कब तक दाँतों को पीसेंगे, कब तक मुट्ठी भींचेंगे

कब तक आँखों के पानी से हम पीड़ा को सींचेंगे

रोज यहाँ गाली मिलती है देशभक्त परवानों को

आजादी के योद्धाओं को भारत के दीवानों को

 

जिनके ओछे कद हैं वे ही अम्बर के मेहमान बने

जो अँधियारों के चारण थे सूरज के प्रतिमान बने

इन लोगों ने भारत का बलिदानी पन्ना फूँक दिया

सावरकर के रिसते घावों पर भी सीधा थूक दिया

 

जो चीनी हमले के दिन भी गद्दारी के गायक थे

माओ के बिल्ले लटकाने वाले जो खलनायक थे

जिनके अपराधों की गणना किए जमाने बैठे हैं

वे सावरकर के छालों का मोल लगाने बैठे हैं

 

ये क्या जानें सावरकर या अण्डमान के पानी को

जो गाली देते रहते हैं झाँसी वाली रानी को

ये ए.सी. कमरों में बैठे सिर्फ जुगाली करते हैं

कॉफी सिगरेट के धुएँ में हफ्र सवाली करते हैं

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