* संजय पंकज

रात अंधेरी दिया जलाए
साथी तुम चलते रहना!

दूर गगन में सूरज डूबा
दिन का संबल टूट गया
पनघट से घट लेकर लौटा
जल में ही जल छूट गया

दिल में अपने दर्द दबाए
यादों में ढलते रहना!

नहीं धरा से बढ़कर कोई
जो थामे आधार बने
लहर लहर से अपने चूमे
प्रेमिल पारावार बने

नयनों में संसार बसाए
करुणा में पलते रहना!

एक सूर्य है चांद एक है
अंबर एक वितान तना
एक हृदय के सम पर आते
सकल जगत में गान तना

आलोकित सद्भाव छुपाए
ज्योति ज्योति जलते रहना!

Comment: