भारत के 50 ऋषि वैज्ञानिक अध्याय – 41 विश्व के पहले पशु चिकित्सक शालिहोत्र

मानव चिकित्सा के लिए आयुर्वेद की खोज करके जहां भारत के ऋषियों ने महान कार्य किया, वहीं पशु चिकित्सा के क्षेत्र में भी सर्वप्रथम भारत ने ही पहल की थी। इस क्षेत्र में संपूर्ण संसार के चिकित्सा विज्ञानी आज तक भी पूर्णता का दावा नहीं कर पाए हैं। उनका कहना होता है कि मनुष्य से तो उसकी बीमारी पूछ कर मालूम की जा सकती है ,परंतु पशु से कैसे पूछा जाए कि उसे बीमारी क्या है ? इसका अभिप्राय हुआ कि नाड़ी विज्ञान से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान बहुत दूर है। जिसमें बिना पूछे ही मनुष्य और पशु की बीमारी की जानकारी ली जा सकती थी।
भारत के एक महान पशु चिकित्सक शालिहोत्र नाम के ऋषि हुए हैं। इनका जन्म 800 ईसा पूर्व माना जाता है। उन्होंने पशु चिकित्सक के रूप में अपने समय में विशेष ख्याति अर्जित की थी। घोड़े और उनके अनेक प्रकार के रोगों के विषय में उनकी जानकारी बहुत ही विलक्षण थी। हम सबके लिए यह गर्व और गौरव का विषय है कि पशु चिकित्सा के क्षेत्र में और विशेष रूप से घोड़ों की चिकित्सा के क्षेत्र में उनके ग्रंथ को संसार के पशु चिकित्सक आज भी उल्लिखित करते हैं। जब हम अपने ऋषियों के ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विशेष कार्य के बारे में जानते समझते हैं तो हमें यह जानना भी आवश्यक होता है कि उन्होंने आजकल की एकेडमिक डिग्री लेने के बजाय साधना में ऊंचाई प्राप्त करने को प्राथमिकता दी थी। उनकी साधना का उद्देश्य पूर्णत्व की प्राप्ति होता था ।

पूर्णता की साधना से पूर्णता को प्राप्त हों,
पूर्णत्व में समाविष्ट हो पूर्णत्व से तृप्त हों।
हमारे पूर्वजों का ध्येय था पूर्णता को नापना,
पूर्णता में जीवन खपा पूर्णता से अनुरक्त हों।।

हमारे महान ऋषियों ने पशु जगत को मानव समाज के लिए उपयोगी मानकर उन्हें स्वस्थ रखना भी आवश्यक माना था। उन्होंने इस बात को गहराई से समझा था कि जब घोड़े, गाय, बैल, हाथी, ऊंट आदि मनुष्य के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संसार की गति को आगे बढ़ाते हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि उनकी चिकित्सा का भी पूर्ण ध्यान रखा जाए । यज्ञ की पवित्र भावना भी यही होती है कि एक हाथ दूसरे हाथ को धोता रहे अर्थात मनुष्य सृष्टि के शेष प्राणियों के साथ समन्वय बनाकर चलता रहे। यज्ञ की पवित्र भावना को हृदयंगम करके चलने के कारण ही हमारे पूर्वज पशुओं के प्रति विशेष प्रेम रखते थे और वृद्धावस्था में गाय, बैल, हाथी आदि की सेवा करने को भी अपना धर्म मानते थे।

सेवा में धर्म खोजते, थे धर्म को ही पूजते,
पूर्वज हमारे स्वयं से , सदा बस ये पूछते।
धर्म का है मर्म क्या ?- और कहां मिलता यह?
धर्म के ही हित विचरते, धर्म पर ही सोचते।।

अपने पवित्र धर्म के निर्वाह को प्राथमिकता देते हुए ही ऋषि शालिहोत्र ने पशु चिकित्सा को अपने चिंतन का केंद्र बनाया।
शालिहोत्र के बारे में बताया जाता है कि वह एक ब्राह्मण मुनि हयघोष के पुत्र थे और श्रावस्ती में निवास करते थे। उन्होंने अपने जीवन को तपाया और भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों की सेवा करते हुए उन्हें विस्तार देने का सराहनीय प्रयास किया।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि जिस समय शालिहोत्र नाम के हमारे इस महान ऋषि ने जन्म लिया था उस समय संपूर्ण संसार में आवागमन के लिए मनुष्य के पास सबसे अच्छा साधन घोड़ा ही होता था। इसके अतिरिक्त घोड़े के माध्यम से ही लोग युद्ध भी किया करते थे। ऐसी परिस्थितियों में घोड़ा मनुष्य के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। ऐसे में यह बात सहज ही समझ में आ सकती है कि उस समय घोड़ों की मनुष्य समाज के लिए कितनी आवश्यकता थी ? और यदि उनके रोगों को समाप्त करने के क्षेत्र में किसी महान ऋषि ने बड़ा कार्य किया हो तो लोगों ने उसे कितना अधिक सम्मान दिया होगा? कहना नहीं होगा कि घोड़ों के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले महान ऋषि शालिहोत्र का समकालीन संसार में दूर-दूर तक नाम था। घोड़ों को स्वस्थ रखने के सूत्रों को महर्षि शालिहोत्र ने अपनी पुस्तक ‘हय आयुर्वेद’ में संकलित किया है।

शालिहोत्र पवित्र नाम था और सुंदर काम था,
जीवन भी सुंदर श्रेष्ठ था निवास पवित्र धाम था।
फैल गया संसार में उनके यश पवित्र काम का,
धन्य हुई मां भारती , करती गर्व ऐसे नाम का।।

उनके इस ग्रंथ को 'तुरंगम शास्त्र' या 'शालिहोत्र संहिता' के नाम से भी जाना जाता है। इस ग्रंथ में 1200 श्लोक बताए जाते हैं। जिनमें घोड़ों की जाति प्रजातियां, नस्ल और उनकी आयु का भी बड़ा सटीक वर्णन किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि घोड़े को स्वस्थ बनाए रखकर किस प्रकार उसे चिरंजीवी किया जा सकता है ? बेलगाम घोड़े को साधने के सूत्रों को भी  इसमें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसके अतिरिक्त जब घोड़ा खरीदा जाए तो उस समय कौन कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए और किन किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ? यह सब भी इसमें स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार चिकित्सा जगत में शालिहोत्र का यह ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण है और अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस महान ऋषि ने अपने समय में विशेष ख्याति अर्जित कर मानवता की अनुपम सेवा की।

उनके ग्रंथ का फारसी, अरबी और अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। इससे पता चलता है कि उनका यह ग्रंथ पशु चिकित्सा क्षेत्र में आज भी कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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