सज्जन की पहचान है, कड़‌‌वाहट पी जाय।

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आओ, बादल से भी कुछ सीखें : –

सज्जन की पहचान है,
कड़‌‌वाहट पी जाय।
खारा जल मीठा करे ,
जब अम्बुद बन जाय॥
अम्बुद – अर्थात, बादल॥2723॥

तत्त्वार्थ – भाव यह है कि समुद्र का जल खारा होता है किन्तु सूर्य की तेज रश्मियाँ जब उसे वाष्प में परणित करती हैं, तो वह ऊपर उठतो है ,और कालान्तर में बादल बन जाती है। ध्यान रहे! समुद्र के खारेपन को वे समुद्र में ही छोड़ देती है। उसे अपने आंचल में नहीं लेती है और बादल जब जहाँ भी बरसता है, तो मीठा जल बरसाता है। ठीक इसी प्रकार सत् पुरुष घर- परिवार, समाज अथवा राष्ट्र में फैली कुरीतियों, बुराइयों, निन्दा, चुगली अथवा कटुता और कुटिलता की गन्दगी को यथास्थान छोड़ देते हैं और बदले में बादल की तरह नूतन सुरभित वातावरण देते हैं। जिससे घर-परिवार, समाज, और राष्ट्र ऊर्जावान बनतान है।

‘ विशेष ‘ लुटेरे कौन है? वे पाँच जिन्होंने मानव-जीवन के सौन्दर्य और सम्पदा को लूटा है।

तन्मात्राओं का राग तो,
पैदा करे विकार।
आसक्ति विकार।
लूटै दैवी-सम्पदा,
लूटै सब श्रृंगार॥2724॥

तत्त्वार्थ:- परम पिता तन्मात्राओं परमात्मा ने मनुष्य को पाँच देकर धरती पर भेट भेजा है।

ये पाँच तन्मात्राएँ यदि नियंत्रण में रहे तो मनुष्य देवत्त्व को प्राप्त होता है। यदि ये अनियंत्रित हो जाये तो इनका विकृत रूप मनुष्य के मानस में तरह-तरह के विकार पैदा करता है, पाप में प्रवृत्त करा देता है। उसे उत्कृष्ट बनाने के बजाय उसे निकृष्ट बना देता है, पतन के गर्त में गिरा देता है। उसकी दैवी सम्पदा तथा वाह्य सम्पदा और शारीरिक सौन्दर्य को ऐसे तहस-नहस कर देता है जैसे तेज भूकम्प के झटके किसी हंसते खेलते किसी सुन्दर शहर को वीरान कर देते है।

तन्मात्राएँ कौन सी है ?
ये पाँच तन्मात्राएँ है: –
रुप,रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श, इन्हें हमारे ऋषियों और मनीषियों ने इनके विकृत रूप के कारण इन्हें पाँच वेश्याएँ भी कहा है, जो मनुष्य का जीवन बर्बाद कर देती है और सब कुछ लूट लेती है, जैसे – आँख रूप में रसना रस में, नासिका गन्ध में, कान शब्द में, और त्वचा स्पर्श के सम्मोहन में आसक्त हो जाय तो मनुष्य दैवी सम्पदा ऐसे उड़ जाती है, जैसे कपूर की सुगन्ध हवा में उड़‌‌ जाती है। शक्ति, सम्पत्ति, समय,सुयश की अपूर्णीय क्षति होती है, जैसा कि महाभारत में हुआ था।

दृश्यमान संसार अधिकांश लोग इन पाँच वेश्याओं के चंगुल हैं। और दूढ़ते हैं- मानसिक शान्ति । अरे भोले भाइयों! इन पांच वेश्याओं के चक्कर में फंसकर बहुत चले गए और भविष्य में बहुत चले जायेंगे। इनसे निजात पाना है, तो इनका सद्‌ययोग करो - दुरुपयोग नहीं । आत्मा के अनुरूप जीओ, मन के अनुरूप नहीं, ताकि यह मानवीय-जीवन सार्थक बन सके।

क्रमशः

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