आतंकवादी और देश के धर्मनिरपेक्ष नेता

वर्ष 1943 में तत्कालीन राजा हरि सिंह के खिलाफ शेख अब्दुल्ला को भड़का कर राजा की खिलाफत नेहरू ने कश्मीर में कराई थी।कश्मीर में जो समस्या जवाहरलाल नेहरू ने बोई थी उसका दन्श आज तक यह देश झेल रहा है। कांग्रेस का पतन होने का एक कारण यह भी है कि वह सदैव से देश विरोधी शक्तियों के साथ निकटता रखती है ,तथा उनको समर्थन देती है ।इसी प्रकार का आचरण सपा, बसपा ,मार्क्सवादी, वामपंथी, तमका आदि राजनीतिक पार्टियों का भी रहा है।
आज देश में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही मस्जिद, सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह मिहिर की कर्मभूमि रही मिहिरावली वर्तमान में महरौली आदि को लेकर नित नया सच देश के समक्ष आ रहा है।
नेहरू ने जब देश का सांप्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा स्वीकार किया था तो उन्हें उसी समय यह समझ लेना चाहिए था कि अब शेष भारत में सांप्रदायिक आधार पर किसी का तुष्टीकरण नहीं किया जाएगा । किसी भी क्षेत्र विशेष को या राज्य या प्रांत को किसी संप्रदाय के आधार पर उसी संप्रदाय के लोगों को सौंपा नहीं जाएगा। तत्कालीन नेतृत्व को इस बात के लिए संकल्पित होना चाहिए था कि भारत के सभी प्राकृतिक संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार भारत के मूल निवासियों अर्थात आर्य वैदिक हिंदुओं का है। यह बात स्पष्ट रूप से नेतृत्व को स्वीकार करनी चाहिए थी कि जो लोग इस देश को अपना मानते हैं और इसके लिए मरने जीने की सौगंध खाते हैं, वही इस देश के सच्चे नागरिक हो सकते हैं । उन्हें इस्लाम को मानने वाले लोगों के भयानक दृष्टिकोण और उद्देश्यों को भी समझना चाहिए था।
इस दृष्टिकोण से देशहित में ऐसे प्रबंध किए जाते जिससे भविष्य में कोई भी संप्रदाय सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन करने के लिए फिर अपने आपको बलशाली ना बना सके। यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि नेहरू जी ने ऐसा न करके धारा 370 को चोरी से भारतीय संविधान में स्थापित करवाकर कश्मीर में अलगाववादी शक्तियों को अपना सहयोग और समर्थन दिया। जिसके घातक परिणाम वहां के हिंदू समाज को भुगतने पड़े।
ऐसा नहीं था कि नेहरू को उस समय समझाने वाले लोग नहीं थे। उन्हें सावरकर जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बलराज मधोक और उनकी अपनी पार्टी के भी सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कई राष्ट्रवादी नेता समझाते बताते रहे थे कि कश्मीर के विषय में उनका दृष्टिकोण सर्वथा अनुचित और अतार्किक है । जिसमें सुधार की बहुत अधिक आवश्यकता है। वे शेख अब्दुल्लाह पर अधिक विश्वास न करें। क्योंकि उसकी मानसिकता देश विरोधी है, परंतु इसके उपरांत भी नेहरू अपनी स्वेच्छाचारिता का परिचय देते रहे। उनके समर्थक चाहे उन्हें कितना ही लोकतांत्रिक कहें पर कश्मीर के संदर्भ में उनकी स्वेच्छाचारिता उन्हें एक लोकतांत्रिक नहीं बल्कि एक तानाशाह शासक सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने किसी की बात को नहीं माना और अपने मित्र शेख अब्दुल्लाह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे । जिससे देश की आत्मा रोती रही।
जो झूठ की दीवारों पर अपना साम्राज्य खड़ा करते थे ऐसे धर्मनिरपेक्ष लोग एवं ताकतें आज बहुत परेशान हैं।कांग्रेस कश्मीर के देश विरोधी आतंक को बढ़ावा देने वाले, देश में लूट बलात्कार हत्या करके अशांति फैलाने वाले लोगों का पोषण बिरयानी खिलाकर करती रही है।
यासीन मलिक पिछले कुछ वर्षों से तिहाड़ जेल दिल्ली में बंद है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितना अंतर आ गया है। इसको समझने की आवश्यकता है। वर्तमान शासक की नीति कांग्रेस की नीतियों के मौलिक रूप से विपरीत है। आशिर मलिक को बिरयानी नहीं खिलाई जाती रही। आपको याद होगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ यासीन मलिक की फोटो है। जो दिल्ली दावत पर आमंत्रित किया गया था।
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में टेरर फंडिंग के मामले में यासीन मलिक को दोषी करार देने पर वायु सेना के बलिदानी अधिकारी रवि खन्ना की पत्नी निर्मला खन्ना ने कहा मेरे पति का लहू यासीन मलिक का पीछा कर रहा है।
ऐ धर्मनिरपेक्ष ताकतों के अलंबरदारो!
कभी निर्मला खन्ना से भी मिलकर आओ। जिनके पति को आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने जिसका चेयरमैन यासीन मलिक है, 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर के रावलपोरा में हमला करके मार दिया था ।जिसमें वायु सेना के चार अधिकारी बलिदान हो गए थे। इस अदम्य साहस की महिला ने तथा इसकी तरह की अनेक हमारी बहन बेटियों ने अपना वैधव्य काटा है।
इनके विषय में सोच कर के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा श्री विकास सारस्वत ने आज के दैनिक जागरण में कितना सुंदर लिखा है कि सेकुलरिज्म आज एक भयंकर विकृति का रूप ले चुका है सेकुलर कट्टरपंथी तत्व विरोध की आड़ में कभी किसानों को तो कभी मुस्लिम समुदाय को भड़का कर हिंसा फैलाने की फिराक में रहते हैं।
मैं व्यक्तिगत रूप से श्री विकास सारस्वत के आलेख एवं विचारों से पूर्ण तरह सहमत हूं।श्री विकास सारस्वत आगे लिखते हैं कि सेकुलरिज्म के नाम पर लगातार इतने बड़े-बड़े झूठ गढ़े गए हैं कि हम सेकुलरिज्म का दूसरा नाम ही झूठ और मक्कारी लगने लगा है। राम जन्म भूमि विवाद में सेकुलर इतिहासकारों ने शपथ लेकर इतने झूठ बोले कि न्यायालय भी सन्न रह गया। कश्मीर में हिंदू नरसंहार को गरीब मुस्लिम बनाम अमीर हिंदू की लड़ाई का रूप और पलायन को जगमोहन के मत्थे मढ़ने का प्रयास किया गया ।गोधरा कांड को बाकायदा न्यायिक आयोग बनाकर ट्रेन के भीतर से ही लगाई गई आग बता दिया गया।
26 /11 मुंबई हमले को भी हिंदू आतंकी साजिश बनाने की तैयारी थी ,लेकिन कसाब के पकड़े जाने से योजना चौपट हो गई। कोई भी अंतर धार्मिक विवाद हो उसमें कथानक को हिंदू विरोध का रूप देना सेकुलरिज्म का फर्ज बन गया।
अब थोड़ी शर्म करो। अब यह देश आप के बहकावे में नहीं आने वाला। देश की जनता जागरुक हो चुकी है।ऊपर दिए गए सभी लेखों को एक साथ पढ़ करके सेकुलर कट्टरपंथी अपनी राय बदलेंगे तो अच्छा रहेगा।
सत्य को स्वीकार करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए। इसलिए सत्य को स्वीकार करें।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र।

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