काली मां के भक्त थे। उन्होंने काली मां की अर्चना में 105 छंदों वाली ‘काली शतक’ लिखा है जो अप्राप्य है। इनका एक अन्य छंद डा. ‘सरस’ जी ने अपने शोध ग्रन्थ ‘बस्ती के छंदकार’ नामक ग्रन्थ के भाग 1 के 11वें पृष्ठ पर इस प्रकार उद्धृत किया है –

उमड़ी घुमड़ी गरजै बरसै,

गिरि मन्दिर ते झरनाय झरें।

पिक दादुर मोरन सोरन सो,

विरही जन होत न चित्तथिरै।

युत वास कदम्ब के वात चलें,

गंगाजन हिय विच भाव घिरें।

झक केतु के पीरते आली पिया,

बिनु शीश जटा लटकाय फिरें।।

पंडित राम गरीब रईस परम्परा के कवि थे। उनके समकालीन कवि राम लोचन भट्ट आदि बड़ा आदर पाते थे। इलाहाबाद, वाराणसी और विंध्याचल जाने के अलावा बस्ती जिले के महसों राजा के यहां इनका बड़ा आदर था। भवानी बक्श और बल्दी कवि का ‘गंगाजन’ के यहां बड़ा आदर होता था। कार्तिक सुदी दशमी संवत 1913 विक्रमी में 91 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने शरीर का परित्याग किया था। इन्होंने अपने पीछे पांच-छ: कवियों की एक श्रृंखला जोड़ रखी है।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

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