ओवैसी के इरादे और मोदी सरकार

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन एक ऐसा राजनीतिक दल है, जिसका भारत और भारतीयता से दूर-दूर का भी संबंध नहीं है। अंग्रेजों के शासन काल में 1927 ईस्वी में इस राजनीतिक दल की स्थापना हुई थी। इसके नाम से ही यह स्पष्ट है कि यह केवल और केवल मुसलमानों के हितों की बात करता है। इसके उपरांत भी देश को संविधान के अनुसार चलाने की बातें इसके नेता असदुद्दीन ओवैसी अक्सर कहते रहे हैं। कहने का अभिप्राय है कि बात संविधान के अनुसार चलने की करेंगे और आचरण संविधान विरोधी करेंगे । ऐसी दोरंगी बातें यदि किसी से सीखनी हों तो वह एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी के उनके पूर्ववर्ती नेताओं से सीखी जा सकती हैं। 1984 में इस संगठन ने पहली बार लोकसभा में एक सीट जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। 2014 से इस राजनीतिक दल को राज्य स्तरीय दल की मान्यता मिल गई है। कभी मुस्लिम लीग की भी ऐसी ही स्थिति में हुआ करती थी, जिसे देश के विधानमंडलों में जाने का तो अवसर नहीं मिलता था, पर वह अलगाववादी मुसलमानों के दिलों पर राज करती थी।
अपनी स्थापना के वर्ष से लेकर 1948 तक यह संगठन हैदराबाद को एक अलग मुस्लिम राज्य बनाए रखने की मांग करता रहा था । उसी के लिए इसने अनेक प्रकार के आंदोलन किए। इस प्रकार भारत और भारतीयता से विरोध करना इस संगठन की छठी में पूजा गया था। आज धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण की नीति के चलते टी0वी0 चैनलों पर भी इस संगठन के नेता असदुद्दीन ओवैसी और उनके पार्टी प्रवक्ता तक से इनका पुराना इतिहास और भारत विरोधी सोच के बारे में कोई प्रश्न नहीं किया जाता।
सैयद कासिम रिजवी ने इस संगठन के लोगों को हथियारबंद हिंसक सैनिकों के रूप में खड़ा किया था और उन्हें रजाकार का नाम दिया था। ये लोग कासिम रिजवी के नेतृत्व में रजाकार के नाम से उस समय देश को तोड़ने के लिए काम करते रहे थे। आज जब असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी के लोग देश तोड़ने वाले कासिम रिजवी और उसके रजाकारों की जयंती या पुण्यतिथियों के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करते होंगे तो निश्चित रूप से यही कहते होंगे कि हम आपके सपनों का मुल्क लेकर रहेंगे। कहने का अभिप्राय है कि जिस काम को 1947 में कासिम रिजवी और उसके रजाकार साथी पूरा नहीं कर पाए उसके बारे में उनके उत्तराधिकारियों का विचार है कि उसे 2047 में पूरा कर लिया जाएगा।
1947- 48 में इस पार्टी के कार्य व्यवहार या गतिविधियों या भारत विरोधी आचरण को देखकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय सरदार पटेल देश के गृहमंत्री थे, जो हर देश विरोधी के साथ कड़ाई से निपटना जानते थे। भाग्यवती सरदार पटेल 15 दिसंबर 1950 को हमसे सदा सदा के लिए दूर हो गए अर्थात उनका देहांत हो गया । तब उसके पश्चात तुष्टीकरण और धर्मनिरपेक्षता की नीति में विश्वास रखने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1957 में इसकी मान्यता को फिर से स्थापित कर दिया। स्वाभाविक है कि 10 वर्ष के इस छोटे से कालखंड में वही लोग इसके नेता रहे होंगे जो 1947 में देश के बंटवारे के समय इस पार्टी के नेता थे, अर्थात नई बोतल में पुरानी शराब डालकर इसकी मान्यता बहाल कर दी गई। मूल रूप में इस संगठन के नाम में ऑल इंडिया शब्द नहीं लगे हुए थे। ये दोनों शब्द 1957 में इसके नवीनीकरण के समय लगाए गए। नेहरू इस बात से संतुष्ट हो गए कि अब देश में ना तो कोई मुस्लिम लीग खड़ी होगी और ना ही कोई एआईएमआईएम देश को तोड़ने का काम करेगी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1957 में जब नेहरू जी ने इस संगठन का नवीनीकरण किया तो इसने मुस्लिम लीग के पदचिन्हों पर चलते हुए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस संगठन ने पूरे देश के मुसलमानों की एकता का ठेका ले लिया । धीरे धीरे इसने अपना विस्तार करना आरंभ किया और आज हम देख रहे हैं कि इसको देशभर में होने वाले विभिन्न चुनावों के समय कोई सीट मिले या ना मिले पर इसे मुसलमानों का सपोर्ट अवश्य मिलता है। देश के बंटवारे के समय कासिम रिजवी भारत छोड़कर पाकिस्तान चला गया था, पर इस संगठन की बागडोर वह वकील अब्दुल वहाद ओवैसी को सौंप गया था। देश छोड़ने से पहले कासिम रिजवी ने यह भांप लिया था कि उसका उत्तराधिकारी अर्थात वैचारिक मानस पुत्र कौन हो सकता है?
