क्या वाकई बढ़ती आबादी देश के लिए गंभीर समस्या ?

देवेन्द्रराज सुथार

आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जनसंख्या को स्थिर करने के लिए नई जनसंख्या नीति (वर्ष 2021-30 की अवधि के लिए) का ऐलान किया गया है। इस नीति के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत गर्भ निरोधक उपायों की सुलभता बढ़ाने और सुरक्षित गर्भपात की व्यवस्था देने की कोशिश होगी। वहीं उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से नवजात मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर को कम करने के प्रयास भी किए जाएंगे। वहीं असम सरकार भी प्रदेशवासियों पर टू-चाइल्ड पॉलिसी का फॉर्म्युला लागू करने की तैयारी में जुट गई है।

जनसंख्या वृद्धि दर के आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट वर्ल्डोमीटर के अनुसार, 2021 में भारत की जनसंख्या लगभग 139 करोड़ हो चुकी है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आबादी 121 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘द वर्ल्ड पॉप्युलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2019 : हाईलाइट्स’ में अनुमान लगाया गया है कि 30 वर्षों में वैश्विक जनसंख्या में 2 अरब लोग और जुड़ जाएंगे। फिलहाल दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब 70 करोड़ है, और 2050 तक यह बढ़कर 9 अरब 50 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी। मौजूदा समय से 2050 तक भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि होने का अनुमान है। भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए 2027 तक दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।

किसी देश के लिए बढ़ती आबादी समस्या है या आवश्यकता, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी देश के नागरिक केवल एक ही संतान में विश्वास करते हैं, तो शुरू में यह देश की प्रगति में बहुत योगदान देगा, क्योंकि कम जनसंख्या के कारण संसाधनों पर बोझ कम होगा। लेकिन अगर वह देश इसी रफ्तार से चलता रहा तो अगले कुछ समय में उस देश की आबादी ज्यादा उम्रदराज हो जाएगी, और हर स्त्री-पुरुष पर चार बूढ़े लोगों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी होगी। समय के साथ यह अंतर बढ़ता जाएगा, जिसके कारण बुजुर्गों की आबादी देश के योगदान में ज्यादा मददगार नहीं होगी। लिहाजा वह देश दूसरे देशों की तुलना में पिछड़ने लगेगा, क्योंकि देश में कामकाजी लोगों की कमी हो जाएगी।

कम जनसंख्या किसी देश की प्रगति में एक समय में सहायक होती है तो यही चीज आने वाले समय में देश की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा भी बनती है। चीन को अभी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते वह अब वन और टू चाइल्ड पॉलिसी से मुक्ति पाकर थ्री चाइल्ड पॉलिसी की ओर बढ़ रहा है। बढ़ती उम्र की आबादी से जापान भी परेशान है। इटली में जन्म दर की गिरावट के कारण बच्चे के जन्म पर सरकार 70 हजार रुपये तो देती ही है, घर और कारोबार शुरू करने में कई तरह की मदद भी मुहैया कराती है। यूरोपीय देश एस्टोनिया में जन्म दर बढ़ाने के लिए कर्मचारियों को पूरे वेतन के साथ डेढ़ साल की छुट्टी दी जाती है। साथ ही तीन बच्चों वाले परिवार को वहां हर महीने 25 हजार रुपये का बोनस दिया जाता है।

आम धारणा के विपरीत बढ़ती आबादी हमारी समस्या नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है। गलत अवधारणाओं ने भारत में मानव पतन को बढ़ावा दिया है। उन लाखों अजन्मे बच्चों के बारे में सोचें, जो हमारी क्रूर परिवार नियोजन नीतियों के परिणामस्वरूप मारे गए। इनमें से कितने तेंडुलकर, रहमान और सत्यजीत रे बन सकते थे।

भारत की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती आबादी नहीं, बल्कि सरकार और नेताओं की गलत प्राथमिकता है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी को अपने निजी जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून का सहारा लेने के बजाय शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने और गरीबी उन्मूलन से जुड़े कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए। बढ़ती आबादी को कुशल मानव संसाधन के रूप में उपयोग करने पर ध्यान देना भी जरूरी है। इस दिशा में सही ढंग से प्रयास किए जाएं तो देश की विशाल आबादी कुछ ही समय में हमारे लिए वरदान बन सकती है।

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