काले धन की जड़ों में मट्ठा

30 अक्टूबर 2014 : सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को उन लोगों के नाम सौंप दिए हैं, जिनके खाते विदेशों में हैं। यह कार्य स्वागत योग्य है लेकिन विडंबना है कि इसका श्रेय सरकार को नहीं मिलेगा। इसका श्रेय उन न्यायाधीशों को है, जिन्होंने सरकार को सीधी फटकार लगाई। उन्होंने वही कहा, जो राम जेठमलानी कह रहे थे। वित्तमंत्री जेटली ने शुरु में जो सफाई पेश की थी, वह उन्हें मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की कार्बन- कॉपी बना रहा था। विदेशी बैंकों के भारतीय खाताधारियों के नाम बताने के पहले उन्होंने वे ही तर्क पेश किए, जो कांग्रेस सरकार के कारकून करते थे। जेटली की अटपटी मुद्रा ने मोदी सरकार को आलोचना की केटली में बंद कर दिया था। अच्छा हुआ कि न्यायाधीशों ने जेटली की इस केटली का ढक्कन उठा दिया।

अब जो नाम सरकार ने अदालत को बंद लिफाफे में दिए हैं, उनको सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता? जिन लोगों ने आयकर विभाग को बताए बिना विदेशों में खाते खोल रखे हैं, वे सब दोषी हैं। उनके खाते अवैध हैं। उनके नाम प्रकट नहीं करने का मतलब क्या है? क्या यह नहीं कि उनकी और आपकी कुछ गुप्त सांठगांठ है? यदि नहीं तो अब मुफ्त बदनामी क्यों मोल ले रहे हैं? और जिनके वैध खाते हैं, जिन्होंने ईमानदारी से पैसा कमाकर वहां जमा करवाया है, उन्हें डरने की जरुरत क्या है। उनका नाम उजागर करने में सरकार को कोई संकोच क्यों होना चाहिए? यदि ऐसे खाताधारियों के नाम और उनकी राशि भी सार्वजनिक हो जाए तो इससे तो उनकी इज्जत बढ़ेगी ही!

सरकार को अभी तक 6-7 सौ नाम ही हाथ लगे हैं। ये भी वे नाम हैं, जो उसे यूरोप की एक-दो सरकारों ने दे दिए हैं। वह सीधे बैंकों से कब बात करेगी? वह बैंकों से इन खाताधारियों के पिछले 15 साल के लेन-देन का पूरा हिसाब क्यों नहीं मांगती? वह यह पता क्यों नहीं करती कि उस काले धन का स्त्रोत क्या है? वह तोप की दलाली का पैसा है या 2जी या कोयले की कालिख है? काले धन के खिलाफ चार-पांच साल से इतना हल्ला मचा हुआ है। अब तक उन नामी-गिरामी बैंकों में वह काला धन सोता क्यों रहेगा? वह तो उड़कर दुनिया के अस्सी ‘टैक्स-हेवनों’ में चला गया होगा। वहां भी वह खातों में क्यों, बैंकों में क्यों, किन्हीं निजी तिजोरियों में सुरक्षित होगा।

पता नहीं, यह सरकार काला धन वापस कैसे लाएगी? अगर थोड़ा-बहुत उसके हाथ लग भी गया तो भी क्या होगा? वह एक-दो बार ले आएगी लेकिन यहां देश में तो हर क्षण काला धन पैदा हो रहा है। वह पत्ते तोड़ने पर इतनी मेहनत कर रही है और छोटी-मोटी ठोकर भी खा गई है। क्या उसने कभी काले धन की जड़ों में मट्ठा डालने की बात भी सोची है?

Comment: