संघ का गुर्गा कुमार विश्वास संघ के खिलाफ भोका क्यों ?* *हिन्दू एक्टिविस्ट कुमार विश्वासों का विरोध करने से इसलिए डरते हैं*

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आचार्य श्री विष्णुगुप्त

               कुमार विश्वास ने आरएसएस के लोगों को अनपढ़ कहा है, बेवकूफ कहा है वह भी अप्रत्यक्ष तौर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष तौर पर। आखिर कुमार विश्वास जैसे चव्वनी छाप कवि और नेता संघ जैसे विशाल और शक्ति शाली संगठन पर इस तरह से खिल्ली उड़ाने की करतूत को अंजाम देने की हिम्मत कैसे कर देते हैं।

इस पर विचार करने से पूर्व कुछ अन्य नेताओं के भाजपा और संघ के बारे में हिंसक और खतरनाक बातों को याद कराना चाहता हूं फिर कुमार विश्वास की करतूत पर चर्चा करूंगा।
….. मोहन भागवत हिंसक, सांप्रदायिक है, इसे टायलेट घर में कैद करो — जगदम्बिका पाल तब कांग्रेस का सांसद और अब भाजपा का सांसद।
…… मुसलमानों के खिलाफ बोलने वालों को मैं मुंह नोच दूंगा, भरी संसद में भाजपा के सांसद अहलूवालिया की गर्दन पकड़ी, कैश फाॅर वोट कांड का अभियुक्त अमर सिंह जो बाद में योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के भी आईकाॅन बन गये और एक राष्टवादी संगठन ने उसका घर दान में ले लिया। अमर सिंह नहीं मरता तो फिर राष्टवादियों के लिए वह भी आईकाॅन बन जाता, वह भी सत्ता के लिए हिन्दूवादी बन जाता।
….. नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक है, मैं उसको लात मार कर मुख्यमंत्री पद से हटा दूंगी– स्मृति ईरानी
स्मृति ईरानी आज क्या है, कहने की जरूरत नहीं है।
जहां तक कुमार विश्वास की संघ को अनपढ़ कहने की बात है तो देश भर में इसकी दो तरह की चर्चा हुई यानी कि पक्ष और विपक्ष में तर्क आये हैं। हर बात के दो पहलू होते हैं। एक पक्ष कहता है कि कुमार विश्वास सही बोल रहे हैं और संघ के लोग अनपढ़ ही होते हैं तथा पेट पालने वाले होते हैं, इतना ही नहीं बल्कि इनका हिन्दुत्व से कोई ज्यादा लेना-देना नहीं है। ये सिर्फ भोजन, बैठक और विश्राम के क्रांतिकारी हैं। दंगे करने वाले और मुसलमानों से लड़ने वाले तो स्वतंत्र हिन्दू एक्टिविस्ट होते हैं। आज के संघ के प्रचारकों और स्वयं सेवकों का काम सिर्फ राष्टभक्ति गीत गाकर देश और हिन्दुत्व की रक्षा करने का भ्रम फैलना रह गया है।
मेरा अपना मत है कि संघ अनपढ एकदम नहीं है, संघ के प्रचारक अनपढ कतई नहीं होते हैं। जिस संघ में सैकड़ों प्रचारक डाॅक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक हैं उस संघ को अनपढ कहना सिर्फ और सिर्फ बेवकूफी, मूर्खता और घृणात्मक प्रबृति है जिसके शिकार कुमार विश्वास हैं। संघ के संस्थापक हेडगवार खुद डाॅक्टर थे और समाजिक वैज्ञानिक भी थे जिन्होंने आजादी के अंादोलन के दौरान महीनों जेल में रहकर अपनेे जीवन के अनमोल पलों का बलिदान किया था। कुमार विश्वास ने संघ के वरिष्ठ प्रचारक और संविधान विशेषज्ञ लक्ष्मीनारायण भाला की संविधान पर लिखी हुई पुस्तक पढ़ी होती, उनकी शिक्षा और राजनीति पर लिखी हुई अनेक पुस्तकें पढी होती तो फिर ऐसी धारणा बनाने से वे जरूर बचता। संघ की तपस्या का ही प्रतिफल है कि भाजपा केन्द्रीय सत्ता तक पहुंचती है और राज करती है। संघ के पास दिमाग की कमी होती या फिर संघ के पास विजन नहीं होता तो फिर संघ के स्वयं सेवक संकट काल और विपदा के समय मानवीय जिम्मेदारियों का निर्वह्न कर सकते हैं? यह कौन नहीं जानता है कि संकट काल और विपदा के समय संघ के स्वयं सेवक जीवन रक्षा की जिम्मेदारी निभाने में अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ भी होते हैं।
