प्रश्न : हवन ,पूजा आदि में १०८ आहुतिया,माला के १०८ मनके ,श्री श्री १०८ गुरु महाराज आदि का रहस्य?*

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Dr DK Garg

निवेदन लेख काफी बड़ा है , इसलिए धैर्य से पढ़े,पूरा पड़े और शेयर करके उत्साह वर्धन करे

मुझे एक मित्र के यहाँ यज्ञ में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहां यज्ञ कराने वाले पंडित ने जल्दी जल्दी कुछ मंत्र बोलकर आहुतिया डलवा दो और बोले ये १०८ आहुतियों वाला संकल्प पूरा हुआ। इसी तरह एक आहुति दिलवाकर उसने कहा की ये एक करोड़ आहुति है ।इस श्रंखला में इस पंडित द्वारा बोले गए कुछ मंत्रो की कुछ बानगियाँ देखो—ग्राम देवता स्वाहा ,नगर देवता स्वाहा ।। यानि जो भी शब्द उसकी जुबान पर आया,वही शब्द स्वाहा।

पौराणिक मान्यताये: इस 108 की खोज करने पर कुछ पौराणिक मान्यताये सुनने को मिली,देखो: 1.भगवान शंकर जब भगवान अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं तब वो यह तांडव नृत्य करते हैं। इस नृत्य में कुल 108 मुद्राएं होती हैं। इतना ही नहीं महादेव के पास कुल 108 गण भी हैं।
2.वृंदावन में 108 गोपियों का जिक्र किया गया है। 108 मनकों के साथ -साथ इन गोपियों के नामों का जाप, जिसे नामजाप कहते हैं को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है। 3.श्रीवैष्णव धर्म में विष्णु के 108 दिव्य क्षेत्रों को बताया गया है जिन्हें ‘108 दिव्यदेशम’ कहा जाता है।
4.पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी सूर्य के व्यास के 108 गुना है। इसी प्रकार पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी भी चंद्रमा के व्यास का 108 गुना है।
5.मनुष्य में कुल 108 भावनाएं होती हैं जिसमें से 36 भावनाओं का सम्बन्ध हमारे अतीत से, 36 का सम्बन्ध वर्तमान से और 36 का सम्बन्ध भविष्य से होता है।
6.बौद्ध धर्म में 108 प्रकार के गुण विकसित करने और 108 प्रकार के अवगुणों से बचने के लिए भी मनुष्य को कहा जाता है।
7.रुद्राक्ष भगवान शिव के आंसू से बनते हैं. रुद्राक्ष की माला में 108 मनके ही होते हैं ऐसा इस वजह से है क्योंकि 108 अंक को भगवान शिव का अंक माना जाता है.
8 बौद्ध धर्म में,पुराने वर्ष के अंत को चिह्नित करने के लिए 108 बार घंटी बजाई जाती है; क्योंकि बौद्ध सिद्धांतों में 108 प्रकार की सांसारिक इच्छाएँ हैं। इसलिए प्रत्येक बौद्ध को निर्वाण प्राप्त करने के मार्ग पर इन 108 प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करनी होगी।

विश्लेषण: उपरोक्त मान्यताओं में कोई भी प्रामाणिक और वैज्ञानिक नहीं है ,एक दूसरे में विरोधाभास भी है ,किसको सच माने?ये है अज्ञानियों की बात ,क्योकि जितनी तुकबंदी १०८ को सही सिद्ध करने में की गयी है,यदि कुछ समय स्वाध्याय में लगाया होता और यदि १०८ की वास्तविकता को समझने का प्रयास किया होता तो १०८ माला जपने के बजाय ईश्वर के सच्चे अनुयायी हो जाते। इस अंधविस्वास से शिक्षित वर्ग ,वैज्ञानिक भी अछूते नहीं है।

एक ही बात हमेशा से कहता रहा हूँ की कुछ तो बात रही होगी जो हवन में १०८ मंत्र द्वारा ईश्वर के नाम की आहुतियां दी जाती है ।इसकी वास्तविकता समझने का प्रयास करते है।
कृपया ध्यान दे कि वेदों में एक भी ऐसा मंत्र नहीं लिखा है जो ईश्वर के अनेक होने की घोषणा करता हो। हां,इतना जरूर है कि वेद मंत्रों में एक ईश्वर को उसके गुणों के आधार पर अनेकों से पुकारा गया है। वेदों के अनुसार ईश्वर और मानव के बीच किसी ‘एजेंट’ की जरूरत नहीं है। ईश्वर का कोई पुत्र ,पत्नी, पिता या भौतिक परिवार नहीं है। ईश्वर का कोई रूप और गुण नहीं है। रूप और गुण हमारे मन के भेद हैं और ईश्वर स्वयं में पूर्ण है ,उसको किसी अन्य की सहायता ,अवतार लेने की जरुरत नहीं है ।ईश्वर सर्व्यापक , सर्वाधार और अन्तर्यामी है।वेद मंत्र भी है —
ओम पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णत: पूर्णम-उदचछते, पूर्णस्य पूर्णमदाये पूर्णमेवा विशिष्टे स्वाहा (ओम पूर्ण है, ओम अपरिवर्तनीय, कालातीत, अविनाशी और पूर्ण है)
स्वामी दयानन्द ने महान ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में ईश्वर के १०८ मुख्य नामो की व्याख्या की है। और हवन करते समय इन्ही विभिन्न नामों के साथ वेद मंत्रो द्वारा ओम के उच्चारण के साथ आहुतिया दी जाती है। उदाहरण के लिए —
• ओ३म् सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय –इदन्न मम ।।(चंद्रमा को, जो ब्रह्मांडीय सद्भाव की शक्ति है, मैं उसे अर्पण करता हूं।)
• ओ३म् प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये – इदन्न मम ।।(सृष्टिकर्ता को, जो सृष्टि की शक्ति है, वही मैं
अर्पित करता हूं)
• ओ३म् इंद्रायः स्वाहाः ।इदं इंद्रायः इदन्न मम ।।
• (ब्रह्मांडीय नियंत्रण सुनिश्चित करने वाले इंद्र को मैं अर्पण करता हूं)

उदाहरण के लिए कुछ और भी–
• ओ३म् अग्नये स्वाहा। इदमग्नये – इदं न मम।।
• ओ३म् प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये – इदं न मम।।
• ओ३म् इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय – इदं न मम ।।
• ओ३म् भूरग्नये स्वाहा।। इदमग्नये इदं न मम ।।
• ओ३म् भुवर्वायवे स्वाहा ।। इदं वायवे इदं न मम ।।
• ओ३म् स्वरादित्याय स्वाहा ।। इदमादित्याय इदं न मम ।।
• ओ३म् सूर्यो ज्योतिज्र्योतिः सूर्यः स्वाहा।
यज्ञ की आहुति आदि में प्रयुक्त ईश्वर के विभिन्न १०८ नामो की व्याख्या–जैसा की पहले बताया गया है की वेद मंत्रो में ईश्वर के १०८ नामो का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार है –
1 आचार्य -य आचारं ग्राहयति, सर्वा विद्या बोधयति स आचार्य ईश्वरः जो सत्य आचार का ग्रहण करानेहारा और सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘आचार्य’ है। Source of all true knowledge
2 आदित्य ‘न विद्यते विनाशो यस्य सोऽयमदितिः, अदितिरेव आदित्यः’ जिसका विनाश कभी न हो उसी ईश्वर की ‘आदित्य’ संज्ञा है। Immortal, One who never decays
3 आकाश जो सब ओर से सब जगत् का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘आकाश’ है। Illuminator, One who Enlightens
4 आनंद जो आनन्दस्वरूप, जिस में सब मुक्त जीव आनन्द को प्राप्त होते और सब धर्मात्मा जीवों को आनन्दयुक्त करता है, इससे ईश्वर का नाम ‘आनन्द’ है। All-blissful one
5 आप्त ‘यः सर्वान् धर्मात्मन आप्नोति वा सवैर्धर्मात्मभिराप्यते छलादिरहितः स आप्तः’ जो सत्योप- देशक, सकल विद्यायुक्त, सब धर्मात्माओं को प्राप्त होता है और धर्मात्माओं से प्राप्त होने योग्य छल-कपटादि से रहित है, इसलिये उस परमात्मा का नाम ‘आप्त’ है। The embodiment of knowledge and righteousness; Teacher; Accessible by the righteous; Free from negative attributes.
