पुस्तक समीक्षा : भारतीय परंपराओं की वैज्ञानिकता

“भारतीय परंपराओं की वैज्ञानिकता” – नामक पुस्तक श्रीमती सुनीता बापना व  श्रीमती कुसुम अग्रवाल के द्वारा लिखी गई है। यह पुस्तक भारतीय परंपराओं की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालती है ,जो कि इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है। भारतीय परंपराओं के बारे में यह सच है कि वह चाहे आज कितनी ही और किसी भी प्रकार की कुरीति के रूप में क्यों न दिखाई देती हों ? परंतु उनके मूल रूप में कहीं ना कहीं कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण या ऋषियों का वैज्ञानिक चिंतन खड़ा हुआ है। उसे समझने की आवश्यकता है ।इसी तथ्य को इस पुस्तक के माध्यम से विदुषी लेखिकाओं  ने हम सबके सामने प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की है। भारतीय वैज्ञानिक परंपराओं के विषय में यह भी सत्य है कि उन्हें किसी एक छोटी सी पुस्तिका में बांधा नहीं जा सकता। क्योंकि भारत की वैज्ञानिक परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जिन पर एक पुस्तिका में मात्र संकेत ही किया जा सकता है। इसके उपरांत भी विदुषी लेखिकाओं ने अपने विषय और मंतव्य को स्पष्टता से प्रकट किया है।
    विदुषी लेखिकाओं का मत है कि हर जीव एक दूसरे पर आश्रित है हर जीव को अपने समान समझने से पूरे मानवीय गुणों जैसे करुणा, दया आदि सकारात्मक गुणों का भारतीय दर्शन ‘जियो और जीने दो’ – के सिद्धांत पर आधारित है। सह अस्तित्व का सिद्धांत ही हमको प्रकृति के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
इस पुस्तक में नमस्कार, अग्निहोत्र-यज्ञ, सूर्य अर्घ्य, गौमाता, सनातन धर्म में सर्व मंगलकारी मंत्र, अनुपम संस्कृत भाषा , मंदिर, पूजा में फूल का महत्व, तिलक, अक्षत मौली -एक रक्षा सूत्र , स्वास्तिक, माला में 108 दाने क्यों, वृक्षों की पूजा का महत्व , देव वृक्ष पीपल, विशालकाय वटवृक्ष , अद्वीतीय नीम,  अमृतमय आम, सुख को हरने वाला वृक्ष अशोक, भारतीय परंपरा में आभूषण का स्वास्थ्य से संबंध, शिखा क्यों रखते हैं और इसकी वैज्ञानिकता क्या है ? सोते समय किस दिशा में सिर रखना चाहिए ?, व्रत और उपवास, जमीन पर बैठकर भोजन करने की परंपरा आदि ऐसे विषयों को बड़ी स्पष्टता से समझाया गया है, जो हमारी दैनिक जीवन की क्रिया प्रक्रियाओं से जुड़े हुए हैं। विदुषी लेखिकाओं ने इनसे जुड़े हुए परंपरागत दृष्टिकोण को बदलकर इनके वैज्ञानिक स्वरूप पर अपनी क्षमता के अनुसार प्रकाश डालने का प्रयास किया है। जिसके लिए वह धन्यवाद और बधाई की पात्र हैं।
   वास्तव में भारतीय चिंतनधारा को स्पष्ट करने के लिए इसी प्रकार के अनुसंधानात्मक और शोधात्मक लेख और पुस्तकों के प्रकाशन की आवश्यकता है। जिनसे हमें अपने महान ऋषियों के चिंतन और उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का बोध हो सके। इस दृष्टिकोण से यह पुस्तक बहुत ही अधिक उपयोगी और उत्तम बन गई है। निश्चय ही इससे कई अवैज्ञानिक और अतार्किक परंपराओं को समझने और उनके वास्तविक स्वरूप को हृदयंगम करने का अवसर पाठक को मिलेगा।
    यह पुस्तक ‘सनातन प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित की गई है । जिसका मूल्य ₹370 है। पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 216 है।
पुस्तक प्राप्ति के लिए ‘सनातन प्रकाशन’ 143, श्री श्याम जी रेजिडेंसी, S -2 गणेश नगर , मेन निवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर 302012 पर संपर्क किया जा सकता है।
जिसका संपर्क सूत्र 9928001528, 8824702755 है। विदुषी लेखिका श्रीमती सुनीता बापना जी का संपर्क सूत्र 9829278243 है।

  • डॉ राकेश कुमार आर्य

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