गांधीजी के प्रति आश्रम में फैल गया था आक्रोश

गांधी जी की वासनात्मक प्रवृत्ति के कारण उनके आश्रम में भी उनके प्रति आक्रोश फैल गया था । उनके निकटतम साथी भी उनसे नाराज रहने लगे थे ।इस विषय में एमवी कामथ लिखते हैं कि, ‘अपने ही तरीके से और बिना इसका अर्थ रखे महात्मा ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दीं। जब उन्हें आगा खान पैलेस में कैद कर रखा गया तब उनका कस्तूरबा के साथ मेल मिलाप हुआ। ”

गांधीजी के बारे में हम जो कुछ भी लिख रहे हैं उसका आशय यह नहीं है कि हम उन्हें बदनाम करें। इसका आशय केवल यह है कि हमारे राजनीतिज्ञों में जो यह कुसंस्कार पैदा हुआ है कि मेरी निजी जिंदगी और सार्वजनिक जिंदगी दोनों को अलग-अलग करके पढ़ो , यह भारत के संस्कारों के विपरीत है । व्यक्ति का निजी जीवन उसके सार्वजनिक जीवन की नींव है। व्यक्ति अपने निजी जीवन में जितना चरित्रवान होगा उतना ही उसका सार्वजनिक जीवन महत्वपूर्ण और समाज के लोगों के लिए प्रेरक होगा ।यह भारत का संस्कार है । वेद आदि धर्म शास्त्रों का यही संदेश है। हमारा मानना है कि गांधी जी भारत के इस संस्कार के विपरीत जिस संस्कार की नींव भारत में रख रहे थे उसी का अनुकरण हमारे राजनीतिज्ञ आज तक कर रहे हैं । जिसका परिणाम यह हुआ है कि यहां पर राजा के कुसंस्कारों का प्रभाव आम जनता पर भी पड़ रहा है और नारी जाति असुरक्षित है। जब प्रेरणा स्रोत ही कुसंस्कारों वाला होगा तो उसका परिणाम ऐसा आना स्वाभाविक है।

गांधी के मरने के बाद ही उनकी महिला मित्र प्रभावती अपने पति के साथ सहज जीवन बिता सकीं। ब्रह्मचर्य को लेकर गांधी के इन प्रयोगों से बहुत लोगों को घृणा थी।’ 1938 में प्रेमा बेन कंटक ने ‘प्रसाद’ और ‘दीक्षा’ लिखी जिसमें उन्होंने गांधी के साथ अपनी सेक्स लाइफ को लिखा। इसके परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ।

ब्रह्मचर्य को लेकर गांधी के यह प्रयोग तब शुरू हुए जब वे 1915 में भारत में वापस लौटे और उन्होंने साबरमती आश्रम की स्थापना की। कहते हैं कि इसके साथ ही गांधी का अपनी महिला सहयोगियों के साथ नग्नता का प्रदर्शन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। इसके परिणामस्वरूप आश्रम के अन्य सदस्यों में नाराजगी फैल गई।’

यदि गांधीजी ब्रह्मचर्य का प्रयोग अन्य महिलाओं के साथ ही कर रहे थे तो इसे वह अपनी पत्नी के साथ क्यों नहीं कर सकते थे ? क्यों वह अन्य विवाहिता महिलाओं की जिंदगियों को नर्क बना रहे थे ? इस पर कांग्रेसियों और गांधीवादियो ने आज तक न तो विचार किया है और न ही इसका कोई संतोषजनक उत्तर दिया है।

आश्रम में हंगामे का मुख्य कारण भी उनका दोहरा रवैया था। आश्रम के अन्य सदस्यों के लिए उन्होंने महिलाओं का पूरी तरह से त्याग करने का कड़ा नियम लागू किया, लेकिन वे खुद इस तरह के बंधन से मुक्त थे। इसका स्पष्टीकरण देते समय वे कहते थे कि वे तो अर्द्धनारीश्वर (भगवान शिव) हैं, इसलिए उनमें कोई शारीरिक भूख नहीं है।

अन्य सदस्यों को धोखा देने के लिए वे कहते कि वे कहा करते थे कि वे सबकी मां हैं, इस कारण से आश्रम की प्रत्येक महिला या तो उनकी मां है या फिर एक बहन। दूसरे लोगों को वे अन्य तरीके से धोखा देते थे। वे कहा करते थे कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, वह अंतरात्मा के कहने पर कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में वे ईश्वर के आदेश से कर रहे हैं, इसलिए उनके सारे काम पवित्र हैं।

ऐसे विचारों के कारण गांधी जी को महात्मा कहने को कभी भी मन नहीं कर सकता। उनका दोहरा चरित्र उनको किधर का भी नहीं छोड़ता । उन्होंने जिंदगी को नारकीय ढंग से जिया और महिलाओं को नारकीय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। यह अलग बात है कि उन्होंने इसमें कुछ वैसा ही ढोंगी और पाखंडी स्वरूप अपनाया जैसा आज के आसाराम और दूसरे लोग अपना रहे हैं ।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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