6 आत्म जो सभी प्राणियों में चेतन होता है। One who pervades the soul, All pervading
7 अद्वैता ‘सजातीयविजातीयस्वगतभेदशून्यं ब्रह्म’
दो का होना वा दोनों से युक्त होना वह द्विता वा द्वीत अथवा द्वैत से रहित है। सजातीय जैसे मनुष्य का सजातीय दूसरा मनुष्य होता है, विजातीय जैसे मनुष्य से भिन्न जातिवाला वृक्ष, पाषाणादि। स्वगत अर्थात् जैसे शरीर में आँख, नाक, कान आदि अवयवों का भेद है, वैसे दूसरे स्वजातीय ईश्वर, विजातीय ईश्वर वा अपने आत्मा में तत्त्वान्तर वस्तुओं से रहित एक परमेश्वर है, इससे परमात्मा का नाम ‘अद्वैत’ है। One without second, Only One
8 अग्नि ‘योऽञ्चति, अच्यतेऽगत्यंगत्येति सोऽयमग्निः’
जो ज्ञानस्वरूप, सर्वज्ञ, जानने, प्राप्त होने और पूजा करने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘अग्नि’ है। All-Glorious
9 अज जो सब प्रकृति के अवयव आकाशादि भूत परमाणुओं को यथायोग्य मिलाता, जानता, शरीर के साथ जीवों का सम्बन्ध करके जन्म देता और स्वयं कभी जन्म नहीं लेता, इससे उस ईश्वर का नाम ‘अज’ है। One who brings together atoms and molecules for creation
10 अक्षर ‘यः सर्वमश्नुते न क्षरति न विनश्यति तदक्षरम्।’
जो सर्वत्र व्याप्त जिसका कभी विनाश नहीं होता है। Immortal, Omnipresent
11 अनादि जिसके पूर्व कुछ न हो और परे हो, उसको आदि कहते हैं, जिस का आदि कारण कोई भी नहीं है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘अनादि’ है। One without beginning or cause
12 अनंत * जो पदार्थ हों उनको सत् कहते हैं, उनमें साधु होने से परमेश्वर का नाम ‘सत्य’ है। जो जाननेवाला है, इससे परमेश्वर का नाम ‘ज्ञान’ है। जिसका अन्त अवधि मर्यादा अर्थात् इतना लम्बा, चौड़ा, छोटा, बड़ा है, ऐसा परिमाण नहीं है, इसलिए परमेश्वर के नाम ‘सत्य’, ‘ज्ञान’ और ‘अनन्त’ हैं। One without limit or boundaries, without dimension
13 *अन्न
जो सब को भीतर रखने, सब को ग्रहण करने योग्य, चराऽचर जगत् का ग्रहण करने वाला है, इस से ईश्वर के ‘अन्न’, ‘अन्नाद’ और ‘अत्ता’ नाम हैं। One who contains the Universe within
14 अंतर्यामी अन्तर्यन्तुं नियन्तुं शीलं यस्य सोऽयमन्तर्यामी
जो सब प्राणी और अप्राणिरूप जगत् के भीतर व्यापक होके सब का नियम करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘अन्तर्यामी’ है। Pervader of All animate and inanimate
15 अर्यमा जो सत्य न्याय के करनेहारे मनुष्यों का मान्य और पाप तथा पुण्य करने वालों को पाप और पुण्य के फलों का यथावत् सत्य-सत्य नियमकर्ता है, इसी से उस परमेश्वर का नाम ‘अर्य्यमा’ है। One who respect and rewards the good and punishes the wicked
16बंधू जैसे भ्राता भाइयों का सहायकारी होता है, वैसे परमेश्वर भी पृथिव्यादि लोकों के धारण, रक्षण और सुख देने से ‘बन्धु’ संज्ञक है। One who is like a brother unto the world and supports and protects.
17 भगवान ‘भगः सकलैश्वर्य्यं सेवनं वा विद्यते यस्य स भगवान्’
जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त वा भजने के योग्य है, इसीलिए उस ईश्वर का नाम ‘भगवान्’ है। Almighty, all-powerful One, One who is worthy to be served and worshiped
18 भूमिः ‘भवन्ति भूतानि यस्यां सा भूमि।’
जिसमें सब भूत प्राणी होते हैं इसलिए ईश्वर का नाम भूमि है। Abode of all
19 ब्रह्मा त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि, त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि जो सबके ऊपर विराजमान, सब से बड़ा, अनन्तबलयुक्त परमात्मा है, उस ब्रह्म को हम नमस्कार करते हैं। हे परमेश्वर ! आप ही अन्तर्यामिरूप से प्रत्यक्ष ब्रह्म हो मैं आप ही को प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूँगा, क्योंकि आप सब जगह में व्याप्त होके सब को नित्य ही प्राप्त हैं। Greatest of all; Creator
20 ब्राह्मण जो ईश्वर में लीन है वह ब्राह्मण है। All pervading principle of the world
21 बृहस्पति ‘यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः’
जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ है। Greatest of the Great; Universal One
22 बुद्ध ‘यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः’
जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है। All knowing
23 चंद्र जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है। All-bliss, Giver of happiness
24 चन्द्रमा जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है। True source of happiness
25 चित्त जो चेतन स्वरूप है सब जीवों को चिताने और सत्यासत्य का जनानेहारा है इसलिए ईश्वर का नाम चित् है। The Conscious One