कुमार विश्वास के इस विकृति का विरोध बड़े पैमाने पर क्यों नहीं हुआ। हमारे जैसे विचारक और हिन्दुत्व के रक्षक भी सतही विरोध दर्ज करा कर अपने कर्तव्य का अतिश्री क्यों मान बैठा? इसके पीछे पूर्व की घटनाओं का एक बड़ी फेहरिस्त है। आपको कमलेश तिवारी के हस्र को मालूम करना चाहिए। आजम खान से कमलेश तिवारी की कोई निजी दुश्मनी तो थी नहीं। आजम खान ने संघ के खिलाफ विभत्स और अपमानजनक टिप्पणियां की थी, विरोध करने के लिए संघ खुद आगे नहीं आया। कमलेश तिवारी आगे आते हैं और कुछ वैसी ही टिप्पणियां कर देते हैं। दुष्परिणाम क्या हुआ? दो साल तक कमलेश तिवारी को अखिलेश यादव की सरकार जेलों में सड़ा दी। जेल से कमलेश तिवारी बाहर जरूर आये पर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उनकी सुरक्षा घटा दी। लाठीघारी दो पुलिस सुरक्षा में रह जाते हैं। आत्मघाती मुस्लिम दस्ते ने कमलेश तिवारी की हत्या कर देते हैं। कहीं कोई मुआबजा नहीं, कहीं कोई सहायता नहीं। साजिश में लगे मुस्लिम संगठनों और मस्जिदों के इमामों को छुआ तक नहीं गया।
हमनें एक विचारक के तौर पर जब-जब किसी विधर्मी और विधमी समर्थक नेता ने संघ और भाजपा के खिलाफ घृणा फैलायी तब-तब अपनी जोरदार लेखनी से जवाब दिया और उसकी करतूत को पर्दाफास किया था। जब स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के कहने पर नरेन्द्र मोदी को संहारक कही थी और जूते मार कर मुख्यमंत्री के पद से मोदी को हटाने की बात बोली थी तब मैंने स्मृति ईरानी के खिलाफ कई लेख लिखे थे और कहा था कि एक सी ग्रेट की हिराईन की यह चिंतन किसी अन्य विचारधारा की है। जब जगदम्बिका पाल ने मोहन भागवत को सांप्रदायिक कहा था और उन्हें सिवर टैंकों में डालने की बात कही थी तब भी मेरी लेखनी चली थी। अमर सिंह जब कैश फाॅर वोट कांड में भाजपा सांसदां को खरीदने का काम किया था तब भी मेरी लेखनी चली थी। अमर सिंह जब भरी संसद में भाजपा सांसद अहलूवालिया की गर्दन पकड़ी थी तब भी मेरी कलम चली थी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
पर हमारे जैसे अनेका नेक संघ के समर्थक और विचारक जब देखते हैं कि ऐसे लोग तो संघ और भाजपा में राज करते हैं और आईकाॅन बन जाते हैं तो फिर विरोध की भाषा मंद पड़ जाती है। फिर कमलेश तिवारी के हस्र का ख्याल सामने आ जाता है। आज चुप रहने वाले और कुमार विश्वासों का साथ देने वाले लोग नरेन्द्र मोदी सरकार में मौज काट रहे हैं और विधर्मी से रातोरात संघ व भाजपा के आईकाॅन बन गये। सोशल मीडिया पर टेड चला कि कुमार विश्वास को विरोध मत करो, नही ंतो नुकसान में पडोगे, स्मृति ईरानी की तरह एक न एक दिन कुमार विश्वास भी राज्यसभा में पहुंच सकता है, संघ-भाजपा की राजनीति के केन्द्र के रूप उभर सकता है। फिर आ बैल मार की कहावत का शिकार क्यों बनना चाहिए?
ईमानदारी से कंहू तो गुर्गा भी संघ का और भोका भी संघ के खिलाफ। कुमार विश्वास एक रामकथा के लिए कमसे कम पच्चीस लाख रूपये लेता है। क्या पच्चीस लाख रूपये विधर्मी देते हैं, कम्युनिस्ट देते हैं? इतनी बड़ी रकम देकर कुमार विश्वास का रामकथा करवाने वाले व्यापारी तो संघ और भाजपा के लोग ही होते हैं। राम को काल्पनिक पात्र कहने वाले और श्रीकृष्ण को शराबी कहने वाले मुरारी को संघ और भाजपा के लोगों ने ही आइ्रॅकाॅन बनाया था। कुमार विश्वास जिस मंच से संघ और भाजपा के खिलाफ भोका उस मंच पर भाजपा सरकार के मंत्री और सांसद भी विराजमान थे। मंत्री और सांसद कुमार विश्वास के इस करतूत का भरपूर मनोरंजन उठा रहे थे। भाजपा के मंत्रियों और सांसदों का हिन्दुत्व के प्रति कैसा समर्पण है इसका यह उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है। भाजपा तो गंदगी के प्रतीक हो सकती है पर संघ अपना आकर्षण क्यों खोये?

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आचार्य श्री विष्णुगुप्त
नई दिल्ली

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