वैदिक संस्कृति में माने गए हैं आत्मा के छह गुण : विवेकानंद परिव्राजक जी महाराज

ग्रेटर नोएडा। ( विशेष संवाददाता ) स्व0 महाशय राजेंद्र सिंह आर्य और माता सत्यवती आर्या की जयंतियों के अवसर पर आयोजित किए गए विशेष यज्ञ के अवसर पर लोगों को संबोधित करते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान, वेदों के प्रकांड पंडित और महान चिंतक विवेकानंद जी महाराज ने कहा की आत्मा इच्छा, द्वेष , प्रयत्न, ज्ञान, सुख और दु:ख इन छह गुणों से पहचाना जाता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि जहां पर इच्छा है, वहां समझिए कि आत्मा का निवास अपने आप ही है। कोई भी जड़ वस्तु इच्छा नहीं कर सकती। आत्मा में द्वेष का गुण भी अपने आप होता है । इसके अतिरिक्त अपने आप चलना भी आत्मा का एक गुण है।

हमें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि जब हमारा हाथ चलता है तो वह अपने आप चलता है बल्कि उसे चलाने वाला कोई और है और वह आत्मा है। इसी को आत्मा का प्रयत्न नामक गुण कहा जाता है। आत्मा के संकेत से ही हमारा मन कार्य करता है और आत्मा के संकेत से ही हमारी अन्य इंद्रियां अपने कामों में लगी रहती हैं या उनमें लगी हुई दिखाई देती हैं । मन एक जड़ वस्तु का नाम है। यह आत्मा से संचालित होता है। मन के बारे में और बताते हुए स्वामी जी महाराज ने कहा कि जब कोई व्यक्ति यह कहता है कि
हमारा मन भक्ति में नहीं लगता या मन बड़ा पापी है तो समझना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति गलत कह रहा होता है वास्तव में मन जड़ होने के कारण और आत्मा से संचालित होने के कारण अपने आप कुछ नहीं कर सकता। उसमें जो भी प्रकाश है वह आत्मा के कारण है। इसलिए आत्मा का परिष्कार करना व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म है। जिसे मोक्ष की अभिलाषा है उसे मन पर नियंत्रण की अपेक्षा आत्मा के परिष्कार पर ध्यान देना चाहिए।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि नई नई नॉलेज हासिल करना या सीखना ही ज्ञान है।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि सुख की अनुभूति होना भी आत्मा का गुण है। इसी प्रकार दुख की अनुभूति होना भी आत्मा के गुणों में ही सम्मिलित है। इस अवसर पर स्वामी जी महाराज ने कहा कि शुभ ,अशुभ और मिश्रित 3 प्रकार के काम हमारा आत्मा करता रहता है। जिन कार्यों के करने से हमारा और समाज के दूसरे लोगों का या प्राणियों का सुख बढ़े वह सारे कार्य शुभ कर्म कहलाते हैं। इन कर्मों को करने से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है । इसके विपरीत चोरी करना एक अशुभ कर्म है। इससे आत्मा भी अप्रसन्न रहता है। संसार का ऐसा कोई भी कार्य जिसके करने से हमारा और दूसरों का कष्ट बढ़े, दु:ख बढ़े वह सभी अशुभ कर्मों की श्रेणी में सम्मिलित किए जाते हैं।
उन्होंने कहा कि खेत में हल चलाना एक मिश्रित कर्म है।मिश्रित कर्म उस को कहते हैं जो कुछ अनुपात में शुभ कर्म होता है तो कुछ अनुपात में अशुभ कर्म होता है । हल चलाने को अशुभ कर्म इसलिए माना जाता है कि खेत में हल की फाली से सांप, मेंढक, केंचुआ आदि की जहां मृत्यु हो जाती है वहीं अनाज उत्पन्न होने से अनेक प्राणधारियो के जीवन की रक्षा भी होती है।

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