26 दयालु जो अभय का दाता, सत्याऽसत्य सर्व विद्याओं का जानने, सब सज्जनों की रक्षा करने और दुष्टों को यथायोग्य दण्ड देनेवाला है, इस से परमात्मा का नाम ‘दयालु’ है। Fearless Knower of all, Protector of the Good and Punisher of the Wicked
27 देव (क्रीडा) जो शुद्ध जगत् को क्रीडा कराने (विजिगीषा) वमार्मिकों को जिताने की इच्छायुक्त (व्यवहार) सब चेष्टा के साधनोप- साधनों का दाता (द्युति) स्वयंप्रकाशस्वरूप, सब का प्रकाशक (स्तुति) प्रशंसा के योग्य (मोद) आप आनन्दस्वरूप और दूसरों को आनन्द देनेहारा (मद) मदोन्मत्तों का ताड़नेहारा (स्वप्न) सब के शयनार्थ रात्रि और प्रलय का करनेहारा (कान्ति) कामना के योग्य और (गति) ज्ञानस्वरूप है, इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘देव’ है। One who gives triumph to the righteous
28 देवी परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम हैं। .. जब ईश्वर का विशेषण होगा तब ‘देव’ जब चिति का होगा तब ‘देवी’, इससे ईश्वर का नाम ‘देवी’ है। God, Supreme Consciousness
29 धर्मराज ‘यो धर्म्मे राजते स धर्मराजः’
जो धर्म ही में प्रकाशमान और अधर्म से रहित, धर्म ही का प्रकाश करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘धर्म्मराज’ है। One who is free from sin; One who rejoices in truth, justice and righteousness
30 दिव्य द्युषु शुद्धेषु पदार्थेषु भवो दिव्यः’
जो प्रकृत्यादि दिव्य पदार्थ में व्याप्त । One who pervades all luminous bodies
31 ईश्वर सामर्थ्यवाले का नाम ईश्वर है। One of Infinite knowledge and power
32 गणपित जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालन करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘गणेश’ वा ‘गणपति’ है। Lord of all the material and Spiritual world
33 गणेश जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालन करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘गणेश’ वा ‘गणपति’ है। Lord of hosts
34 गरुत्मान ‘यो गुर्वात्मा स गरुत्मान्’
जिसका आत्मा अर्थात स्वरूप महान है। Mighty by nature
35 गुरु जो सत्यधर्मप्रतिपादक, सकल विद्यायुक्त वेदों का उपदेश करता, सृष्टि की आदि में अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा और ब्रह्मादि गुरुओं का भी गुरु और जिसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘गुरु’ है। Teacher of all true knowledge
36 ज्ञान जो जाननेवाला है, इससे परमेश्वर का नाम ‘ज्ञान’ है। One who knows all
37 हिरण्यगर्भा ‘यो हिरण्यानां सूर्यादीनां तेजसां गर्भ उत्पत्तिनिमित्तमधिकरणं स हिरण्यगर्भः’
जिसमें सूर्य्यादि तेज वाले लोक उत्पन्न होके जिसके आधार रहते हैं अथवा जो सूर्यादि तेजःस्वरूप पदार्थों का गर्भ नाम, (उत्पत्ति) और निवासस्थान है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘हिरण्यगर्भ’ है। One who is the source; The support of all light and luminous bodies.
38 होता ‘यो जुहाति स होता’
जो जीवों को देने योग्य पदार्थों दाताओं ग्रहण करने योग्य का ग्राहक है इसे परमेश्वर का नाम होता है। One who gives what is worth giving and takes what is worth taking
39 इंद्र जो अखिल ऐश्वर्ययुक्त है, इस से उस परमात्मा का नाम ‘इन्द्र’ है। All-powerful, Protector
40 जल जो दुष्टों का ताड़न और अव्यक्त तथा परमाणुओं का अन्योऽन्य संयोग वा वियोग करता है, वह परमात्मा ‘जल’ संज्ञक कहाता है। One who shapes the atoms, Punisher of the wicked
41 काल ‘कलयति संख्याति सर्वान् पदार्थान् स कालः’
जो जगत् के सब पदार्थ और जीवों की संख्या करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘काल’ है। One who counts and classifies the material objects and souls
42 कालाग्नि प्रलय में सबका काल और काल का भी काल है इसलिए परमेश्वर का नाम कालाग्नी है। Cause of dissolution
43 के तु ‘यः केतयति चिकित्सति वा स केतुरीश्वरः’
जो सब जगत् का निवासस्थान, सब रोगों से रहित और मुमुक्षुओं को मुक्ति समय में सब रोगों से छुड़ाता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘केतु’ है। Abobe of the Universe; One who is free from disease and death
44 खम आकाशवत व्यापक होने से। All-Pervading (as in Om (Protector) Kham (all pervading) Brahma(Greater than all))
45 कूटस्थ जो सब व्यवहारों में व्याप्त और सब व्यवहारों का आधार होके भी किसी व्यवहार में अपने स्वरूप को नहीं बदलता, इससे परमेश्वर का नाम ‘कूटस्थ’ है। The Changeless One who pervades and supports all.
46 कुबेर जो अपनी व्याप्ति से सब का आच्छादन करे, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘कुबेर’ है। One who covers all, Overspreads over all
47 लक्ष्मी जो सब चराचर जगत् को देखता, चिह्नित अर्थात् दृश्य बनाता, जैसे शरीर के नेत्र, नासिकादि और वृक्ष के पत्र, पुष्प, फल, मूल, पृथिवी, जल के कृष्ण, रक्त, श्वेत, मृत्तिका, पाषाण, चन्द्र, सूर्यादि चिह्न बनाता तथा सब को देखता, सब शोभाओं की शोभा और जो वेदादिशास्त्र वा धार्मिक विद्वान् योगियों का लक्ष्य अर्थात् देखने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘लक्ष्मी’ है। One who sees the entire world and endows it with its variety of nature
48 माता ‘यो मिमीते मानयति सर्वाञ्जीवान् स माता’
जैसे पूर्णकृपायुक्त जननी अपने सन्तानों का सुख और उन्नति चाहती है, वैसे परमेश्वर भी सब जीवों की बढ़ती चाहता है, इस से परमेश्वर का नाम ‘माता’ है। Mother
49 मातिरश्वा ‘यो मातरिश्वा वायुरिव बलवान् स मातरिश्वा’
जो वायु के समान बलवान है इसलिए परमेश्वर का नाम मातिरश्वा नाम है। Powerful like the wind
50 महादेव ‘महत्’ – ‘महत्’ शब्द पूर्वक ‘देव’ शब्द से ‘महादेव’ सिद्ध होता है। ‘यो महतां देवः स महादेवः’ जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘महादेव’ है। Greatest among Great, Light of the World
51 मंगल ‘यो मंगति मंगयति वा स मंगलः’
जो आप मंगलस्वरूप और सब जीवों के मंगल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मंगल’ है। All blissful
52 मनु ‘यो मन्यते स मनुः’ – जो मनु अर्थात् विज्ञानशील और मानने योग्य है, इसलिये उस ईश्वर का नाम ‘मनु’ है। Embodiment of all true knowledge
53 मित्र ‘मेद्यति, स्निह्यति स्निह्यते वा स मित्रः’ – जो सब से स्नेह करके और सब को प्रीति करने योग्य है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘मित्र’ है। One who loves all and is worthy of love
54 मुक्त जो सर्वदा अशुद्धियों से अलग और सब मुमुक्षुओं को क्लेश से छुड़ा देता है, इसलिए परमात्मा का नाम ‘मुक्त’ है। One who is free from sin and impurity
55 नारायण जल और जीवन का नाम है वे अयन निवास स्थान है जिसका जीवन में व्यापक आत्मा का नाम नारायण है। Pervader, Abode of all souls
56 निराकार जिस का आकार कोई भी नहीं और न कभी शरीर-धारण करता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘निराकार’ है। Formless one, One without embodiment
57 निरंजना जो व्यक्ति अर्थात् आकृति, म्लेच्छाचार, दुष्टकामना और चक्षुरादि इन्द्रियों के विषयों के पथ से पृथक् है, इससे ईश्वर का नाम ‘निरञ्जन’ है। One who is free from from immorality or disorder
58 निर्गुण जितने सत्त्व, रज, तम, रूप, रस, स्पर्श, गन्धादि जड़ के गुण, अविद्या, अल्पज्ञता, राग, द्वेष और अविद्यादि क्लेश जीव के गुण हैं उन से जो पृथक् है। … जो शब्द, स्पर्श, रूपादि गुणरहित है, इससे परमात्मा का नाम ‘निर्गुण’ है। One who is free from distinguishing traits like taste, touch, smell etc
59 नित्य जो निश्चल अविनाशी है, सो ‘नित्य’ शब्दवाच्य ईश्वर है। Firm, immortal, eternal
60 नित्यशुद्ध बुधमुक्त सुभाव ‘अत एव नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावो जगदीश्वरः’
इसी कारण से परमेश्वर का स्वभाव नित्यशुद्धबुद्धमुक्त है। Eternal, Holy, Omniscient and free
61 न्यायकारी ‘न्यायं कर्तुं शीलमस्य स न्यायकारीश्वरः’ – जिस का न्याय अर्थात् पक्षपातरहित धर्म करने ही का स्वभाव है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘न्यायकारी’ है। One who upholds logic
62 ओ३म् इसके प्रति की इच्छा करके ब्रह्मचर्य आश्रम करते हैं उसका नाम ओ३म् है । God
63 परमात्मा जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव, प्रकृति तथा आकाश से भी अतिसूक्ष्म और सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा है, इससे ईश्वर का नाम ‘परमात्मा’ है। Holier than the soul, Subtler and more powerful than the soul and matter
64 परमेश्वर ‘य ईश्वरेषु समर्थेषु परमः श्रेष्ठः स परमेश्वरः’ – जो ईश्वरों और साथसमर्थों में समर्थ है जिसके तुल्य कोई भी नहीं है उसका नाम परमेश्वर है। All powerful, Almighty
65 पिता ‘यः पाति सर्वान् स पिता’ – जो सब का रक्षक जैसा पिता अपने सन्तानों पर सदा कृपालु होकर उन की उन्नति चाहता है, वैसे ही परमेश्वर सब जीवों की उन्नति चाहता है, इस से उस का नाम ‘पिता’ है। One who protects all
66 हिरण्यगर्भ जो सूर्यादि तेज स्वरूप पदार्थों का गर्भ नाम (उत्पत्ति ,)और निवास स्थान है इससे उसे परमेश्वर का नाम हिरण्यगर्भ है।
67 पितामह ‘यः पितृणां पिता स पितामहः’ – जो पिताओं का भी पिता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘पितामहः’ है। Father of fathers
68 प्राज्ञ ‘यः प्रकृष्टतया चराऽचरस्य जगतो व्यवहारं जानाति स प्रज्ञः, प्रज्ञ एव प्राज्ञः’ – जो निर्भ्रान्त ज्ञानयुक्त सब चराऽचर जगत् के व्यवहार को यथावत् जानता है, इससे ईश्वर का नाम ‘प्राज्ञ’ है। इत्यादि नामार्थ मकार से गृहीत होते हैं। जैसे एक-एक नामार्थ से तीन-तीन अर्थ यहाँ व्याख्यात किये हैं वैसे ही अन्य नामार्थ भी ओंकार से जाने जाते हैं। जो (शन्नो मित्रः शं व०) इस मन्त्र में मित्रादि नाम हैं वे भी परमेश्वर के हैं, क्योंकि स्तुति, प्रार्थना, उपासना श्रेष्ठ की ही की जाती है। श्रेष्ठ उसको कहते हैं जो अपने गुण, कर्म्म, स्वभाव और सत्य-सत्य व्यवहारों में सब से अधिक हो। उन सब श्रेष्ठों में भी जो अत्यन्त श्रेष्ठ है, उस को परमेश्वर कहते हैं। जिस के तुल्य न कोई हुआ, न है और न होगा। जब तुल्य नहीं तो उससे अधिक क्योंकर हो सकता है ? Omniscient, One of Perfect knowledge
69 प्राण सब का जीवन मूल होने से। Source of all life
70 प्रपितामह ‘यः पितामहानां पिता स प्रपितामहः’ – जो पिताओं के पितरों का पिता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘प्रपितामह’ है। The Great-Grandfather; Most superior
71 पृथिवी जो सब विस्तृत जगत् का विस्तार करने वाला है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘पृथिवी’ है। One who spreads the extensive universe
72 प्रिय ‘यः पृणाति प्रीयते वा स प्रियः – जो सब धर्मात्माओं, मुमुक्षुओं और शिष्टों को प्रसन्न करता और सब को कामना के योग्य है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘प्रिय’ है। One who brings happiness to the righteous ones
73 पुरुष ‘यः स्वव्याप्त्या चराऽचरं जगत् पृणाति पूरयति वा स पुरुषः’ – जो सब जगत् में पूर्ण हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘पुरुष’ है। One who fills the universe
74 राहु ‘यो रहति परित्यजति दुष्टान् राहयति त्याजयति स राहुरीश्वरः’ जो एकान्तस्वरूप जिसके स्वरूप में दूसरा पदार्थ संयुक्त नहीं, जो दुष्टों को छोड़ने और अन्य को छुड़ाने हारा है, इससे परमेश्वर का नाम ‘राहु’ है। One who is pure without mixture from anything;
75 रूद्र जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रुलाता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘रुद्र’ है। Punisher of the wicked
76 सच्चिदानंदा जो चेतनस्वरूप सब जीवों को चिताने और सत्याऽसत्य का जनानेहारा है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘चित्’ है। इन तीनों शब्दों के विशेषण होने से परमेश्वर को ‘सच्चिदानन्दस्वरूप’ कहते हैं। One who is truth, consciousness and bliss
77 सगुणा ‘यो गुणैः सह वर्त्तते स सगुणः’ – जो सब का ज्ञान, सर्वसुख, पवित्रता, अनन्त बलादि गुणों से युक्त है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘सगुण’ है। One who rejects the wicked
78 सरस्वती जिस को विविध विज्ञान अर्थात् शब्द, अर्थ, सम्बन्ध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘सरस्वती’ है। One with infinite knowledge of the universe
