अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार को समर्थन क्यों?

सुरेश हिन्दुस्थानी
अभी देश में दो दृश्य एक साथ दिखाई दे रहे हैं। दोनों ही दृश्यों में परदे के पीछे राजनीतिक उद्देश्य दिखाई दे रहा है। कुछ पाने की लालसा में उठाए गए इन राजनीतिक कदमों के चलते देश में एक विशेष प्रकार का भ्रम पैदा करने का सुनियोजित प्रयास किया गया। इन दृश्यों के मूल में केवल भाजपा और मोदी सरकार का विरोध ही केन्द्र में दिखाई देता है। इससे कहा जा सकता है कि आज देश की पूरी राजनीति केवल मोदी केन्द्रित हो गई है, चाहे वह समर्थन में हो या फिर विरोध में ही क्यों न हो। यहां सवाल यह आता है कि विरोध का तरीका लोकतांत्रिक हो तो किसी बात का संशय नहीं है, लेकिन यह विरोध संवैधानिक मर्यादाओं की चीरहरण करने वाला हो तो जनता के मन में निश्चित ही संदेह उत्पन्न होगा ही। अभी कांगे्रस की ओर से दिल्ली में सत्याग्रह के नाम पर एक परिवार को बचाने की राजनीति की जा रही है, जिसमें कांगे्रस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपने काम छोड़कर यह साबित करने की होड़ में लगे हैं कि गांधी परिवार का सबसे बड़े हितैषी वही हैं। यहां आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया, जबकि इस मामले में प्रथम दृष्टया सत्य जैसा कोई आग्रह ही नजर नहीं आता, क्योंकि किसी भी प्रकरण की जांच होना एक संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है और उसमें राजनीतिक दबाव बनाने की योजना से कार्य किया जाना निश्चित ही उस जांच प्रक्रिया को बाधित करने जैसा ही कदम माना जाएगा। यहां बड़ी बात यह है कि गांधी परिवार से पूछताछ से पूर्व भी कांगे्रस के कई नेताओं और नेशनल हेराल्ड मामले से जुड़े अन्य लोगों से भी पूछताछ की गई, लेकिन तब कांगे्रस की ओर से किसी भी प्रकार से कोई विरोध नहीं किया और न ही सत्याग्रह जैसी कोई कवायद ही की गई, लेकिन जब गांधी परिवार को समन भेजा गया तो पूरी कांगे्रस नेशनल हेराल्ड घोटाले के समर्थन में खड़ी होती दिखाई दी। कांगे्रस के नेता अगर अपने नेताओं को दोषी नहीं मानते हैं, तब यह बात जांच में भी सामने आ सकती है। इसलिए कांगे्रस को नेताओं को कम से कम जांच के बाद परिणाम आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन कांगे्रस की ओर से संवैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। जिसके चलते यही लग रहा है कि कहीं न कहीं इस मामले में गड़बड़ जरूर है।
कांगे्रस की यह फितरत रही है कि जब भी कांगे्रस का कोई बड़ा नेता आर्थिक गड़बड़ी में फंसता हुआ दिखाई देता है, तब वह अपनी ओर से रटारटाया बयान देते हैं कि मोदी सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है। ऐसी बातें मोदी सरकार की नहीं, बल्कि कांगे्रस की बदले की भावना के चरित्र को ही उजागर करती हैं। जब से देश में कांगे्रस का राजनीतिक अवसान हुआ है, उसके बाद से ही ने तो कांगे्रस नेताओं के व्यवहार में कोई परिवर्तन आया है और न ही वह मानसिक रूप से यह मानने को तैयार हैं कि उनकी राजनीतिक ताकत कम हो चुकी है। कांगे्रस के नेता आज भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जैसे वह सत्ता में हैं। यहां एक बात और कांगे्रस को समझनी चाहिए कि कांगे्रस को सत्ताच्युत करने में भाजपा की भूमिका कम और देश की जनता की भूमिका अधिक है, क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में जनता जिसको चुनती है, उसी की सरकार बनती है। इसलिए कांगे्रस को कम से कम लोकतांत्रिक जनादेश का सम्मान करना चाहिए। आज कांगे्रस की मनोदशा ऐसी हो गई है कि उसे सूझ ही नहीं रहा कि किस मुद्दे का विरोध किया जाए और किसका समर्थन। क्योंकि मोदी सरकार के कुछ काम काम ऐसे हैं, जिसे जनता पसंद कर रही है, लेकिन कांगे्रस हर बात का विरोध करने लगती है।
ऐसा लगता है कि कांगे्रस नेताओं का सत्ता के बिना जीवन उस मछली जैसा है, जो बिना जल के रहती है। कांगे्रस को इस सत्य को स्वीकार करना ही चाहिए कि अब देश में सरकार बदल चुकी है। उसे जनता ने चुना है, कोई युद्ध करके नहीं जीता। कांगे्रस का दर्द यह भी है कि उन्होंने अपनी सत्ता रहते हुए देश में जिस प्रकार के वातावरण का निर्माण किया, वह अब बीते दिनों की बात होती जा रही है। धारा 370 के बारे में कांगे्रस सहित कई दलों ने राजनीतिक प्रलाप किया। जबकि यह भी बड़ा सच है कि भाजपा को जनता ने इसी के लिए चुना। इसलिए यही कहा जा सकता है कि जनता भी यही चाहती थी कि भाजपा धारा 370 को हटाए और भाजपा को केन्द्र की सत्ता में ला दिया। जहां तक भ्रष्टाचार की बात है तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि कांगे्रस के शासनकाल में यह आम धारणा बन चुकी थी कि देश से अब भ्रष्टाचार समाप्त नहीं किया जा सकता। कांगे्रस के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी इसको खुले तौर पर स्वीकार किया था कि हम केन्द्र से जितने रुपए भेजते हैं, उसका पन्द्रह प्रतिशत ही पहुंच पाता है। यानी पिचासी प्रतिशत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता था। इस व्यवस्था को कांगे्रस ने बदलने की कोई कवायद नहीं की, लेकिन अब मोदी सरकार ने इस व्यवस्था को बदलने का साहस दिखाया तो उसके परिणाम यह आए कि जहां पैसों को पहुंचना चाहिए था, उन तक पूरा पैसा पहुंच रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि बीच का भ्रष्टाचार कुछ हद तक कम हुआ है।
आज के राजनीतिक वातावरण को देखते हुए यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि मोदी की सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया, जो भ्रष्टाचार के दायरे में आता हो। इसके विपरीत कांगे्रस शासन काल के ऐसे एक नहीं, बल्कि अनेक उदाहरण हैं जो भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ सकते हैं। जहां तक सरकार की नीतियों और सिद्धांतों की बात है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह बहुत पहले ही व्यक्त कर दिया था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा। आज भी मोदी सरकार इसी नीति पर कार्य कर रही है। जाहिर सी बात है कि यह सिद्धांत किसी भी भ्रष्टाचारी को पसंद नहीं आएगा। आज की कांगे्रस का यही सबसे बड़ा दर्द है। वह चाहते हैं कि उन्होंने जो कार्य किया, उसकी जांच भी नहीं होना चाहिए। यहां एक सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि कांगे्रस की ओर से जो सत्याग्रह किया जा रहा है, उसमें किसी भी नेता की ओर से यह वक्तव्य नहीं दिया गया कि कांगे्रस नेशनल हेराल्ड मामले में दोषी नहीं है। उनका सारा जोर और सारे भाषण केवल मोदी से ही प्रारंभ होते थे और मोदी से ही समाप्त होते थे। अगर कांगे्रस में हिम्मत है तो पूरे साहस के साथ नेशनल हेराल्ड मामले की सच्चाई देश के सामने लाएं। जिससे यह पता चल सके कि मोदी सरकार सही कर रही है या गलत, लेकिन कांगे्रस की ओर से ऐसा कहा ही नहीं जा सकता। क्योंकि वह स्वयं इस बात को जानते हैं कि नेशनल हेराल्ड प्रकरण में किया गया हेरफेर अनैतिक है। इसी प्रकार कांगे्रस ने अग्निवीर योजना के विरोध में भी ऐसा ही आंदोलन किया, जबकि देश की अधिकांश जनता इस योजना का समर्थन कर रही है। यकीन न हो तो सोशल मीडिया का अध्ययन करना चाहिए।
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सुरेश हिन्दुस्थानी, वरिष्ठ पत्रकार
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