हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि प्रदूषण व पर्यावरण के बारे में बहुत सतर्क, सजग व सावधान थे : डॉ व्यास नंदन शास्त्री

पटना। ( विशेष संवाददाता) विगत 25 मई को रामेश्वर महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना की ओर से लाइफ मिशन  कार्यक्रम के तहत  "पर्यावरण- संरक्षण "विषय पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंगलाचरण से हुई। कार्यक्रम में प्राचार्य प्रो. अभय कुमार सिंह ने कहा कि पर्यावरण की पवित्रता और सुरक्षा जीवन में सबके लिए अनिवार्य है ।इसके लिए समय-समय पर सब को जागरूक रहने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के पूर्व कार्यक्रम पदाधिकारी प्रो. डॉ. व्यास नंदन शास्त्री ने कहा कि पर्यावरण का आधार वेद हैं और वेदों में पर्यावरण से संबंधित कई मंत्र आए हैं ,जिनमें वृक्षों और वनस्पतियों को मित्र माना गया है और उसकी रक्षा करना अनिवार्य है। हम अपने घरों के चारों ओर या अगल-बगल वृक्षों को लगाना चाहिए ।औषधियों, वनस्पतियों, आदि पौधों को लगाने से और उसके संरक्षण से हमारे पर्यावरण हमेशा शुद्ध रहेंगे और हमारे जीवन की रक्षा होगी।


सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान डॉक्टर व्यास नंदन शास्त्री ने अपने वैदिक चिंतन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि मनुष्य जहां रहता है वहां उसके शौच, रसोई या भोजन, वस्त्रों को धोने व अन्य कार्यों से जल व वायु में प्रदूषण उत्पन्न होता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि प्रदूषण व पर्यावरण के बारे में बहुत सतर्क, सजग व सावधान थे। उन्होंने मानव जीवन पद्धति को कम से कम आवश्यकताओं वाली बनाया। वह जानते थे कि जितनी सुख की सामग्री प्रयोग में लायी जायेगी, उतना ही अधिक प्रदूषण होगा और उससे मनुष्य का जीवन, स्वास्थ्य व सुख-शान्ति प्रभावित होंगे।
डॉ शास्त्री ने कहा कि इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि हमारी इन्द्रियों की शक्ति सीमित होती है। इसे जितना कम से कम प्रयोग करेंगे व खर्च करेंगे, उतना अधिक यह चलेगीं या काम करेगी। जो व्यक्ति अधिक सुख-साधनों का प्रयोग करता है उसकी इन्द्रिया व शरीर के अन्य उपकरण, हृदय, पाचन-तन्त्र यकृत-प्लीहा-लीवर-किडनी आदि प्रभावित होकर विकारों आदि से ग्रसित होकर रूग्ण हो जाते हैं। होना तो यह चाहिये कि हम तप, पुरूषार्थ, श्रम, योगासन, हितकर षाकाहारी भक्ष्य श्रेणी का भोजन, अभक्ष्य पदार्थों का सर्वथा व पूर्णतया त्याग, स्वाध्याय, ध्यान व चिन्तन पर अधिक ध्यान दें जिससे हमारा शरीर स्वस्थ व सुखी रहे। वायु व जल प्रदूषण को रोकने के लिए हमारे पूर्वजों ऋषियों ने एक ऐसी अनोखी नित्यकर्म विधि बनाई जो सारी दुनिया में अपनी मिसाल स्वयं ही है। इसके लिए उन्होंने वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ गोघृत, स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियों, ओषधियों, सुगन्धित व पुष्टिकारक पदार्थो से दैनिक अग्निहोत्र का विधान किया।
शारदा नंद सहनी ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे मानव समुदाय को आगे आना होगा और इसके लिए राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक सदैव बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे।
कार्यक्रम में दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो.रजनी रंजन ने कहा कि पर्यावरण की समस्या से निबटने के लिए जनसंख्या वृद्धि को रोकना होगा और स्वच्छता व वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान देना होगा।
अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. उपेंद्र गामी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सब को जागरूक रहना चाहिए। कार्यक्रम में डॉ शारदानंद साहनी, डॉ.सुमित्रा कुमारी, डॉ. चौधरी साकेत कुमार, डॉ .वसीम रजा, डॉ रणवीर कुमार, डॉ. महेश्वर प्रसाद सिंह, डॉ अभिनय कुमार, डॉ राम दुलार सहनी , डॉ चिन्मय प्रकाश, डॉक्टर मीरा कुमारी, डॉ स्मृति चौधरी, डॉ. राजबली राज सहित सभी स्वयंसेवक उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन विनीत कुमार सिंह ने किया।

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