मुझे गर्व है अपने आप पर – – – – –

सचमुच मेरा भारत महान है, क्योंकि मेरा भारत ही है जो हमें एक धर्म – सत्य सनातन वैदिक , एक धर्म ग्रंथ – वेद , एक उपास्य देव – ईश्वर ( ओ३म ) , एक गुरु मंत्र — गायत्री मंत्र , एक राष्ट्र – आर्यावर्त राष्ट्र , एक विश्व ध्वज — ओ३म पताका (भगवा ) , एक संविधान – वेद ,एक संस्कृति — वैदिक संस्कृति , एक भाषा — संस्कृत , एक राष्ट्रभाषा — हिंदी , एक लिपि — देवनागरी , एक नाम – आर्य , एक अभिवादन — नमस्ते , एक शिक्षाभूमि — गुरुकुल , एक नववर्ष — नव संवत्सर , एक आचार — प्राणी मात्र से प्यार , एक विचार — शुद्ध विचार , एक आहार — शाकाहार ,, एक लक्ष्य — कृण्वंतो विश्वमार्यम् – की शिक्षा प्रदान करता है ।

मेरे वैदिक राष्ट्र का मानवतावाद प्राणीमात्र के प्रति प्रेम करने की उत्कृष्टतम भावना पर आधारित है। संसार के अन्य जितने भी मत मतांतर या संप्रदाय या मजहब हैं वे सबके सब इसकी नकल करते हुए पाए जाते हैं। लेकिन नकल के लिए भी अकल की आवश्यकता होती है और नकलची कितने ही स्थानों पर असल से पीछे रह जाते हैं । मेरे वैदिक धर्म की नकल करने वाले संसार के सभी नकलचियों के साथ यही हुआ है कि वे नकल करके भी परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाए हैं। उनसे भूल यह हुई कि उन्होंने प्रकृति प्रदत्त और ईश्वरीय व्यवस्था के समानांतर एक नई व्यवस्था खड़ी करने का अप्राकृतिक कार्य करने का प्रयास किया । जबकि उनके लिए उचित और अपेक्षित यही था कि वह ईश्वर प्रदत वैदिक व्यवस्था में अपने आपको ढालकर चलते और संसार में मानवतावाद के माध्यम से प्राणीमात्र को सुख पहुंचाते हुए शांति स्थापना में अपनी भूमिका का निर्वाह करते।

हजारों वर्ष से संसार की राक्षसी शक्तियां भारत की पवित्र वैदिक संस्कृति के विध्वंस के कार्य में लगी हैं। आज भी आतंकवाद , घातक शस्त्रों के निर्माण और एक दूसरे की सीमाओं के अतिक्रमण करने की महाविनाशकारी प्रवृत्ति के चलते भारत की वैदिक संस्कृति का विनाश करने का प्रयास हो रहा है । विनाश करने वाली यह वही अपसंस्कृतियां हैं जो अलग निशान , अलग विधान , अलग प्रधान के लिए संघर्ष करते हुए विश्व को बांटने का कार्य पिछले हजारों वर्ष से करती चली आ रही हैं । आज भी उनकी यह राक्षसी प्रवृत्ति रुकी नहीं है ।

संसार के मननशील लोग जहां-जहां भी इन दुष्ट राक्षसी वृत्तियों का सामना कर रहे हैं और शांतिपूर्ण ढंग से संसार की शांतिपूर्ण गति को प्रवाहित करने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं वे सभी चाहे किसी भी जाति , बिरादरी , क्षेत्र , भाषा या संप्रदाय आदि के मानने वाले क्यों न हों ? – भारतीय संस्कृति के प्राण सूत्र से बंधे हुए हैं । जो कृण्वन्तो विश्वमार्यम् और वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र भावना पर आधारित है । उनके द्वारा किए जाने वाले ऐसे सार्थक प्रयास भारतीय संस्कृति के ही ध्वजवाहक हैं । मानो वह अपने इन प्रयासों से यही कह रहे हैं कि वैदिक राष्ट्र , वैदिक संस्कृति ,वैदिक भाषा , वैदिक सोच और वैदिक चिंतन के माध्यम से ही इस संसार में शांति स्थापित हो सकती है।

सचमुच मेरा भारत महान है। सारे संसार की सोच भारत बन जाना चाहती है , और सारे संसार की खोज भारत में विलीन हो जाना चाहती है । मुझे गर्व है अपने आप पर कि मैं भारत का रहने वाला हूं और सत्य सनातन वैदिक धर्म का मानने वाला हूँ ।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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