भारत के कई अन्य राजनीतिक दलों की भांति इस संगठन पर भी एक परिवार का एकाधिकार स्थापित हो गया। भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने वाले परिवारवादी जितने भी राजनीतिक दल हैं उनमें से एक परिवारवादी संगठन एआईएमआईएम है। जिस पर ओवैसी परिवार का एकाधिकार है।
यहां पर यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि वकील अब्दुल वाहिद के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी ने इस संगठन का नेतृत्व किया और उनके बाद उनके पुत्र असदुद्दीन ओवैसी इसके अध्यक्ष बने हुए हैं। अपनी मौलिक विचारधारा से समझौता न करने की शर्त पर आगे बढ़ता जा रहा यह संगठन भारत के सभी राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय है , क्योंकि जहां इसे भाजपा से पूर्व की गैर भाजपा सरकारों के शासनकाल में ऊर्जा और खुराक मिलती रही थी वहीं अब भाजपा के शासनकाल में भी असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी के नेताओं की जुबान आग उगलती रहती है ।
भाजपा विरोधियों का मानना है कि ओवैसी बंधुओं को इस प्रकार आग उगलने के लिए भाजपा का पीछे से समर्थन प्राप्त है। क्योंकि इस प्रकार आग उगलने से हिंदू मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण होगा। जिसका लाभ भाजपा को चुनावों में मिलेगा। यदि भाजपा इस प्रकार के अघोषित गठबन्धन को बढ़ावा दे रही है तो ये ओवैसी बन्धु उसी प्रकार नए जिन्ना के अवतार के रूप में प्रकट हो सकते हैं जिस प्रकार कभी गांधीजी और उनकी कांग्रेस पार्टी के सहयोग व समर्थन देने से जिन्ना एंड कंपनी देश का बंटवारा करने में सफल हो गई थी।
आज भाजपा या हम सब लोग इस भ्रान्तिपूर्ण मान्यता के शिकार हो सकते हैं कि हैदराबाद के नवाब का देश विरोधी आचरण और रजाकारों का वह आंदोलन या कासिम रिजवी और उसके बाद के मजलिस के नेताओं का देश विरोधी आचरण इतिहास के कूड़ेदान की वस्तु बन चुका है, पर जब कल ओवैसी या ओवैसी के उत्तराधिकारी अपने मिशन में सफल होंगे तो वह सारा इतिहास जीवंत हो उठेगा और फिर नया इतिहास वैसे ही लिखा जाएगा जैसे पाकिस्तान ने अपना इतिहास लिखा है। जिसमें पाकिस्तान के इतिहासकारों ने हिंदुओं के तथाकथित अत्याचारों का वर्णन किया है। उसमें दिखाया जाएगा कि हमारा आंदोलन कितना पुराना था और हमने कितने बलिदान देकर अपने मिशन में सफलता प्राप्त की है ? इतिहास की सच्चाई को समझकर बढ़ती हुई देश विरोधी ताकतों का हमें समय रहते सामना करना चाहिए और उन्हें कुचल देना चाहिए।
सभी राष्ट्रवादी लोग इस बात की प्रतीक्षा में हैं कि मोदी और अमित शाह कब ओवैसी बंधुओं की आग उगलने की प्रवृति पर रोक लगाएंगे ? हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि पर्दे पीछे के गठबंधन कितनी ही बार गलत परिणाम दे जाते हैं । कहने का अभिप्राय है कि इस समय गांधी और नेहरू की किसी गलती को दोहराने की आवश्यकता नहीं है। पर्दे के पीछे से किसी को नया जिन्नाह बनाने की भी आवश्यकता नहीं है। जो कुछ भी किया जाना है उसे खुलकर और देश के सामने किया जाए। क्योंकि उन अदृश्य गठबंधनों की जानकारी लोगों को नहीं होती और वे मंच पर अभिनय कर रहे लोगों को वास्तविक हीरो मान लेते हैं । हमें यह तथ्य भूलना नहीं चाहिए कि 1947 में देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार रहे जिन्नाह के भीतर राष्ट्रीय नेता बनने के गुण नहीं थे, पर उन्हें तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व की गलतियों के चलते नेता बना दिया गया था। आज यदि हमने यही स्थिति ओवैसी के लिए स्वीकार कर ली है तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। देश के लोगों को मोदी जी से बहुत बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं हैं उनमें से एक असदुद्दीन ओवैसी और उनके अनुज अकबरुद्दीन ओवैसी के प्रति कठोरता अपनाए जाने की भी एक अपेक्षा है।
असदुद्दीन ओवैसी के इस बयान पर सरकार को गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए कि भारत में भी श्रीलंका जैसी परिस्थितियां बन सकती हैं, जिनमें लोग एक दिन प्रधानमंत्री आवास में घुसकर बैठ जाएंगे। प्रधानमंत्री आवास में घुसकर बैठने वाले लोग कौन होंगे और क्यों जाकर बैठेंगे ? यह बात भी अब ओवेसी से पूछनी चाहिए। उन्होंने बातों-बातों में संकेत किस ओर किया है और क्यों किया है ? उनके इरादे क्या हैं और वह चाहते क्या हैं ? इस पर अब सरकार और कानून को सोचना समझना चाहिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment: