कांग्रेस में राज्यसभा टिकट पाने के लिए दो शर्तें जरूरी , नामदार होना और गांधी परिवार की चमचागिरी

अगर कांग्रेस का चरित्र समझना हो तो उन उम्मीदवारों को देख लीजिए, जिसे कांग्रेस ने राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है। ये बेवजह नहीं है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बरसों तक कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद भी पार्टी को एक झटके में छोड़ दिया। राज्यसभा के लिए घोषित किए गए सभी उम्मीदवार ऐसे हैं, जिसके पीछे आपको कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के परिश्रम की बेकद्री दिखेगी, उनके सपने मरते हुए नजर आएंगे।

किसी उम्मीदवार को गांधी परिवार की वफादारी का इनाम मिला है तो किसी को सिर्फ इस वजह से टिकट दिया गया है क्योंकि वो किसी नामदार का बेटा है। कोई जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी सिर्फ इसलिए थोपा गया है क्योंकि वो गांधी परिवार का करीबी है तो किसी को राष्ट्र विरोधी गतिविधि में शामिल होने का वजीफा मिला है।

कांग्रेस में परिवारवाद को प्राथमिकता

ऐसा कई बार देखा गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जी-तोड़ मेहनत की, लेकिन जब चुनाव की बारी आई तो कार्यकर्ताओं को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। हर बार की तरह इस बार भी कांग्रेस में कार्यकर्ताओं के परिश्रम से ज्यादा परिवारवाद, कामदार से ज्यादा नामदारों को तरजीह दी गई है।

कांग्रेस ने जिन नेताओं को राज्यसभा का सांसद बनाने के लिए चुनाव है, उनमें दीपेंद्र हुड्डा का नाम शामिल है। दीपेंद्र 2019 का लोकसभा चुनाव हरियाणा से हार गए थे, लेकिन इसके बाद भी इन्हें सिर्फ इसलिए उम्मीदवार बनाया गया है क्योंकि ये हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे हैं।

इसी प्रकार गुजरात से कांग्रेस के बड़े नेता और विदेश मंत्री रह चुके माधवसिंह सोलंकी के बेटे भरत सिंह सोलंकी को भी उम्मीदवार बनाया गया है।

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री रजनीतई सातव के पुत्र राजीव सातव को भी कांग्रेंस ने आगे किया है।

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव हार चुकीं फूलो देवी नेताम को कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए उम्मीदवार बनाया है, क्योंकि वो कांग्रेस के दिग्गज नेता अरविंद नेताम की बेटी हैं।

कुल मिलाकर ये चारों भी कांग्रेस की वंशवाद परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।

गांधी परिवार की वफादारी का इनाम

वैसे कांग्रेस के लिए जहां नामदार होना सबसे बड़ी योग्यता है, वहीं दूसरी योग्यता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, और वो है गांधी परिवार की वफादारी। राज्यसभा के लिए उम्मीदवार तय करते समय इसका पूरा ख्याल रखा गया है।

जाने माने वकील केटीएस तुलसी का भले ही छतीसगढ़ से कोई लेना-देना न हो, लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया है, जानते हैं क्यों, वे फिलहाल रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े सभी मामलों को संभाल रहे हैं या फिर ये कह लीजिए कि वाड्रा को कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जाहिर है गांधी परिवार के इस करीबी को इनाम मिला है।

दिग्विजय सिंह को भला कौन नहीं जानता। हिंदुओं और महिलाओं के खिलाफ विवादित बयान देने के बाद भी इन्हें मध्य प्रदेश से इसलिए उम्मीदवार बनाया गया क्योंकि पिछले तीन दशक से गांघी परिवार के प्रति वफादारी में कोई कमी नहीं होने दी।

अब राजस्थान से के सी वेणुगोपाल के खिलाफ भले ही अधिकतर कांग्रेसी हों, लेकिन जो राहुल गांधी का करीबी हो, उसे भला कौन रोक सकता है।

हारे हुए उम्मीदवारों को थोपने की कोशिश

कांग्रेस में उसी का सिक्का चलता है, जिसे गांधी परिवार का आशीर्वाद हासिल हो, अब जनता भले ही उसे नकार दे।

दीपेंद्र सिंह हुड्डा और दिग्विजय सिंह का एक परिचय ये भी है कि 2019 लोकसभा चुनाव में ये दोनों बुरी तरह हार चुके हैं।

कांग्रेस के ऐसे उम्मीदवारों को भी राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है, जो कभी चुनाव लड़े ही नहीं या फिर पिछले चुनाव में लड़ने से इंकार कर दिया। जैसे केटीएस तुलसी और के सी वेणुगोपाल ने कभी चुनाव ही नहीं लड़ा। राजीव सातव ने 2019 में चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया।

देश विरोधी ताकतों को समर्थन

कांग्रेस की दुर्दशा की एक बड़ी वजह ये भी है कि वो इस समय राष्ट्र विरोधी ताकतों के साथ खड़ी दिखाई देती है। राज्यसभा चुनाव में भी ऐसा ही दिखता है।

कांग्रेस ने असम में राज्यसभा सीट पर संयुक्त उम्मीदवार के प्रस्ताव में बदरुद्दीन अजमल की AIUDF के साथ हाथ मिलाया है। AIUDF के नेता कई बार देशविरोधी बयानों के वजह से सुर्खियां बटोर चुके हैं।

बीजेपी में नामदारों को नहीं कामदारों को टिकट

ये तो कांग्रेस का हाल है, लेकिन जैसे ही राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों की लिस्ट देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि यहां नामदारों की नहीं, कामदारों की चलती है। यहां परिवारवाद नहीं, कार्यकर्ताओं के परिश्रम को इनाम मिलता है।

अभय भारद्वाज हों सुमेर सिंह सोलंकी हों या इंदु गोस्वामी – ये सभी छोटी प्रोफाइल के नेता हैं।

अभय भारद्वाज गुजरात के राजकोट से वकील हैं, तो वही सुमेर सिंह सोलंकी मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में सहायक प्रोफेसर हैं। जबकि इंदु गोस्वामी लगातार महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। कई तो यकीन ही नहीं हुआ कि उन्हें राज्यसभा के लिए बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है।

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