गीत नंबर – 5 गीता और संयम

      

            

गीता और संयम

तर्ज : फूल तुम्हें भेजा है खत में….

ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है।
हितचिन्तक जो धर्म का होता –  वही देश का प्रहरी है ।।

तुझको अपने धर्म पर चलना नहीं किसी पल डिगना है।
जो मर्यादा  खींची  वेद  ने , अटल  उसी  पर रहना  है।।
बात मान ले वेद की अर्जुन ! हर ऋचा जो कहरी है …
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है…

त्याग तपस्वी  जन  स्वयं  को  वेद  मार्ग  पर  हैं  लाते।
जो भी जग के  संयमी जन हैं,  वे  ही  योगी कहलाते।
मर्म धर्म का जानते वे हैं,उनकी ईश भक्ति बड़ी गहरी हैं …
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है…

जब सोते हैं  संसारी  जन  योगी  जन  तब  जागते  हैं।
योगी जन  जब  सोते  हैं  तो  संसारी  जन  जागते हैं।।
कृष्ण  जी  संदेश  सुना  रहे  गीता  जिसको  कहती है …
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है…

मीरा के अनुभव में जब वह लोक अलौकिक आने लगा।
जग जगता था – मीरा सोती, सोता जग उसे भाने लगा।।
सोते  जग  के  पहरे  में  ही  उसकी  भक्ति   चढ़ती  है …
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है …

सदा भौतिकवादी जन जगत में  ईश्वर  के  प्रति  सोता ।
अध्यात्मवादी जन इस जग में संसार के प्रति है सोता।।
जीवात्मा  देह  में  रहता  हर  परत  इसकी  गहरी  है ….
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है…..

बात  पते  की  बतलाता  हूँ  , पांच  कोश  होते  तन में।
आत्मा  इनमें  रमे  नहीं ,  और  दूर  रहे   हर  क्षण  में।।
यही  अवस्था   उत्तम  होती  मेरी  आत्मा  कहरी  है ….
ध्यान लगाकर  सुन ले अर्जुन ! बात मेरी बड़ी गहरी है….

( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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