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भारत के राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति और उसका निर्वाचन

ब्रिटेन की भांति भारत में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। जिसमें राष्टï्राध्यक्ष राष्टï्रपति कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है। वास्तविक शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल के माध्यम से करता है। संवैधानिक व्यवस्था-संविधान के अनु‘छे 52 के अनुसार राष्टï्रपति भारतीय संघ की कार्यपालिका का प्रधान है। संविधान के अनु‘छे 5& के अनुसार संघ […]

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बाबा रामदेव और टीम अन्ना की कितनी निभेगी?

भारतीय समाज के लिए यह खुशी की बात है कि बाबा रामदेव और टीम अन्ना भ्रष्टïाचार के खिलाफ चल रही अपनी जंग को मिलकर लडऩे पर सहमत हो गये हैं। लेकिन उनकी सहमति फिर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लेकर सामने आयी है। क्योंकि केवल भ्रष्टïाचार मिटाना ही इन दोनों व्यक्तियों का अंतिम उद्देश्य नहीं […]

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माता-पिता और संतान

नीतिकारों के ये ऐसे आशीष बचन हैं जो हर समुदाय अपने अपने अनुयायियों को देता है। यथा- माता पिता की सेवा करनी चाहिए।  बड़ों का कहना मानना चाहिए। माता पिता की सेवा से आयु विद्या, यश और बल में वृद्घि होती है। यही कारण है कि कुछ लोगों ने धर्म की इन बातों  के मजहब […]

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आपकी खुशी से है दिल का रिश्ता

अमरीकी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप खुश रहते हैं तो हृदय से जुड़ी समस्याओं से बचे रह सकते हैं। साइकोलॉजिकल बुलेटिन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक खुश और आशावादी लोगों को हृदय रोग और दिल का दौरा पडऩे का जोखिम कम रहता है। हावर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने 200 से ज्यादा अध्ययनों […]

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हिंदी की हत्या के लिए प्रतिबद्घ सरकार

इस देश की स्वतंत्रता के साथ सबसे बड़ा छल करने वाले व्यक्ति का नाम पंडित नेहरू है, जो देश के दुर्भाग्य से इस देश का प्रथम प्रधानमंत्री कहलाया। संविधान सभा में पंडित नेहरू अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो इस देश में अंग्रेजी को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्घ थे। संविधान सभा के सदस्यों की संम्मति […]

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शेखर गुप्ता पर मैं सवाल उठाता हूं कि…

20 मार्च को मेरे पास एक रिपोर्ट आई कि भारतीय सेना देश में सैनिक क्रांति करना चाहती है। जो सज्जन मेरे पास यह ख़बर लेकर आए, उनसे मैंने पूछा कि इस ख़बर का स्रोत क्या है। जब उन्होंने मुझे स्रोत बताया तो मेरी समझ में आ गया कि यह देश के खि़लाफ़ बहुत सोची-समझी साजि़श […]

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काल चिरैया चुग रही, छिन छिन तेरो खेत

मृत्यु का क्षण, कितना दार्शनिक होता है? आदर्श और यथार्थ का यह कितना कठोर संगम है? मृत्यु का शाश्वत सत्य सभी को एक न एक दिन भीगी आंखों से स्वीकार करना पड़ता है। रूप श्रंृगार और सृजन अपनी कहानी चिता के किनारे छोडक़र चले जाते हैं। लगता है, संसार के सारे संबंधों की गति यहीं […]

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बजट में भारत की आत्मा-ग्रामीण भारत की उपेक्षा क्यों?

अपने बजट में ग्रामीण भारत के लिए जितनी घोषणाएं वित्त मंत्री ने की है वह अभी अपर्याप्त है परन्तु फिर भी कुछ हद तक स्वागत योग्य है लेकिन यह भी कड़वा सच है आने वाले समय में महंगाई की मार से आम आदमी फिर से और त्रस्त होगा क्योंकि वित्त मंत्री द्वारा सेवा कर में […]

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सेना के बारे में अफवाह की सच्चाई सामने आनी चाहिए

सैन्य तख्ता पलट संबंधी इँडियन एक्सप्रेस की खबर ने एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। बवाल का एक पक्ष यह है कि भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों में साठ सालों से विश्वास करने वाली भारतीय सेना ने जनवरी माह में तख्ता पलट करने की कोशिश की थी। बवाल का दूसरा पक्ष यह है कि एक केंद्रीय […]

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ब्रिक्स के बाद ड्रैगन की फुंफकार

अभी अभी हम ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका) की आर्थिक मोर्चेबंदी की सुर्खियों को पढ़ पढक़र मगन हो रहे थे और भारत चीन के संबंधों की नई-नई संभावनाएं तलाश रहे थे। लेकिन ब्रिक्स की प्रगति पर चीन ने जल्दी ही ब्रेक्स लगा दिये हैं। चीन ने भारत की आर्थिक मोर्चे पर हो […]

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