देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -18 ख जोर-जोर से घंटा बजाने वाला वह व्यक्ति

बाद में वह उसी सीधे मार्ग से आगे बढ़े कई मुसलमान वहां पहले ही छिपे बैठे थे। वह उनका सब कुछ लूट ले गए। जैसे - तैसे वह सब जान बचाकर भागे, जोधपुर गांव बहुत बड़ा था। आसपास के कई गांवों के हिंदू वहां एकत्र थे। वहां मुस्लिम लोग भी बहुत थे। वह हिंदुओं के रक्त के प्यासे  बने बैठे थे। सभी हिंदुओं ने डटकर सामना किया। हमें वहां से पर्याप्त तलवारें आदि कुछ मिल गया था। सभी महिलाओं को वहां के गुरुद्वारे के अंदर बंद रखा गया। इधर हम लोग भारी मात्रा में मुस्लिमों का सफाया करते गए। हमने एक व्यक्ति को एक गुप्त स्थान पर छुपा रखा था। उससे कहा गया था कि यदि हिंदू लोग मारे जाएं तो जोर-जोर से घंटा बजाने लग जाना। इसे सुनते ही गुरुद्वारे में बैठी हिंदू महिलाएं एक दूसरे को मार डालेंगी। 
  शाम होने तक हमने बहुत सारे मुस्लिमों को मार डाला था। बस कुछ ही शेष बचे थे । उनको भी निपटाने में हमें कुछ देर नहीं लगने वाली थी। पर अचानक न जाने क्या हुआ,  उस व्यक्ति ने घंटा बजा दिया। गुरुद्वारे की सभी वीरांगनाओं में अपने रक्त से सब कुछ रंग डाला। एक भी जीवित नहीं रही। यह सब कुछ कैसे हुआ ? वह व्यक्ति कुछ भी बोल नहीं पाया। वह फटी आंखों से इधर उधर देखता, फिर दहाड़े मारने लगता। कुछ दिनों में ही वह चल बसा। हम अभी पाक में ही थे । दंगों ने विकराल रूप ग्रहण कर लिया था। अब बच पाना असंभव लग रहा था। हममें से कोई भी अकेला नहीं रहता था। कभी - कभी कोई व्यक्ति जल लेने किसी हैंड पंप आदि के पास जाता तो लौटता नहीं था। हर पेय-जल के स्थान के आसपास हत्यारे छिपे रहते थे।

गोरखा सैनिकों ने की सहायता

एक विशेष बात उस क्षेत्र में हिंदुओं की रक्षार्थ गोरखा सैनिक भेजे गए थे। पर वे संख्या में बहुत कम थे। मुसलमान सैनिक उन से इतना डरते थे कि वह पूरी टुकड़ी के आते ही भाग खड़े होते थे। हम भारतीय सैनिकों के कौशल को देख बड़े हैरान होते थे। वह पल मैं यहां और क्षण में वहां होते थे। दुष्कर से दुष्कर कार्यों को वह क्षणभर में पूरा कर डालते थे । ऊंची लंबी छलांग लगाना, हर प्रकार के वाहनों को सुगमता से उत्तम ढंग से चलाना उनकी मरम्मत आदि अस्त्र-शस्त्र धारी शत्रुओं को किसी भी शस्त्र के बिना मुक्के मारकर गिराना, उनकी अद्भुत वीरता को प्रकट करता था। उन्हें देखकर तो हमें वीर हनुमान जी की याद आती थी।

हमें जिस रेलगाड़ी से भारत पहुंचना था, उसका चालक एक मुस्लिम था। भारतीय सैनिक के बार बार कहने पर भी वह गाड़ी चलाने को तैयार नहीं हुआ। तब उस सैनिक ने उसे नीचे उतार कर उसकी खूब धुनाई कर दी। वही सैनिक उस ट्रेन को चलाकर हमें वहां से ले चला। हमारी गाड़ी पाक के एक बड़े स्टेशन पर रुकी।

