वैदिक सम्पत्ति तृतीय – खण्ड अध्याय -मुसलमान और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे…
इसके आगे मुसलमानी धर्म में सब को लाने के लिए लिखा है कि-
चीला छोड़ो न दीन का धांचा मत खाव,
सुनो बटाऊ बाबरे मत भूल न जाव।
सांचा दीन रसूल का सो तमे सही करिजाणों,
जो कोई आवे दीन में उनको दीन में आणों।।

अर्थात् हे मुसाफिर! सुन। भूलना नहीं, धोखा मत खाना और दीन की डोर मत छोड़ना, क्योंकि रसूल का ही दीन सच्चा है। इसलिए तू उसे सच्चा समझ और जो दूसरे लोग आवें, उनको उस दीन मे ला। इसके आगे उस दीन का वर्णन करते हुए पीर साहब खुद अपने प्रचारकों को गुप्त बात का उपदेश करते हैं कि–

अली थकी बहु पेनज चाल्यां सो सतगुर नूरे पाया,
साले दीन पूरा कहिये हुआ सुदीन रहेमान।
शाह शम्स केरो दिन पिछाणो चोदिश लेणे पाय,
सूरज आगामी जीत देखाडी नर सोई अवतार।
करणी कारण खाल उतारी प्रतक्ष ये परमाण्या,
मुआ जीवता ते नर करिया करणी बिना नव होय,
नशीरदीन नूरज पाया हुआ सुदीन रहेमान।
हिन्दू केरी पूजा कारता किन्ने न पाया भेद,
चरित्र हिन्दू अन्दर मुसलमान कोई नव तेने जाणे।
राम राम काया नव राखे रातियाँ करे जु जाग,
नशीरदीन एवा बुजुर्ग कहिये कई एक हिन्दु न तार्या,
तिस्की आल पीर साहबदीन हुआ हुआ सुदीन रहमान।
साहबदीन गरीबी वेशे फकीरी पुरी राखी,
सफल तेणे दशोंद कीधी पाया दीन रहेमान।
पीर सदरदीन बुजरग कहिये बार कोड़ी ना धार्या।
कलजुग माँ तेणे जिवडा तार्या जेणें साची दशोद कीधी,
हसन कबीरदीन गरीब बंदा होता। साहबजी के चरण,
अनन्त कोड़ी ना गुरुजी आव्या करवा ऊना काम।

( पीर सदरदीन कृत अनंतज्ञान )

इसमें उन्होंने सालेदीन का प्रभाव, शम्सतबरेजी का तपोबल और नसरुदिन का प्रताप वर्णन करके इस्लाम धर्म के प्रचार कि यह युक्ति बतलाई है कि, जाहिर में हिन्दू रूप से और अंतःकरण में मुसलमान रहकर प्रचार करना चाहिए और शिष्यसंप्रदाय से अशोंध अर्थात् आमदनी का दशांश वसूल करना चाहिए। इस प्रकार से मुसलमानों के इस दल ने जो हिंदुओं का गुरु बनकर उनका धन और धर्म लेने आया था, इस प्रकार जाली ग्रंथों की रचना से लाखों हिंदुओं को पतित किया है। जिस प्रकार के ये इस्माइली प्रचारक थे, उसी ढंग का प्रचारक कबीर भी था। वह भी हिंदू मुसलमानों के बीच में एक विचित्र धर्म कायम करके हिंदुओं में से अपने चेले छीन लेने का प्रयास करता था।वह कुछ अंश सफल भी हुआ था। जितने कबीरपंथी हैं यदि वे कट्टर हैं तो बजाय अग्निदहा के गाड़ना अधिक पसंद करते हैं और वेदो तथा ब्राह्मणों की निंदा करते हैं। इस बात को गुरु नानक ने ताड़ लिया था। गुरु नानक पर कबीर का जादू नहीं चला। वे कबीरपंथी से सचेत रहे और अलग एक ऐसा पंत बना सके जो ठीक मुसलमानों का विरोधी है। पर दु:ख से कहना पड़ता है कि कभी-कभी सिक्ख कह देते हैं कि हम हिंदू नहीं हैं।
क्रमशः

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