79 सर्वशक्तिमान जो अपने कार्य करने में किसी अन्य की सहायता की इच्छा नहीं करता, अपने ही सामर्थ्य से अपने सब काम पूरा करता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘सर्वशक्तिमान्’ है। One who, by His own Power, does everything
80 सत जो सदा वर्त्तमान अर्थात् भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान कालों में जिसका बाध न हो, उस परमेश्वर को ‘सत्’ कहते हैं। One who exists at all times (in past, present, future)
81 सत्य जो पदार्थ हों उनको सत् कहते हैं, उनमें साधु होने से परमेश्वर का नाम ‘सत्य’ है। Embodiment of true existence
82 सविता जो सब जगत् की उत्पत्ति करता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘सविता’ है। Savitaa
83 शक्ति जो सब जगत् के बनाने में समर्थ है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शक्ति’ है। One with power to create the universe
84 शनैशच् र ‘यः शनैश्चरति स शनैश्चरः’ – जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है। One who has access to all
85 शंकर ‘यः शंकल्याणं सुखं करोति स शंकरः’ – जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘शंकर’ है। Benefactor, Giver of Happiness
86 शेष ‘यः शिष्यते स शेषः’ – जो उत्पत्ति और प्रलय से शेष अर्थात् बच रहा है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘शेष’ है। Changeless One through creation and dissolution
87 शिव ‘बहुलमेतन्निदर्शनम्।’ – इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है। Blissful, Benefactor
88 श्री जिस का सेवन सब जगत्, विद्वान् और योगीजन करते हैं, उस परमात्मा का नाम ‘श्री’ है। One who is served by the Noble ones
89 शुद्ध जो स्वयं पवित्र सब अशुद्धियों से पृथक् और सब को शुद्ध करने वाला है, इससे ईश्वर का नाम ‘शुद्ध’ है। The Pure One, One who purifies others
90 शुक्र ‘यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः’ – जो अत्यन्त पवित्र और जिसके संग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिये ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है। All-holy, One whose contact purify all souls
91 सूर्य ‘तस्थुषः’ – अप्राणी अर्थात् स्थावर जड़ अर्थात् पृथिवी आदि हैं, उन सबके आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य्य’ है। Life and Light of the Universe
92 सुपर्णा ‘शोभनानि पर्णानि पालनाणि पूर्णानि कर्माणि वा यस्य सः सुपर्णाः’ – जिसके उत्तम पालन और पूर्ण कर्म है। Protector and Preserver of the Universe;
93 यम जो सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता और अन्यायों से पृथक रहता है इसलिए परमात्मा का नाम यम है।
94 सर्वत्र सर्वत्र विद्यमान होने से ईश्वर का नाम सर्वत्र है Self-effulgent
95 स्वयंभू ‘यः स्वयं भवति स स्वयम्भूरीश्वरः – जो आप से आप ही है, किसी से कभी उत्पन्न नहीं हुआ, इस से उस परमात्मा का नाम ‘स्वयम्भू’ है। Self-Existent, Uncreated
96 तेजः जो आप स्वयंप्रकाश और सूर्य्यादि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है, इससे ईश्वर का नाम ‘तैजस’ है। इत्यादि नामार्थ उकारमात्र से ग्रहण होते हैं। One who shines and enlightens, One who is source of light to luminous bodies
97 उरुक्रमा अनंत बलशाली होने से ईश्वर का नाम उरुक्रमा हैं। One of Infinite energy
98 वायु (गन्धनं हिसनम्) ‘यो वाति चराऽचरञ्जगद्धरति बलिनां बलिष्ठः स वायुः’ – जो चराऽचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता और सब बलवानों से बलवान् है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘वायु’ है। One who is the life of the Universe; One who is the cause of dissolution, Mightier than the Mightiest
99 वरुण ‘वरुणो नाम वरः श्रेष्ठः’ – जिसलिए परमेश्वर सब से श्रेष्ठ है, इसीलिए उस का नाम ‘वरुण’ है। Holiest of all; One who is desired and sought by the righteous and learned
100 वसु जिसमें सब आकाशादि भूत वसते हैं और जो सब में वास कर रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘वसु’ है। One who dwells within all and is the abode for all
101 विराट ‘यो विविधं नाम चराऽचरं जगद्राजयति प्रकाशयति स विराट्’ विविध – जो बहु प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे, इससे ‘विराट्’ नाम से परमेश्वर का ग्रहण होता है। Eminent One
102 विष्णु ‘वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ – चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’ है। All-pervading
103 विश्व जिस में आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इनमें व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘विश्व’ है, इत्यादि नामों का ग्रहण अकारमात्र से होता है। Universal Lord, One in whom we confide
104 विश्वम्भरा ‘यो विश्वं बिभर्ति धरति पुष्णाति वा स विश्वम्भरो जगदीश्वरः’ जो जगत् का धारण और पोषण करता है, इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वम्भर’ है। Sustainer and Preserver of All the World
105 विश्वेश्वरा ‘यो विश्वमीष्टे स विश्वेश्वरः’ – जो संसार का अधिष्ठाता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वेश्वर’ है। Universal Lord
106 बृहस्पति ‘शन्नः इन्द्रो बृहस्पति’- जो बड़ों से बड़ा और बड़े आकाश आदि ब्रह्मांडों का स्वामी है इससे उसे पर विश्व का नाम बृहस्पति है। Greatest among Great, Governs the entire universe
107 यज्ञ ‘यज्ञो वै विष्णुः’ – जो सब जगत् के पदार्थों को संयुक्त करता और सब विद्वानों का पूज्य है, और ब्रह्मा से लेके सब ऋषि मुनियों का पूज्य था, है और होगा, इससे उस परमात्मा का नाम ‘यज्ञ’ है, क्योंकि वह सर्वत्र व्यापक है। One who combines the different element together and evolves the world out of them
108 यम ‘य सर्वान् प्राणिनो नियच्छति स यमः’ – जो सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता और सब अन्यायों से पृथक् रहता है, इसलिए परमात्मा का नाम ‘यम’ है। One who governs all, administers justice to all, is the Personification of Justice

सारांश : भारत की महान वैदिक संस्कृति और वैदिक ज्ञान से अनभिज्ञ लोगों ने स्वार्थवश धर्म की उल्टी-सीधी परिभाषाएं प्रदान की। घटिया मानसिकता के साथ ब्राह्मणवाद ने जन्म लिया और जन्म से ही वर्ण बिना योग्यता के निर्धरित कर दिए। धूर्त गुरु ,कथावाचक और भी आगे निकले ,,उन्होंने स्वयं को ईश्वर दूत बताकर अपने नाम के साथ १०८ या १००८ लगना सुरु कर ,अपनी तस्वीरें पुजवानी सुरु कर दी। आज आप देखो ऋषिकेश , हरिद्वार आदि के मंदिरो में धर्मगुरु साधुओं की मुर्तिया पूज रही है ,उनको वस्त्र पहनाये जाते है ,उनकी आरती करते है और भोग लगते है ,ये कैसा धर्म है ?
‘ओम’ ईश्वर का नाम है और कार्यो के आधार पर ईश्वर को अनेको नाम से पुकारा जाता है। जैसा की ऊपर लिखा है इसीलिए यज्ञ में ईश्वर के अनेको कार्यो के नाम पर ईश्वर को न-न नाम से याद करके यज्ञ में आहुति देकर धन्यवाद दिया जाता है , लेकिन उस ब्रह्म को छोड़कर किसी भी देवी-देवता, गुरु-संत को ईश्वर या ईश्वरतुल्य मानना वेद विरुद्ध है।
भारतीय इतिहास लेखकों के विषय में यह बात बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा का बहुत कम और कभी-कभी तो कुछ भी ज्ञान नहीं होता, परंतु इसके उपरांत भी वह अपने आपको विद्वान घोषित कराने में कोई कसार नहीं छोड़ते। इसी कड़ी में कुछ चालू धर्म गुरु भी पीछे नहीं है,वे स्वयं को ईश्वर के ,108 नाम के साथ चिपककर अपनी पूजा करवाने हेतु अपने नाम के साथ श्री श्री 108 लगा लेते है। यह कुछ – कुछ वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति किसी रुग्ण व्यक्ति का डॉक्टर या चिकित्सक बनकर उपचार करने लगे।
आशा है आपको १०८ का वास्तविक भावार्थ समझ आ गया होगा।

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