सरदार पटेल ने दी समय पर सुरक्षा

वहां हिंदुओं से भरी दो रेलगाड़ियां पहले ही खड़ी थीं। हम सब की वहीं हत्या करने की योजना बनाई गई थी। यह सूचना भारत में सरदार पटेल तक पहुंच गई। उन्होंने भारत से पाक जाने वाली सभी रेल रुकवा दीं। साथ ही पाकिस्तान को संदेश भिजवाया कि मेरे एक भी हिंदू को थोड़ी सी भी हानी पहुंची तो यहां से एक भी मुस्लिम आपके वहां जीवित नहीं पहुंच पाएगा। यदि पटेल जी न होते तो हम कदापि भारत नहीं पहुंच पाते।
उस समय सरदार पटेल हम सब के लिए जीते जागते साक्षात भगवान। हो गए थे। उनकी मजबूती के किस्से सुनकर लोग किस प्रकार रोमांचित हो उठते थे ? – यह आज तक याद है। उनका साहसिक व्यक्तित्व हम सबके लिए सुरक्षा का एहसास कराता था। उनकी नीतियां गांधीजी और नेहरू जी की तरह ढुलमुल नहीं थीं ,बल्कि वह सपाट बात कहते थे और इस बात की कभी चिंता नहीं करते थे कि उनकी बात किसको अच्छी लगेगी और किसको नहीं?
यद्यपि सरदार पटेल सावरकर की कई नीतियों से सहमत थे पर इन दोनों ही नेताओं को लेकर पाकिस्तान से भारत आए लोगों में सम्मान का एक विशेष भाव बना रहा। इसका कारण केवल एक था कि वे हम सब लोगों के प्रति सहानुभूति और संवेदना का भाव रखते थे।

सखीर चंद जी के बारे में

अब हम हरियाणा के हांसी जिला हिसार में आ गए और वहीं बसे गए। तब श्री सखीर चंद जी कपूर वहां ही रहते थे। उन्होंने वहां पर आर्य कन्या विद्यालय सोलवा खुलवा दिया था। मेरी सब पुत्रियां उसी विद्यालय में पढ़ी हैं। वह भारत सरकार के उच्च पदों पर आसीन रहीं। बाद में सखीर चंद जी सपरिवार हिसार जा बसे।
आज जो लोग विभाजन के लिए सावरकर जी को दोषी मानते हैं या हिंदू सांप्रदायिकता को कोसते हुए मुस्लिमों का तुष्टीकरण कर उनके पापों पर पर्दा डालते हैं, वे लोग नहीं जानते कि उस समय हमारे ऊपर क्या बीती थी? हमने उस दु:ख दर्द, तकलीफ को निकट से देखा है, झेला है। सावरकर जी एक संवेदनशील व्यक्ति थे। जिनके भीतर राष्ट्रवाद कूट कूटकर भरा हुआ था। उनकी राष्ट्रभक्ति असंदिग्ध थी। उनके व्यक्तित्व में पूर्ण पारदर्शिता थी। उनके जैसा व्यक्तित्व ही हमें सरदार पटेल का दिखाई देता था। जिनके कारण हम जीवित अपने देश आ सके। यदि उस समय के नेतृत्व के भरोसे हम रह रहे होते तो निश्चय ही हमारा जीवन समाप्त हो गया होता।

कांग्रेस के नेताओं की कमजोरी

कांग्रेस के बड़े नेता उस समय जिन्नाह को ‘कायदे आजम’ कहकर पुकारते थे। उनके भीतर यह साहस नहीं था कि वे जिन्नाह को देशद्रोही कह सकें, या देश के बंटवारे का दोषी मान सकें। जो मुसलमान हिंदुस्तान में रह गए थे, कांग्रेस के नेतृत्व को उनकी वोट लेकर उन्हें अपना ‘वोट बैंक’ बनाने की चिंता थी। जो लोग उधर से इधर आ रहे थे उनकी तो वोटों की भी चिंता किसी कांग्रेसी विशेष रूप से गांधी जी और नेहरू जी को नहीं थी।
मुझे इस बात को कहने में बहुत ही गर्व की अनुभूति होती है कि उस समय सावरकर एक ऐसे नेता थे जो अक्सर कह दिया करते थे कि ‘जब तक मेरे देह में रक्त की एक बूंद भी शेष है, मैं अपने को हिंदू कहूंगा और हिंदुत्व के लिए सदा लड़ता रहूंगा।’
यदि इसी प्रकार की वीरता और हिंदुओं के प्रति आत्मीयता का प्रदर्शन कांग्रेस के बड़े नेता भी करते तो 1947 में देश के विभाजन के समय जितनी बड़ी मात्रा में हिंदुओं को जानमाल की क्षति उठानी पड़ी थी, वह बहुत कम रह सकती थी। क्योंकि मैंने स्वयं ने देखा था कि हिंदू वीरों के समक्ष मुसलमानों के क्रूर राक्षस दल के लोग किस प्रकार भाग जाया करते थे ? मैंने अनुभव किया था कि उनके सामने मात्र मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है। यदि उन्हें यह आभास हो गया कि आगे लोग मजबूती के साथ खड़े हैं तो उनका साहस नहीं हो सकता था कि वे उनसे कुछ कहें।

सावरकर जी के बारे में

इस प्रकार गांधीजी और नेहरु जी की उदारता या मुस्लिमपरस्ती मुस्लिम गुंडों को और भी अधिक ऊर्जा दे जाती थी। जिसका दंड उस समय विस्थापित हुए हिंदुओं को भरना पड़ता था। यदि ‘गांधी नेहरू कंपनी’ भी सावरकर जी और सरदार पटेल जी की भांति कठोर रही होती और केवल दोषियों को सजा देने की बात कहने का साहस कर पाती तो इतने से भी परिस्थितियां बहुत अनुकूल हो सकती थीं। पर ऐसा हुआ नहीं।
सावरकर जी मुस्लिम तुष्टिकरण के विरोधी थे। उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि तुष्टीकरण राष्ट्र के लिए घातक होता है। वह चाहते थे कि तुष्टीकरण किसी भी व्यक्ति या समुदाय का नहीं होना चाहिए। राष्ट्र धर्म के निर्वाह के प्रति सभी समान रूप से कर्तव्यवाद पर चलने वाले हों और राष्ट्रवाद के समक्ष संप्रदायवाद पूर्णतया गौण होना चाहिए। उन्होंने मुस्लिमों के पीछे भागती कांग्रेस को भी लताड़ते हुए एक बार कहा था कि हमें हिंदू मुस्लिम एकता के लिए मुसलमानों के पीछे नहीं भागना चाहिए। बल्कि आओगे तो तुम्हारा स्वागत है, नहीं आओगे तो तुम्हारे बिना स्वराज तो हम लेंगे ही। यदि विरोध करोगे तो तुम्हारे विरुद्ध डटकर सामना किया जाएगा, किसी भी स्थिति में हिंदू राष्ट्र तो अपना भविष्य निर्माण करेगा ही।’
सावरकर जी के ‘हिंदू राष्ट्र’ का अभिप्राय उस सर्व समन्वयी दृष्टिकोण अपनाने वाले सनातन की मान्यताओं से था जो सबका साथ सबका विकास करने में विश्वास रखती हैं। जबकि गांधी नेहरू का राष्ट्रवाद हिंदुओं के हितों को मुस्लिमों के हितों पर उपेक्षित करना था। इसके विपरीत मुस्लिम लीग या जिन्नाह राष्ट्रवाद हिंदुओं का जन्म और मुस्लिमों का पक्ष पोषण करना था।

प्रेषक – धर्मदेव टुटेजा
राजा पार्क शकूर बस्ती दिल्ली

डॉ राकेश कुमार आर्य

( यह लेख मेरी नवीन पुस्तक “देश का विभाजन और सावरकर” से लिया गया है। मेरी यह पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स दिल्ली से प्रकाशित हुई है जिसका मूल्य ₹200 और पृष्ठ संख्या 152 है।)

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