आजादी के बाद पहुंचा है नैतिक पतन अपनी पराकाष्ठा तक

आजादी के बाद हमारे देश के लोगों ने कहाँ तक आध्यात्मिक,नैतिक, राष्ट्रीय तथा आर्थिक उन्नति की है, यदि ईमानदारी से इसकी जांच की जाए तो मालूम होगा कि हमारा नैतिक पतन पराकाष्ठा तक पहुँच रहा है । विद्वानों ने कहा है, ” जिस जाति या व्यक्ति का धन चला जाता है वह वापिस आ सकता है, स्वास्थ्य भी ठीक हो सकता है, पर नैतिक पतन होने पर पुनः उन्नति की कोई आशा नहीं ।”

संसार की कोई भी शक्ति उस जाति या व्यक्ति को सर्वनाश से बचा नहीं सकती । नैतिक पतन होने पर होने पर आध्यात्मिकता का तो कहाँ ठिकाना, राष्ट्रीय भावना भी लुप्त हो जाती है । यह ठीक है कि भरष्टाचार या अनैतिकता के कारण कुछ लोग धनी या पूंजीपति बन जाते हैं, पर वह धन अधिक दिन ठहरता नहीं , ठहरता भी है तो उस व्यक्ति के लिए अभिशाप बन जाता है। सरकारों की कुटिल नीति और जनता की उपेक्षा के कारण व्यक्ति की रग रग में भरष्टाचार का संचार हो गया है । हमारा मन और बुद्धि, ईमानदारी की ओर नहीं, बेईमानी की ओर झुकता जा रहा है । जनतंत्र की सफलता का मूलमंत्र है देश भग्ति और राष्ट्रीयता । जिस देश के लोगों में अपना सर्वस्व बलिदान करने की भावना होती है वह देश ही स्वतंत्र रह सकता है । देश के नेता, देशवासियों को तो नैतिकता का उपदेश देते हैं पर स्वयं योग्यता से कयी गुणा वेतन और भत्ते लेकर मौज उङाते हैं । पाकिस्तान और चीन हमारे नेताओं की अदूरदर्शिता और कायरता के कारण हजारों मील भूमि दबाये बैठे हैं । देश के शासक बार-बार योजनाओं और निर्माण का जिक्र करते हैं पर करोड़ों लोग बेकार हैं, न उनके पास रहने को घर और न ही खाने को अन्न । हमे आजादी के इन 74 वर्षों में क्या खोया ? क्या पाया? इस पर विचार करने की आवश्यकता है । जो खोया है ,देश व स्वंय के हित में उसे पुनः प्रतिष्ठापित करने की आवश्यकता है ।

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